Ghosi Assembly By Election SP: घोसी उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने दिवंगत विधायक सुधाकर सिंह के बेटे सुजीत सिंह पर बड़ा दांव खेला है। आखिर कौन हैं सुजीत सिंह, क्या है उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि और क्यों सपा को उनसे जीत की उम्मीद है, पढ़िए पूरी प्रोफाइल।
कौन हैं सुजीत सिंह, जिनके नाम से घोसी की राजनीति में हलचल
घोसी विधानसभा उपचुनाव से पहले समाजवादी पार्टी ने ऐसा फैसला लिया है, जिसने पूर्वांचल की राजनीति में हलचल तेज कर दी है। सपा ने दिवंगत विधायक सुधाकर सिंह के छोटे बेटे सुजीत सिंह को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। टिकट की घोषणा के साथ ही सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर सुजीत सिंह कौन हैं और क्यों सपा ने उन पर इतना बड़ा राजनीतिक दांव खेला है।
सुजीत सिंह, घोसी से सपा विधायक रहे स्वर्गीय सुधाकर सिंह के छोटे बेटे हैं। सुधाकर सिंह को इलाके में एक मजबूत, जमीन से जुड़े और बेबाक नेता के तौर पर जाना जाता था। उनकी छवि एक ऐसे जनप्रतिनिधि की थी, जो क्षेत्र की समस्याओं को मुखर होकर उठाता था। अब सपा उसी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी सुजीत सिंह को सौंप रही है।
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पिता के साथ राजनीति को करीब से देखा
बताया जाता है कि सुजीत सिंह भले ही सक्रिय राजनीति में अब सामने आए हों, लेकिन वे लंबे समय से अपने पिता के साथ क्षेत्रीय गतिविधियों में जुड़े रहे हैं। चुनावी दौर, जनता से संवाद और संगठनात्मक कामकाज को उन्होंने नजदीक से देखा है। यही वजह है कि पार्टी नेतृत्व उन्हें एक “तैयार चेहरा” मान रहा है, जिसे जनता के बीच पहचान बनाने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।
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सहानुभूति और निरंतरता पर सपा का दांव
सुधाकर सिंह का नवंबर 2025 में निधन घोसी की राजनीति के लिए बड़ा झटका था। उनकी लोकप्रियता और अचानक हुए निधन के बाद क्षेत्र में सहानुभूति की लहर मानी जा रही है। सपा नेतृत्व का मानना है कि सुजीत सिंह न सिर्फ इस सहानुभूति को संभाल सकते हैं, बल्कि अपने पिता के अधूरे कामों को पूरा करने का भरोसा भी जनता को दिला सकते हैं। यही वजह है कि पार्टी ने किसी बाहरी या पुराने नेता की बजाय परिवार के सदस्य को मैदान में उतारने का फैसला किया।
सपा के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल सिंह यादव ने खुद सुजीत सिंह के नाम का ऐलान किया और उन्हें एक जिम्मेदार व समर्पित युवा नेता बताया। शिवपाल यादव का खुला समर्थन यह संकेत देता है कि पार्टी संगठन पूरी ताकत से सुजीत सिंह के पीछे खड़ा है। यह समर्थन चुनावी रणनीति में उनकी स्थिति को और मजबूत बनाता है।
सुजीत सिंह को एक युवा चेहरे के तौर पर देखा जा रहा है, जिन पर बड़ी जिम्मेदारी डाली गई है। घोसी जैसी राजनीतिक रूप से संवेदनशील सीट पर जीत हासिल करना उनके लिए आसान नहीं होगा। उन्हें न सिर्फ अपने पिता की लोकप्रियता को संभालना होगा, बल्कि विपक्ष के आक्रामक प्रचार और संभावित उम्मीदवारों का भी सामना करना पड़ेगा।
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बीजेपी की रणनीति पर भी असर
सपा के इस कदम के बाद बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की रणनीति पर भी असर पड़ा है। अब मुकाबला सिर्फ दलों का नहीं, बल्कि विरासत बनाम सियासी चुनौती का बनता दिख रहा है। बीजेपी किसे मैदान में उतारती है, यह तय करेगा कि सुजीत सिंह के सामने लड़ाई कितनी कठिन होने वाली है।
कुल मिलाकर, सुजीत सिंह का नामांकन घोसी की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत माना जा रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वे अपने पिता की तरह जनता का भरोसा जीत पाते हैं या नहीं। फिलहाल इतना तय है कि घोसी उपचुनाव में इस बार सबसे ज्यादा चर्चा “कौन हैं सुजीत सिंह” और सपा के इस बड़े दांव की ही होने वाली है।
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