ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी केस: शिवलिंग पूजने और परिसर हिंदुओं को सौंपने की मांग, याचिका पर आज आ सकता है अहम आदेश

ज्ञानवापी मामले में वाराणसी की फास्ट ट्रैक कोर्ट आज अहम फैसला सुनाएगी। विश्व वैदिक सनातन संघ की ओर से दाखिल याचिका में तीन मांग रखी गई थी। कोर्ट में इसी को लेकर अहम आदेश आ सकता है। शिवलिंग की पूजा समेत इन दो मांगों पर सुनवाई होनी है। 

Asianet News Hindi | Published : Nov 14, 2022 5:39 AM IST

वाराणसी: ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी मामले में सोमवार का दिन अहम हो सकता है। ज्ञानवापी परिसर में मुस्लिमों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने सहित तीन मांगों से संबंधित भगवान आदि विश्वेश्वर विराजमान के मुकदमे की सुनवाई होनी है। सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट महेंद्र कुमार पांडेय की फास्ट ट्रैक कोर्ट तय करेगी कि किरन सिंह की तरफ से दाखिल वाद सुनवाई योग्य है या नहीं। इससे पहले इस मुकदमे की सुनवाई आठ नवंबर को होनी थी लेकिन कोर्ट के पीठासीन अधिकारी के छुट्‌टी पर होने की वजह से 14 नवंबर की अगली डेट फिक्स कर दी गई थी।

बहस पूरी होने के साथ दोनों पक्ष दाखिल कर चुके हैं लिखित प्रति 
इस मामले में बीते 15 अक्टूबर को अदालत में दोनों पक्षों की दलीलें पूरी हो गई थी और आदेश के लिए 27 अक्टूबर की तारीख तय की गई थी। 18 अक्टूबर तक दोनों पक्षों को लिखित बहस दाखिल करने को भी कहा गया था। 14 नवंबर की तारीख तय हुई। यह मुकदमा विश्व वैदिक सनातन संघ के प्रमुख जितेंद्र सिंह विसेन की पत्नी किरन सिंह विसेन और अन्य की ओर से दाखिल किया गया है। अदालत में हिंदू और मुस्लिम पक्ष अपनी बहस पूरी कर उसकी लिखित प्रति दाखिल कर चुके हैं।

मुकदमे में बनाए गए हैं पांच प्रतिवादी
विश्व वैदिक सनातन संघ के प्रमुख जितेंद्र सिंह विसेन का कहना है कि इस मुकदमे में यूपी सरकार, वाराणसी के डीएम और पुलिस कमिश्नर, अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी और विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट को प्रतिवादी बनाया गया है। वहीं दूसरी ओर किरन सिंह विसेन की तीन मांगें हैं- पहला ज्ञानवापी परिसर में मुस्लिम पक्ष का प्रवेश प्रतिबंधित हो, दूसरा ज्ञानवापी का पूरा परिसर हिंदुओं को सौंपा जाए। वहीं तीसरा ज्ञानवापी परिसर में मिले कथित ज्योतिर्लिंग की नियमित पूजा-पाठ करने दिया जाए।

तीन वकील देख रहे विसेन के मुकदमे
जितेंद्र सिंह विसेन ने यह भी बताया कि ज्ञानवापी परिसर से संबंधित सभी मुकदमे जो वाराणसी जिला न्यायालय में उनकी देखरेख में चल रहे हैं। उनकी पैरवी के लिए सिर्फ तीन ही अधिकृत अधिवक्ता नियुक्त किए गए हैं। उन्होंने आगे बताया कि उन तीनों अधिवक्ताओं के नाम अनुपम द्विवेदी, मान बहादुर सिंह और शिवम गौर हैं। इन तीनों के अतिरिक्त यदि कोई भी खुद को विश्व वैदिक सनातन संघ के द्वारा संचालित मुकदमों में स्वयं को अधिवक्ता बताता या दर्शाता या लिखता है तो वह पूर्ण रूप से फर्जी है।

मुस्लिम पक्ष की ने कोर्ट में रखी थी दलील
वहीं मुस्लिम पक्ष यानि अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की तरफ से औहीद खान, मुमताज अहमद, रईस अहमद, मिराजुद्दीन खान और एखलाक खान ने कोर्ट में प्रतिउत्तर में सवाल उठाते हुए कहा था कि एक तरफ कहा जा रहा है कि वाद देवता की तरफ से दाखिल है। वहीं दूसरी तरफ पब्लिक से जुड़े लोग भी इस वाद में शामिल हैं। यह वाद किस बात पर आधारित है, इसका कोई पेपर दाखिल नहीं किया गया है और कोई सबूत नहीं है। कोर्ट में कहनी नहीं चलती है। औहिद खान का कहना है कि कोर्ट द्वारा मामले को खारिज कर दिया जाएगा। जिला अदालत में पहले का मामला मस्जिद की बाहरी दीवार पर स्थित हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों की दैनिक पूजा की अनुमति के संबंध में था, जबकि चल रहा मामला मस्जिद के अंदर वाले हिस्से से जुड़ा है।

हिंदू पक्ष के अधिवक्ताओं ने रखी थी दलील
दूसरी ओर हिंदू पक्ष के वकीलों ने दलीलें रखते हुए कहा था कि राइट टू प्रॉपर्टी के तहत देवता को अपनी प्रॉपर्टी पाने का मौलिक अधिकार है। इस वजह से नाबालिग होने के कारण वाद मित्र के जरिये यह वाद दाखिल किया गया है। अधिवक्ताओं का कहना है कि भगवान की प्रॉपर्टी है, तब माइनर मानते हुए वाद मित्र के जरिये क्लेम किया जा सकता है। इसके साथ ही स्वीकृति से मालिकाना हक हासिल नहीं होता है। उसको लिए यह बताना पड़ेगा कि संपत्ति कहां से और कैसे मिली। कोर्ट में वाद के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट की छह रूलिंग और संविधान का हवाला भी दिया गया। 

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