
उत्तर प्रदेश सरकार ने आधार कार्ड से जुड़े नियमों में एक बड़ा बदलाव करते हुए साफ कर दिया है कि अब किसी भी सरकारी विभाग में आधार कार्ड को जन्म तिथि के प्रमाण पत्र के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा। यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब कई विभागों में आधार को जन्म तिथि की पुष्टि के लिए प्राथमिक दस्तावेज के रूप में देखा जाता था। सरकार का तर्क है कि जरूरी दस्तावेजों की प्रामाणिकता सुनिश्चित करना अब पहले से अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।
नियोजन विभाग ने इस संबंध में आदेश जारी करते हुए सभी अपर मुख्य सचिवों, प्रमुख सचिवों, विभागाध्यक्षों और मंडलायुक्तों को निर्देशित किया है कि भविष्य में किसी भी भर्ती, प्रमोशन, पेंशन या अन्य सरकारी प्रक्रियाओं में आधार कार्ड को जन्म तिथि प्रमाण के रूप में न माना जाए।
यह कदम भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) के 31 अक्टूबर 2025 के उस पत्र के आधार पर लिया गया है, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि आधार में दर्ज जन्म तिथि अधिकतर मामलों में अनुमानित या स्वयं घोषित होती है। ऐसे में इसे जन्म तिथि का प्रामाणिक प्रमाण नहीं माना जा सकता।
UIDAI ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि आधार को केवल पहचान और एड्रेस वेरिफिकेशन के लिए इस्तेमाल किया जाए। इसके बाद यूपी सरकार ने भी अपने स्तर पर इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए स्पष्ट कर दिया कि जन्म तिथि सत्यापन के लिए आधार कार्ड मान्य दस्तावेज नहीं रहेगा।
सरकार ने यह भी बताया कि जन्म तिथि की पुष्टि के लिए अब केवल निम्न दस्तावेज ही वैध होंगे–
स्पष्ट है कि अब आधार कार्ड का इस्तेमाल केवल पहचान स्थापित करने के लिए किया जा सकेगा, न कि जन्म तिथि वेरिफिकेशन में।
इस फैसले का सीधा असर उन लाखों सरकारी कर्मचारियों और नौकरी के अभ्यर्थियों पर पड़ेगा जो अब तक आधार को जन्म तिथि साबित करने के आसान साधन के रूप में इस्तेमाल करते थे। खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां जन्म प्रमाण पत्र बनवाना अभी भी चुनौती है, वहां लोगों को अतिरिक्त दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
हालांकि सरकार का मानना है कि दस्तावेजों की प्रामाणिकता बनाए रखने, गलत जानकारी रोकने और रिकॉर्ड को पारदर्शी बनाने के लिए यह निर्णय आवश्यक था। सरकार का कहना है कि आने वाले दिनों में जन्म प्रमाण पत्र और अन्य वैध दस्तावेजों को लेकर जागरूकता भी बढ़ाई जाएगी।
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