
अयोध्या में आज दोपहर राम मंदिर के 191 फीट ऊंचे शिखर पर धर्म ध्वजा फहराई जाएगी। इस समारोह में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहुंच रहे हैं। ध्वजारोहण के साथ ही राम मंदिर निर्माण औपचारिक रूप से पूर्ण माना जाएगा। इस खास आयोजन में जिन चुनिंदा लोगों को निमंत्रण भेजा गया है, उनमें नूर आलम का नाम भी शामिल है।
नूर आलम वही व्यक्ति हैं जो पिछले साल 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के दौरान चर्चा में आए थे। राम जन्मभूमि परिसर से सटी उनकी पैतृक जमीन पर बनी यूसुफ आरा मशीन उस समय हजारों भक्तों का आसरा बनी थी।
प्राण प्रतिष्ठा के दौरान नूर आलम ने अपनी जमीन पर लगभग 20 हजार लोगों के लिए भंडारे और आवास की व्यवस्था की थी। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के पदाधिकारियों की देखरेख में यहां भोजन, चाय-नाश्ता और आश्रय की निरंतर व्यवस्था की गई। आज भी मंदिर निर्माण में लगे मजदूरों और उनके परिवारों के लिए वे चाय और नाश्ते की व्यवस्था करवाते रहते हैं।
उनके अनुसार, यह स्थान सिर्फ व्यवसाय नहीं, बल्कि सेवा का केंद्र है। यहां एक स्थायी रसोई संचालित की जा रही है, ताकि आवश्यकता पड़ने पर किसी भी भक्त को भोजन की कमी न हो।
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धर्म ध्वजारोहण समारोह का निमंत्रण मिलने पर नूर आलम ने कहा, “हम कई पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं। हमें भगवान श्रीराम के पड़ोसी के रूप में जाना जाता है। यह निमंत्रण हमारे लिए सम्मान नहीं, सौभाग्य है। इतिहास बनते देखने का अवसर जीवन में बार-बार नहीं मिलता।”
वे आगे कहते हैं, “प्राण प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या में ऐसा माहौल है कि हर व्यक्ति प्रसन्न है। यहां कोई दुखी नहीं, सब पर भगवान की कृपा है।”
रामलला के पड़ोसी होने पर उन्होंने भावुक होकर कहा, “हमें जितना गर्व है, उसे व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं। यह भगवान राम का महल है और हम उनकी प्रजा हैं। अयोध्या आज उत्सव मना रही है, और हम उस उत्सव का हिस्सा बनना अपना सौभाग्य समझते हैं।”
नूर आलम की जमीन राम मंदिर परिसर की बिल्कुल सीमा से सटी हुई है। इसी जगह उनका आरा मशीन व्यवसाय है और यहीं वे अपने परिवार के साथ रहते हैं। यही स्थान अब हजारों भक्तों की सेवा का केंद्र बन चुका है।
नूर आलम कहते हैं कि सेवा ही सबसे बड़ी पूजा है।
अगर मंदिर के काम में जरूरत पड़ी तो मैं अपना कारोबार भी बदलने को तैयार हूं। जो भी करना पड़े, मैं करूंगा।
आज जब धर्म ध्वजा मुख्य शिखर पर लहराएगी, तो यह सिर्फ मंदिर की भौतिक पूर्णता नहीं होगी, बल्कि अयोध्या की सदियों पुरानी आस्था का उत्सव भी होगा। इस उत्सव में नूर आलम जैसे पड़ोसियों की भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि अयोध्या की आत्मा केवल धर्म से नहीं, बल्कि इंसानियत, सह-अस्तित्व और सेवा से भी बनी है।
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