BDO की ओर से बाराबंकी डीएम पर लगाए गए आरोपों की जांच में कई चौकाने वाले तथ्य सामने आए। कथिततौर पर मनचाही पोस्टिंग न मिलने के चलते ही यह पूरा खेल हो रहा है।
जितेंद्र मिश्रा
बाराबंकी: उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद में BDO अमित त्रिपाठी द्वारा अपने उच्चाधिकारियों पर मानसिक शोषण वह जानबूझकर परेशान करने का आरोप लगाया गया है। इस पूरे मामले में अब कतिपय नेता भी अपनी राजनीति की रोटियां सेकने में लगे हैं। पूरे मामले की जांच पड़ताल की गई तो सच कुछ और ही सामने आने लगा है। आरोप लगाने वाले बीडीओ अमित त्रिपाठी द्वारा यह दावा किया गया कि उनके द्वारा पूरी निष्ठा से कार्य संपादन करने के बावजूद उनका शोषण किया गया, किंतु जब उनके पिछले पोस्टिंग की पड़ताल की गई तो पता चला की उन्होंने जनपद अयोध्या के अपने कार्यकाल में भी लगभग दो साल पहले इसी प्रकार का एक पत्र जारी किया था। ऐसा लगता है की जब भी इन्हें मनचाही तैनाती नहीं मिलती है या कार्यवाही होने का आभास होता है तो यह अपने को मानसिक उत्पीड़न का शिकार दिखाते हुए पत्र जारी कर अपने उच्च अधिकारियों पर दबाव बनाने का प्रयास करते हैं।
BDO बाराबंकी अमित त्रिपाठी का ट्रांसफर अप्रैल 2020 में अयोध्या से प्रतापगढ़ हुआ, और जून 2021 में संशोधित करके बाराबंकी। लगभग सवा साल तक इन्होंने शासन के निर्देशों का पालन क्यों नही किया? और बिना कोई कार्यवाही हुए इनका स्थानांतरण क्यों संशोधित किया गया? इन्हें किसका संरक्षण प्राप्त है? इन सवालों पर मौन रहकर मात्र जिलाधिकारी व सीडीओ बाराबंकी की जिस तरह से घेराबंदी की गई उससे आम जनमानस में कई सवाल पैदा कर दिए हैं।
3 साल के कार्यकाल में नहीं आई कोई शिकायत
इन तमाम तथ्यों से यह स्पष्ट है कि यह मामला वैसा नहीं है जैसा कि प्रस्तुत किया जा रहा है। बाराबंकी जिला अधिकारी पर जिस तरीके के आरोप लगाए जा रहे हैं उनकी पड़ताल करने पर भी यह स्पष्ट हुआ कि उनका कोई आधार नहीं है। जिलाधिकारी द्वारा बीते 3 साल के कार्यकाल में अब तक पद के किसी भी प्रकार से दुरुपयोग की कोई शिकायत सामने नहीं आई है, साथ ही साथ शासन की नीतियों के प्रति उनकी निष्ठा आज तक असंदिग्ध रही है। बाराबंकी के चर्चित रामसनेहीघाट अवैध निर्माण गिराए जाने के केस में जिला अधिकारी बाराबंकी की ही अकादमिक मेहनत, तथ्यात्मक फ़ाइल वर्क था जिस के नाते मीडिया वह न्यायालय में शासन का पक्ष पूरी मजबूती से रखा जा सका और उस समय की गहमागहमी में सरकार पर कोई भी नैतिक आरोप नहीं लग सका। इसके अतिरिक्त कल्याणी नदी जीर्णोद्धार, चैनपुरवा में अवैध शराब की जगह महिलाओं को दीपक बनाने का रोजगार समेत अनेक ऐसे कार्य रहे हैं जिनकी सराहना स्वयं प्रधानमंत्री कर चुके हैं। ऐसे में यह सवाल जनता के बीच काफी चर्चा के केंद्र में है कि जिस अधिकारी की कार्यशैली और शासन के प्रति निष्ठा को लेकर ब्यरोक्रेसी में नज़ीर दी जाती रही है, उन पर अचानक से इस तरह से चौतरफा हमले कहीं किसी और तरफ निशाना लगाने की कवायद तो नही।
कहीं और निशाना तो नहीं?
यह सवाल लगातार ज़ोर पकड़ता जा रहा है कि जहां एक तरफ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पारदर्शी प्रशासन के अपने संकल्प पर अडिग हैं और अपनी पार्टी के नेताओं को जिले में ट्रांसफर पोस्टिंग हेतु दबाव न बनाने की स्पष्ट हिदायत दे चुके हैं, वहीं इस प्रकरण में जिस तरह से जिलाधिकारी बाराबंकी की घेराबंदी जिन आरोपों के तहत की जा रही है उससे न केवल सीएम योगी आदित्यनाथ के निर्देशों की अवहेलना हो रही है बल्कि प्रशासन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।