
लखनऊ: सामाजिक कार्य करने वाली कुछ महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह की माँग को लेकर जारी विवाद के बीच राज्यपाल के नाम से जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में महिलाओं ने समलैंगिक विवाह को प्राकृतिक व्यवस्था के विरुद्ध बताया। इसी के सात उनके द्वारा माँग की गई कि समलैंगिक विवाह को स्वीकार करने की अनुमति न दी जाए।
'खुलकर किया जाना चाहिए विरोध'
हाईकोर्ट में वकालत करने वाली मनोरमा ने कहा, भारत में विवाह का एक सभ्यतागत महत्व है और एक महान और समय की कसौटी पर खरी उतरी वैवाहिक संस्था को कमजोर करने के किसी भी प्रयास का समाज द्वारा खुलकर विरोध करना चाहिए। समलैंगिक विवाहों में ये संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं। उन्होंने कहा कि यदि इसकी अनुमति दी गई तो कई प्रकार के विवादों को जन्म दिया जाएगा।
आगे विभिन्न आरक्षण की भी हो सकती है मांग
सामाजिक कार्यकर्ता रेखा तिवारी ने कहा कि दत्तक देने के नियम, उत्तराधिकार के नियम, तलाक संबंधी नियम आदि को विवाद के अंतर्गत लाया जाएगा। समलैंगिक संबंध वाले अपने आपको लैंगिक अल्पसंख्यक घोषित कर अपने लिए विभिन्न प्रकार के आरक्षण की माँग भी कर सकते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता सीमा मिश्रा ने कहा, भारतीय सांस्कृतिक सभ्यता पर सदियों से निरंतर आघात हो रहे हैं फिर भी अनेक बाधाओं के बाद भी वह बची हुई है। अब स्वतंत्र भारत में इसे अपनी सांस्कृतिक जड़ों पर पश्चिमी विचारों, दर्शनों एवं प्रथाओं के अधिरोपण का सामना करना पड़ रहा है। जो इस राष्ट्र के लिए व्यावहारिक नहीं है। जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपते समय सामाजिक कार्यकर्ता माला, कंचन सिंह, सीमा मिश्रा, रेखा तिवारी, मनोरमा, भारती, दीप्ती उपस्थित रहीं। आपको बता दें कि एक ओर जहां समलैंगिक विवाह की मांग की जा रही है वहीं दूसरी ओर इसका विरोध भी देखने को मिल रहा है। तमाम संगठनों के द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है और उनकी कहना है कि समलैंगिक विवाह प्राकृतिक व्यवस्था के खिलाफ है।
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