Pandit Mahant Avedyanath: सामाजिक समरसता और राम मंदिर के लिए याद रहेंगे महंत अवेद्यनाथ

Published : Sep 10, 2025, 04:49 PM IST
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सार

Pandit Mahant Avedyanath contribution समाज में समरसता और राम मंदिर आंदोलन के लिए याद किया जाता है। महंत अवेद्यनाथ ने धर्म, राजनीति और समाज सुधार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा छोड़ी।

गोरक्षपीठ में चल रहे श्रद्धांजलि सप्ताह का समापन गुरुवार, 11 सितंबर को होगा। इस अवसर पर राष्ट्रसंत महंत अवेद्यनाथ की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि सभा आयोजित की जाएगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत कई संतजन इस कार्यक्रम में उपस्थित रहेंगे।

राम मंदिर आंदोलन में महंत अवेद्यनाथ का योगदान

महंत अवेद्यनाथ जी ने श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को निर्णायक दिशा दी। नब्बे के दशक में उनके नेतृत्व में आंदोलन ने व्यापक रूप लिया और संतों, नेताओं और आम जनता को एकजुट किया। आज अयोध्या में जो श्रीराम मंदिर का निर्माण हो रहा है, वह उनके संकल्प और प्रयास का परिणाम है।

सामाजिक समरसता को जीवन का उद्देश्य बनाया

महंत अवेद्यनाथ ने अपने जीवन का लक्ष्य समाज में समानता और भाईचारे को बढ़ावा देना रखा। उन्होंने दलित बस्तियों में सहभोज अभियान चलाया और जातिगत भेदभाव को समाप्त करने का संदेश दिया। उनकी पहल से लोग एक साथ बैठकर भोजन करने लगे और समाज में भाईचारे का उदाहरण स्थापित हुआ।

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धर्म और राजनीति में अद्वितीय योगदान

महंत अवेद्यनाथ केवल धर्माचार्य नहीं थे, बल्कि सक्रिय राजनेता भी थे। उन्होंने पांच बार मानीराम विधानसभा और चार बार गोरखपुर लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया। इसके अलावा, वे अखिल भारतीय हिंदू महासभा के उपाध्यक्ष और महासचिव भी रहे। राजनीति के माध्यम से उन्होंने समाज सुधार और लोककल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

महंत अवेद्यनाथ की जीवन यात्रा और दीक्षा

महंत अवेद्यनाथ का जन्म 18 मई 1919 को गढ़वाल जिले के ग्राम कांडी में हुआ। उन्हें बचपन से ही धर्म और अध्यात्म में गहरा झुकाव था। 1942 में गोरक्षपीठ में उनकी दीक्षा हुई और 1969 में वे गोरखनाथ मंदिर के महंत और पीठाधीश्वर बने। उनका जीवन 2014 में आश्विन कृष्ण चतुर्थी को समाप्त हुआ।

समाज सुधार और एकता का संदेश देते थे

महंत अवेद्यनाथ हमेशा लोगों को श्रीराम और देवी दुर्गा के जीवन के उदाहरणों से सामाजिक समरसता का संदेश देते थे। वे कहते थे कि जब समाज के चारों वर्ण एकजुट होंगे तो वे शक्ति और समरसता में सशक्त बनेंगे। उनका जीवन समाज में एकता और धर्म के मूल्यों को बनाए रखने का प्रतीक रहा।

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