हिंदू धर्म में घर-परिवार की सुख-समृद्धि और परेशानियों को दूर करने के लिए अनेक व्रत आदि कीए जाते हैं। दशा माता व्रत (Dasha Mata Puja 2022) भी उनमें से एक है। ये व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को किया जाता है। इस बार ये तिथि 27 मार्च, रविवार को है।
उज्जैन. दशा माता व्रत दशा यानी स्थिति सुधारने के लिए किया जाता है। दशा माता कोई और नहीं बल्कि मां पार्वती का ही स्वरूप है। ऐसी मान्यता है कि जो महिलाएं ये व्रत करती हैं उनकी परेशानियां दूर हो जाती हैं और परिवार में सुख-समृद्धि, शांति, सौभाग्य और धन संपत्ति बनी रहती है। महिलाएं इस दिन दशा माता और पीपल की पूजा कर सौभाग्य, ऐश्वर्य, सुख-शांति और अच्छी सेहत की कामना करती हैं। आगे जानिए इस व्रत की पूजा विधि, कथा व अन्य खास बातें…
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इस विधि से करें दशा माता की पूजा (Dasha Mata Puja and Vrat Vidhi 2022)
- दशामाता व्रत के दिन मुख्यत: भगवान विष्णु के स्वरूप पीपल वृक्ष की पूजा की जाती है। इस दिन सौभाग्यवती महिलाएं कच्चे सूत का 10 तार का डोरा बनाकर उसमें 10 गांठ लगाती हैं और पीपल वृक्ष की प्रदक्षिणा करते उसकी पूजा करती हैं।
- पूजा करने के बाद वृक्ष के नीचे बैठकर नल दमयंती की कथा सुनती हैं। इसके बाद परिवार के सुख-समृद्धि की कामना करते हुए डोरा गले में बांधती हैं। घर आकर द्वार के दोनों हल्दी कुमकुम के छापे लगाती है।
- इस दिन व्रत रखा जाता है और एक समय भोजन किया जाता है। भोजन में नमक का प्रयोग नहीं किया। प्रयास करें कि दशामाता पूजा के पूरे दिन बाजार से कोई वस्तु ना खरीदें, जरूरत का सारा सामान एक दिन पहले लाकर रख लें।
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ये है दशा माता व्रत की कथा (Dasha Mata Vrat Katha 2022)
- पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय राजा नल और रानी दमयंती सुखपूर्वक राज्य करते थे। एक दिन रानी दमयंती ने दशा माता का व्रत किया और डोरा अपने गले में बांधा।
- राजा ने जब ये देखा तो उन्होंने वो डोरा निकालकर फेंक दिया। उसी रात दशा माता एक बुढ़िया के रूप में राजा के सपने में आई और कहा कि “तेरी अच्छी दशा जा रही है और बुरी दशा आ रही है। तूने मेरा अपमान किया है।”
- इस घटना के कुछ दिन बाद वाकई में राजा की दशा इतनी बुरी हो गई कि उसे अपना राज्य छोड़कर दूसरे राज्य में काम के लिए जाना पड़ा। यहां तक उन पर चोरी का आरोप भी लगा।
- एक दिन वन से गुजरते समय राजा नल को वही सपने वाली बुढि़या दिखाई दी तो वे उसके चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगे और बोले “माई मुझसे भूल हुई क्षमा करो। मैं पत्नी सहित दशामाता का पूजन करूंगा।”
- बुढि़या ने उन्हें क्षमा करते हुए दशामाता का पूजन करने की विधि बताई। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि आने पर राजा-रानी ने अपनी सामर्थ्य अनुसार दशामाता का पूजन किया और दशामाता का डोरा गले में बांधा। इससे उनकी दशा सुधरी और राजा को पुनः अपना राज्य मिल गया।
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दशा माता व्रत के नियम (Dasha Mata Vrat rules)
1. दशा माता का व्रत एक बार करने के बाद हर बार किया जाता है। इस व्रत को बीच में नहीं छोड़ सकते। ऐसा करना अशुभ माना जाता है। अगर बहुत जरूरी हो तो उद्यापन करने के बाद इसे छोड़ सकते हैं।
2. दशा माता की पूजा पीपल के पेड़ की छाँव में करना शुभ माना जाता है। और पीपल के आस-पास पूजा का धागा भी बांधा जाता है। पीपल की की पूजा से भगवान विष्णु की पूजा भी इस दिन हो जाती है।
3. इस व्रत में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। घर की अनावश्यक चीजें भी बाहर रख दी जाती है। साथ ही इस दिन सफाई से जुड़े समान यानी झाड़ू आदि खरीदने की परंपरा भी प्रचलित है।
4. दशामाता व्रत करने वाली महिलाएं दिन भर में मात्र एक बार भोजन या फलाहार कर सकती है कर सकती हैं। इस व्रत में बिना नमक का भोजन किया जाता है।
5. मान्यता है कि दशामाता व्रत को विधि-विधान, सच्चे मन, भक्ति भाव से करने पर, एक साल के भीतर जीवन से जुड़े दु:ख और समस्याएं दूर हो जाती हैं।
6. दशा माता का डोरा साल भर गले में पहना जाता है। लेकिन यदि दशा माता का डोरा साल भर नहीं पहन सकते हैं तो वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष में किसी अच्छे दिन खोलकर रखा जा सकता है। उस दिन व्रत करना चाहिए।
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