Kargil Vijay Diwas: वो जांबाज महिला, जिसने कारगिल युद्ध के दौरान अकेले संभाला था ऑल इंडिया रेडियो का स्टेशन

Kargil Vijay Diwas:देश को जितनी मुश्किल से आजादी मिली, करीब उतना ही मुश्किल इस आजादी को बचाए रखना रहा है। भारत ने चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ कई छोटे-बड़े युद्ध लड़े। इन्हीं में से 23 साल पहले हुआ कारगिल युद्ध भी था। 

Asianet News Hindi | / Updated: Jul 24 2022, 11:18 AM IST

ट्रेंडिंग डेस्क। Kargil Vijay Diwas: वर्ष 1999 में जब कारगिल युद्ध चल रहा था तब इस दौरान करीब दो महीने तक लगातार बहुत से देशभक्त लोगों ने बतौर वालंटियर वहां जाकर अलग-अलग तरह की सेवाएं दी। कोई सैनिकों के लिए सामान पहुंचाता, तो कोई घायल सैनिकों की देखभाल करता। उस समय वहां हर कोई कुछ न कुछ मदद करता रहता। वालंटियर्स को इसके लिए भुगतान भी किया जाता था, मगर वे ऐसा चाहते नहीं थे। यह सब वह देशभक्ति के जुनून में कर रहे थे। 

इन्हीं में एक थीं  शेरिंग अंग्मो शुनु। वह भारी गोलीबारी के बीच भी एआईआर यानी ऑल इंडिया रेडियो के कारगिल स्टेशन से प्रसारण जारी रखी रहीं और वहां की पल-पल की खबर देश और दुनिया को रेडियो के जरिए बताती रहीं। शेरिंग के अनुसार, युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सैनिक और घुसपैठिए लगातार गोलीबारी कर रहे थे और यह रेडियो स्टेशन के बिल्कुल करीब तक होती थी। 

गोलीबारी ज्यादा होती तो 15 किलोमीटर दूर गांव चले जाते, जहां कमरा किराए पर लिया था 
शेरिंग के अनुसार, हम पूरे समय रेडियो स्टेशन पर ही रहते, मगर जब गोलीबारी अधिक होती, तो वहां से करीब 15 किलोमीटर दूर एक गांव में चले जाते। यहां एक कमरा हमने किराए पर ले रखा था। यहां समय गुजारते और फिर जब गोलीबारी बंद होती तो वापस रेडियो स्टेशन चले जाते। उस समय भारतीय सेना की ओर से सभी को खास हिदायत दी गई गई थी कि रात में रौशनी नहीं करें। घर की लाइटें बंद रखें। इससे दुश्मनों को हमारे लोकेशन की जानकारी नहीं हो सकेगी और वे इमारत को निशाना बनाकर बम से हमला नहीं कर पाएंगे। 

कई कर्मचारी घर चले गए, मगर मैं अंत तक डटी रही 
उन्होंने बताया कि पाकिस्तान की ओर से रोज करीब 300 बम गिराए जाते, मगर न भारतीय सैनिक उन कायरों से डरे और न ही हम नागरिक और वालंटियर्स। सभी बहादुरी से अपने-अपने काम को अंजाम दे रहे थे। एक भी दिन के लिए रेडियो प्रसारण बंद नहीं हुआ। हां, रेडियो स्टेशन में काम कर रहे कुछ साथी जान बचाकर चले गए थे। हमें भी वहां से जाने के लिए कह दिया गया था, मगर हमने रेडियो स्टेशन चालू रखा और अंत तक कहीं नहीं गए। 

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