Inside Story: कानपुर-बुंदेलखंड में BJP को घेरने की तैयारी में एसपी, 2017 में 52 में से 04 सीटों पर मिली थी जीत

समाजवादी पार्टी बीजेपी के सबसे मजबूत किले कानपुर-बंदेलखंड को घेरने की तैयारी कर रही है। बीजेपी छोड़कर सपा ज्वाईन करने वाले नेताओं के दम इस तैयारी में जुटी है। एसपी 2017 के विधानसभा चुनाव में कानपुर-बुंदेलखंड की मात्र चार सीटों पर ही साइकिल दौड़ पाई थी। जिसमें से दो सीटें कानपुर थी। 

Asianet News Hindi | Published : Jan 20, 2022 9:50 AM IST / Updated: Jan 20 2022, 04:09 PM IST

सुमित शर्मा

कानपुर: यूपी विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान होने के बाद राजनीतिक पार्टियां प्रत्याशियों के नामों पर मंथन कर रही हैं। समाजवादी पार्टी के लिए विधानसभा चुनाव 2017 किसी खौफनाक सपने से कम नहीं था। सत्ता गवांने के साथ ही एसपी अपने गढ़ को भी नहीं बचा पाई थी। एसपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में कानपुर-बुंदेलखंड की 52 में से मात्र 4 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई थी। लेकिन एक बार फिर से समय और हालात बदले हैं। एसपी कार्यकर्ता सकारात्मक ऊर्जा के साथ चुनाव मैदान में दिख रहे हैं।

समाजवादी पार्टी बीजेपी के सबसे मजबूत किले कानपुर-बंदेलखंड को घेरने की तैयारी कर रही है। बीजेपी छोड़कर सपा ज्वाईन करने वाले नेताओं के दम इस तैयारी में जुटी है। एसपी 2017 के विधानसभा चुनाव में कानपुर-बुंदेलखंड की मात्र चार सीटों पर ही साइकिल दौड़ पाई थी। जिसमें से दो सीटें कानपुर थी। कानपुर की आर्यनगर सीट से अमिताभ वाजपेई और सीसामऊ सीट से इरफान सोलंकी ने जीत दर्ज की थी। इसके साथ ही इटावा के जसवंतनगर सीट से शिवपाल सिंह यादव और कन्नौज की सदर सीट से अनिल कुमार दोहरे ने जीत हासिल की थी।

कानपुर-बुंदेलखंड क्यों है बीजेपी का मजबूत किला
कानपुर-बुंदलेखंड में 52 विधानसभा सीटें है। बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में 52 सीटों में से 47 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं कानपुर-बुंदेलखंड में लोकसभा की 10 सीटें है। भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में क्लीन स्वीप किया था। बीजेपी ने 10 में से 10 सीटों पर कमल खिलाया था। सपा का गढ़ कहे जाने वाले इटावा और कन्नौज में भी बीजेपी ने शानदार जीत दर्ज की थी। जिसमें अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को हार का सामना करना पड़ा था।

इन नेताओं के दम पर एसपी भर रही जीत का दम
प्रदेश सरकार में मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद, बीजेपी में इस्तीफों की झड़ी लग गई थी। स्वामी प्रसाद मौर्या के करीबी कानपुर-बुंदेलखंड में बिधूना सीट से विधायक विनय शाक्य, बिल्हौर सीट से बीजेपी विधायक भगवती सागर और तिन्दवारी से बृजेश प्रजापति ने इस्तीफा दे दिया था। बीजेपी के इन कद्दावर नेताओं के इस्तीफों से कानपुर-बुंदेलखंड किले की दीवारें कमजोर पड़ी हैं। इन नेताओं का बड़ा जनाधार है।

बीजेपी का बिगड़ा जातीय समीकरण
ताबड़तोड़ इस्तीफों की वजह से बीजेपी का जातिगत समीकरण बिगड़ गया है। यदि कानपुर की बात की जाए तो बिल्हौर से बीजेपी विधायक रहे भगवती सागर ने सपा ज्वाईंन कर लिया है। भगवती सागर की ओबीसी, अनुसूचितजाति और अनुसूचित जनजाति के वोटरों के बीच जबर्दस्त पकड़ है। भगवती सागर बीजेपी का कानपुर में बड़ा नुकसान करने का दावा कर रहे हैं। इसके साथ ही झांसी में भी करेंगे। भगवती सागर मूलरूप से मऊरानीपुर के रहने रहने वाले हैं।

बिधूना विधानसभा सीट
औरैया की बिधूना विधानसभा सीट से विनय शाक्य बीजेपी के विधायक हैं। विनय शाक्य दो बार बिधूना सीट से जीत दर्ज कर चुके हैं। विनय शाक्य स्वामी प्रसाद मौर्य के करीबी माने जाते हैं। विनय शाक्य की ओबीसी और अनुसूचितजाति के वोटरों में पकड़ है। सपा की सदस्यता लेने के बाद विनय शाक्य बीजेपी का बड़ा नुकसान करने की बात कर रहे हैं। विनय शाक्य की इटावा में भी जबर्दस्त प्रभाव है।

तिन्दवारी विधानसभा सीट
बांदा की तिन्दवारी विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक बृजेश प्रजापति ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। बृजेश प्रजापति की गिनती बेबाक नेताओं में होती है। उन्होने बांदा में खनन माफियाओं और अफसरशाही के खिलाफ अवाज उठाई थी। इसके साथ ही जातीय जनगणना की मांग कर रहे थे। लेकिन प्रदेश सरकार उनकी बातों को अनसुना कर रही थी। जिसकी वजह से वो पार्टी से नाराज थे। बृजेश प्रजापति की ओबीसी, मुस्लिम और अनुसूचित जाति के वोटरों में पकड़ है। बृजेश प्रजापति ने बीजेपी का नुकसान करने का मन बना लिया है। 

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