
मेरठ(Uttar Pradesh). कोरोना महामारी के चलते हे लॉकडाउन में लोगों की जिन्दगी पर गहरा असर पड़ा है। कई लोगों की आर्थिक स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि वह दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं। कुछ ऐसा ही हाल इन दिनों मेरठ के दो नेशनल खिलाडियों का है। एक समय था जब ये खिला़ड़ी गले में मेडल पहनकर हिन्दुस्तान की शान में चार चांद लगाते थे। लेकिन अब कोरोनाकाल में आर्थिक तंगी की वजह से सब्ज़ी का ठेला लगाकर जीवन यापन कर रहे हैं। ये दोनों खिलाड़ी परिस्थितिवश गली-गली ठेला चलाकर सब्ज़ी बेच रहे हैं, लेकिन खेल का जज्बा इनमें अभी भी जिंदा है।
बॉक्सिंग में सुनील चौहान खेलो इंडिया में स्वर्ण पदक जीत चुके हैं तो वहीं नीरज चौहान सीनियर तीरंदाज़ी में रजत पदक विजेता हैं। कोरोनाकाल में पिता का रोज़गार छिन जाने की वजह से घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा था। लिहाज़ा दोनों ने तय किया कि वे पिता का सहारा बनेंगे और सब्ज़ी बेचेंगे। जब पहली बार ये दोनों सब्ज़ी का ठेला लेकर निकले तो लोगों की निगाहों ने इन्हें परेशान किया। लेकिन आज ये दोनों खिलाड़ी इस काम को फक्र से करते हैं। खिलाड़ियों का कहना है कि कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता है। वे सब्ज़ी का ठेला लगाना अपनी शान समझते हैं, क्योंकि कोई गलत काम नहीं बल्कि मेहनत से कमा रहे हैं।
पिता ने लगाई सरकार से मदद की गुहार
इन दोनों खिलाडियों के पिता अक्षय चौहान मूल रूप से गोरखपुर के रहने वाले हैं. लेकिन पिछले 23 साल से वो मेरठ के कैलाश प्रकाश स्टेडियम में बतौर संविदाकर्मी काम कर रहे थे। स्टेडियम के हॉस्टल में रहने वाले खिलाड़ियों के लिए खाना बनाते थे। स्टेडियम में ही परिवार के साथ रहते हैं। लेकिन कोरोना के चलते जब स्टेडियम के खिलाड़ी अपने अपने घर चले गए तो अक्षय को भी काम से हटा दिया गया। जिसके बाद परिवार के सामने रोज़ी रोटी का संकट पैदा हो गया। हालात ये हो गया कि घर में खाने को कुछ नहीं बचा। घर का दूध तक बंद करना पड़ा। मजबूरी में अक्षय किराये पर ठेला लेकर सब्जी बेचने लगे। पिता के इस काम में दोनों खिलाड़ी बेटे भी हाथ बंटा रहे हैं। इनका सपना ओलम्पिक जीतने का है। पिता का कहना है कि उनके दोनों बेटे ही उनके लिए सबकुछ हैं। पिता सरकार से अपने दोनों खिलाड़ी बेटों के लिए मदद की गुहार लगाई है।
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