
मथुरा. शरद पूर्णिमा पर वृंदावन के विश्व प्रसिद्ध बांके बिहार मंदिर में श्रद्धालुओं को देरी से दर्शन कराने पर विवाद का मामला सामने आया है। आमतौर पर सुबह मंदिर में भगवान बांके बिहारी को जगमोहन में चांदी के सिंहासन पर विराजित कर श्रद्धालुओं को दर्शन कराया जाना था, लेकिन मंदिर में श्रृंगार भोग कराने पहुंचे पुजारियों ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने दर्शन के लिए मंदिर के पट ही नहीं खोले।
कहा जा रहा है कि पुजारियों ने भगवान की गर्भगृह में ही श्रृंगार आरती कर दी। इसके बाद ही पुजारी गर्भगृह से बाहर निकले। यानी मंदिर में मौजूद करीब 1 लाख श्रद्धालु पौन घंटे तक दर्शन का इंतजार करते रहे। इसे लेकर नाराजगी सामने आई है।
बांके बिहारी मंदिर में क्यों हुआ विवाद?
जानकारी के मुताबिक, बांके बिहारी मंदिर में शरद पूर्णिमा पर एक लाख लोग भगवान के दर्शन करने पहुंचे। श्रृंगार भोग करने वाले पुजारियों ने मंदिर के पट नहीं खोले। यही नहीं, उन्होंने गर्भगृह में ही भगवान का श्रृंगार भोग कर दिया। इसके बाद ही वो बाहर निकले।
श्रृंगार भोग के बाद राजभोग होता है। जब राजभोग करने वाले पुजारी ड्यूटी पर मंदिर पहुंचे, तब उन्होंने भगवान बांके बिहारी को जगमोहन में विराजमान कराया और मंदिर के पट दर्शन के लिए खोले। हालांकि इस बीच पौन घंटे तक करीब एक लाख श्रद्धालु इंतजार करते रहे।
बांके बिहार मंदिर में शरद पूर्णिमा पर क्या होनी थी व्यवस्था?
मंदिर प्रशासक और मथुरा मुंसिफ कोर्ट ने शरद पूर्णिमा को देखते हुए 27 अक्टूबर को आदेश दिया था कि शाम की भांति शनिवार सुबह भी भगवान बांक बिहारी को गर्भगृह के बाहर जगमोहन में चांदी के सिंहासन पर विराजमान कराया जाए। यानी यहां से भगवान श्रद्धालुओं को दर्शन देते। यह व्यवस्था 2018 से चली आ रही है, लेकिन इस बार पुजारियों ने ऐसा नहीं किया।
बता दें कि शरद पूर्णिमा पर मंदिर के समय में बदलाव किया जाता है, ताकि श्रद्धालु भगवान के दर्शन कर सकें। यानी सुबह-शाम मंदिर में दर्शन के लिए एक-एक घंटे का समय बढ़ा दिया जाता है। चूंकि इस बार चंद्रग्रहण के चलते नया समय निर्धारित किया गया था। यानी सूतक के कारण मंदिर के पाट दोपहर 3.30 बजे बंद होने हैं। ऐसे में सुबह बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचे थे।
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