
प्रयागराज: उत्तर प्रदेश में ओबीसी की 18 जातियों को एससी कैटेगरी में शामिल करने को चुनौती देने वाली अधिसूचना के खिलाफ याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंजूर की। प्रदेश सरकार की ओर से महाधिवक्ता अजय मिश्रा के द्वारा सरकार का पक्ष रखा गया। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान का प्रावधान इस मामले में बिल्कुल साफ और स्पष्ट है। कोर्ट ने दोनों ही पक्षों के वकीलों को सुनने के बाद इस याचिका को मंजूर कर लिया और अधिसूचना को रद्द कर दिया। कोर्ट की ओर से कहा गया कि इस संबंध में एक विस्तृत आदेश दिया जाएगा।
काफी समय बाद भी नहीं हुआ जवाब दाखिल
गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इससे पहले ओबीसी की 18 जातियों को एससी सर्टिफिकेट जारी करने को लेकर रोक लगा दी थी। इसी के साथ हाईकोर्ट में लगभग 5 साल बीत जाने के बाद भी राज्य सरकार की ओऱ से इन याचिकाओं में जवाब दाखिल नहीं किया गया। वहीं हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को पिछली सुनवाई पर जवाब दाखिल करने का अंतिम मौका भी दिया था। यह आदेश चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस जेजे मुनीर की खंडपीठ ने डॉ बीआर अंबेडकर ग्रंथालय एंव जनकल्याण द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर पारित किया है।
2019 में जारी की गई थी अधिसूचना
आपको बता दें कि इसे योगी सरकार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओऱ से बड़ा झटका बताया जा रहा है। दरअसल योगी सरकार ने ही 24 जून 2019 को कुम्हार, केवट, मल्लाह, बाथम, धीमर, कहार, कश्यप, भर, राजभर समेत 18 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने को लेकर अधिसूचना जारी की थी। हालांकि इस सरकारी अधिसूचना को कोर्ट में चुनौती दी गई। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार के पास अनुसूचित जाति सूचि में बदलाव की शक्ति नहीं है। लिहाजा यूपी सरकार द्वारा जारी अधिसूचना को रद्द किया जाता है।
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