अयोध्या: पूरी जमीन हिंदू पक्ष को देना गलत मान रहे हैं वकील अनुपम गुप्ता, इन वजहों पर किए सवाल

अयोध्या में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के विवाद का निपटारा सुप्रीम कोर्ट में हो चुका है। पांच जजों की  पीठ ने रामलला को पार्टी मानते हुए उनके पक्ष में फैसला सुना दिया। साथ ही यह निर्देश भी दिया कि मस्जिद के लिए भी कहीं पांच एकड़ जमीन दी जाए। 

Asianet News Hindi | Published : Nov 13, 2019 12:30 PM IST / Updated: Nov 13 2019, 06:03 PM IST

नई दिल्ली/लखनऊ. अयोध्या में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के विवाद का निपटारा सुप्रीम कोर्ट में हो चुका है। पांच जजों की  पीठ ने रामलला को पार्टी मानते हुए उनके पक्ष में फैसला सुना दिया। साथ ही यह निर्देश भी दिया कि मस्जिद के लिए भी कहीं पांच एकड़ जमीन दी जाए। फैसले के बाद कानूनी जानकार अलग-अलग राय दे रहे हैं। अब वकील अनुपम गुप्ता ने भी राय रखी और पूरी जमीन को हिंदू पक्ष को देना गलत बता रहे हैं।

अनुपम गुप्ता लिब्रहान आयोग के वकील रहे हैं। उन्होंने 6 दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद मंदिर आंदोलन से जुड़े भाजपाई नेताओं लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह और तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से जिरह की थी।

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गुंबद के नीचे की जमीन विवादित

बीबीसी हिंदी को दिए इंटरव्यू में अनुपम गुप्ता ने फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई। अनुपम ने कहा, "मैं विवादित स्थल के अंदर और बाहर की भूमि को पूरी तरह हिंदुओं को दिए जाने के फैसले से दृढ़ता के साथ असहमत हूं। मैं मालिकाना हक के निष्कर्ष से असहमत हूं।"

"यहां तक कि बाहरी अहाते पर हिंदुओं के मालिकाना हक और लंबे समय से हिंदुओं के वहां बिना रुकावट पूजा करने की दलीलें स्वीकार कर ली गई हैं, लेकिन अंदर के अहाते पर आया अंतिम फैसला अन्य निष्कर्षों के अनुकूल नहीं है। कोर्ट ने कई बार यह दोहराया और माना कि भीतरी अहाते में स्थित गुंबदों के नीचे के क्षेत्र का मालिकाना हक और पूजा-अर्चना विवादित है।"

मस्जिद के होने को कैसे कर सकते हैं इनकार

एक सवाल के जवाब में अनुपम गुप्ता ने बीबीसी हिंदी से कहा, "कोर्ट ने इसे आधार माना है और यह मुझे विचित्र लगता है। फैसले में कहा गया है कि मुसलमानों की तरफ से इसके कोई सबूत नहीं दिए गए कि 1528 से 1857 के बीच यहां नमाज पढ़ी गई। अब भले ही मुकदमे में साक्ष्यों के अभाव पर फैसला किया गया है, लेकिन यह बात निर्विवाद है कि 1528 में एक मस्जिद बनाई गई जिसे 1992 में ध्वस्त कर दिया गया।"

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एके गांगुली भी फैसले से सहमत नहीं

अनुपम गुप्ता ने कहा, "अगर ये मानें कि मुगल शासन के दौरान कहीं कोई चर्च, गुरुद्वारे या मंदिर का निर्माण किया गया तो क्या आप उस समुदाय से सैकड़ों वर्षों के बाद यह कहेंगे आपको साबित करना होगा कि आपने वहां पूजा की थी।" अनुपम गुप्ता से पहले सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज एके गांगुली ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हैरानी जताई थी। उन्होंने कहा था कि कोर्ट ने आस्था के आधार पर फैसला सुनाया जो गलत है। 

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