
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बड़ा मोड़ तब आया जब समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री आजम खान को शुक्रवार को लखनऊ की एमपी-एमएलए कोर्ट ने आरएसएस मानहानि मामले में बरी कर दिया। यह मामला करीब छह साल पुराना था, जिसमें आजम खान पर मंत्री रहते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और बीजेपी पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप लगा था। कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष ठोस सबूत पेश करने में विफल रहा।
फैसले के बाद कोर्ट से बाहर आते ही आजम खान भावुक हो गए। उन्होंने कहा,“हम खून की किस्तें तो कई दे चुके, लेकिन ऐ खाके वतन कर्ज अदा क्यों नहीं होता।” मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि यह फैसला इंसाफ पर भरोसा बढ़ाने वाला है।“यह बहुत ही ईमान वाला फैसला है, मैं जज साहब को दुआ देता हूं और शुक्रिया अदा करता हूं। कोर्ट से ही उम्मीद बची है।”
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यह मामला साल 2014 में शुरू हुआ था। आरोप था कि आजम खान ने सरकारी लेटरहेड पर आरएसएस, बीजेपी और शिया धर्मगुरु कल्बे जवाद के खिलाफ बयान जारी किया था। इसे लेकर लेखक अव्वामा जमीर नकवी ने शिकायत दर्ज कराई थी। हालांकि, यह मुकदमा पांच साल बाद 2019 में हजरतगंज थाने में दर्ज किया गया।
शिकायतकर्ता जमीर नकवी का कहना था कि मंत्री रहते हुए सरकारी लेटर पैड का निजी राजनीतिक इस्तेमाल न केवल पद की गरिमा को ठेसपहुंचाता है बल्कि सामाजिक सौहार्द को भी नुकसान पहुंचा सकता है। इसके बाद आजम खान पर आईपीसी की धारा 500 (मानहानि) और 505 (सार्वजनिक नुकसान पहुंचाने वाले बयान) के तहत केस दर्ज किया गया था।
विशेष न्यायाधीश आलोक कुमार वर्मा की अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आजम खान के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं पेश कर सका। इसलिए आरोप साबित नहीं हो पाए और उन्हें सभी आरोपों से बरी किया जाता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि बिना ठोस साक्ष्य किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
आजम खान के लिए यह फैसला न केवल कानूनी बल्कि राजनीतिक राहत भी माना जा रहा है। हाल ही में वह अखिलेश यादव से मुलाकात कर चुके हैं और पार्टी में फिर से सक्रियता बढ़ा रहे हैं। यह फैसला उनकी राजनीतिक वापसी को नई गति दे सकता है।
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