कांवड़ यात्रा में कलयुगी 'सावित्री', पति को कंधे पर बैठाकर निकली भोलेनाथ की राह पर!

Published : Jul 19, 2025, 11:19 AM IST
kanwar yatra wife carries husband on back muzaffarnagar story

सार

Kanwar Yatra couple story: मुज़फ्फरनगर में सावन की कांवड़ यात्रा के दौरान एक महिला अपने बीमार पति को पीठ पर बैठाकर हरिद्वार से मोदीनगर तक 170 KM यात्रा कर रही है। यह अनोखी श्रद्धा और समर्पण की कहानी लोगों को भावुक कर रही है।

kanwar yatra 2025: श्रावण मास की पवित्र कांवड़ यात्रा में जहां लाखों श्रद्धालु गंगा जल लेने हरिद्वार पहुंचते हैं, वहीं इसी भीड़ में एक ऐसा दृश्य भी देखने को मिला जिसने हर किसी को भावुक कर दिया। एक महिला ‘आशा’ अपने बीमार पति को पीठ पर बैठाकर 170 किलोमीटर लंबी कांवड़ यात्रा पर निकली है। हर कोई इस समर्पण को श्रद्धा के साथ देख रहा है, क्योंकि यह केवल आस्था नहीं, अपार प्रेम और सेवा का प्रतीक बन चुका है।

आख़िर कौन हैं ये महिला जो बन गईं कलयुग की सावित्री?

आशा उत्तर प्रदेश के मोदीनगर की रहने वाली हैं। उनके पति सचिन पहले खुद हर साल कांवड़ यात्रा में भाग लेते थे। लेकिन इस बार वे गंभीर रूप से बीमार हैं और चलने-फिरने में असमर्थ हो चुके हैं। ऐसे में आशा ने उन्हें हरिद्वार से मोदीनगर तक कांवड़ यात्रा कराने का निश्चय किया और अपने पति को पीठ पर बिठाकर यह कठिन यात्रा शुरू कर दी।

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पति बोले, "कभी अपने पैरों से चला करता था, आज पत्नी के कंधों पर हूं"

सचिन ने बताया कि उन्होंने अब तक 13 बार खुद कांवड़ यात्रा की है, लेकिन इस बार शरीर ने साथ नहीं दिया। “हर बार खुद चलकर भोलेनाथ के दर्शन करता था, इस बार मेरी पत्नी ने मुझे अपने कंधों पर उठाकर हरिद्वार की हर की पैड़ी तक पहुंचाया और वहां स्नान करवाया। दक्षेश्वर महादेव मंदिर में भी दर्शन कराए,” उन्होंने कहा।

"पति की सेवा में ही मेवा है" आशा का निःस्वार्थ समर्पण

आशा का कहना है, “मेरी एक ही मन्नत है कि भोलेनाथ मेरे पति को पहले जैसा स्वस्थ कर दें। मैं जो कर रही हूं, वो पत्नी धर्म है। पति की सेवा में ही सब कुछ है, बाकी सब व्यर्थ है।” उनका यह समर्पण न सिर्फ लोगों को भावुक कर रहा है, बल्कि कई लोगों के लिए प्रेरणा भी बन गया है।

बच्चों के साथ मिलकर निभा रही हैं आस्था की यह कठिन यात्रा

इस यात्रा में आशा और सचिन के साथ उनके दो छोटे बच्चे भी शामिल हैं, जो माता-पिता की इस अनोखी कांवड़ यात्रा के गवाह बन रहे हैं। शुक्रवार को जब यह परिवार मुज़फ्फरनगर के शिवचौक पहुंचा, तो वहां मौजूद लोगों ने उन्हें देख कर तालियां बजाईं और इस अनोखे समर्पण को सलाम किया।

स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसी आस्था और समर्पण बहुत कम देखने को मिलती है। “इस महिला ने हमें सिखाया कि सच्चा प्रेम और सेवा आज भी जिंदा है,” एक राहगीर ने कहा। कई श्रद्धालुओं ने उन्हें खाना, पानी और आराम के लिए जगह भी दी।

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