क्या ब्राह्मणों से हो रहा बसपा का मोहभंग, 2024 लोकसभा चुनाव के लिए बनाई जा रही नई रणनीति 

लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर राजनीतिक दल मंथन में लगे हुए हैं। इस बीच जानकार मान रहे हैं कि बसपा का ब्राह्मणों से मोहभंग हो चुका है। इसी के चलते 2024 चुनाव को लेकर बसपा नई रणनीति बनाने में जुटी है। 

Asianet News Hindi | Published : Nov 21, 2022 11:52 AM IST

लखनऊ: यूपी विधानसभा चुनावों में बसपा को मिली करारी हार के बाद मायावती नए सिरे से पार्टी को मजबूत करने में लगी हुई हैं। संगठन में उनके द्वारा बड़े स्तर पर बदलाव किए गए हैं। दलित-ब्राह्मण गठजोड़ की बात करने वाली बीएसपी चीफ अब ब्राह्मणों से दूरी बनाती नजर आ रही हैं। भले ही 2007 में इस फॉर्मूले पर सरकार बनाई गई हो और 2022 का चुनाव भी उसी रणनीति पर लगा गया हो लेकिन अब यह सूत्र बदलने की कवायद जारी है। 

ब्राह्मणों से दूरी बना रही है बसपा
माना जा रहा है कि यूपी में निकाय चुनाव के बहाने बसपा 2024 की तैयारियों में जुटी हुई है। इसके लिए बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत किया जा रहा है। हालांकि 2022 चुनाव में ब्राह्मण सम्मेलन करने वाली बसपा अब ब्राह्मणों से ही दूरी बनाती दिख रही है। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि यूपी चुनाव के दौरान बसपा की बागडोर सतीश मिश्रा के हाथ में थी। उनका पूरा परिवार प्रचार में उतरा था। हालांकि चुनाव के नतीजे काफी अलग रहे। चुनाव में बसपा को सिर्फ एक ही सीट हासिल हुई। चुनाव में मिली इस करारी हार के बाद ही बसपा सुप्रीमो मायावती ने ब्राह्मणों से दूरी बनानी भी शुरू कर दी। यहां तक पार्टी में अब सतीश चंद्र मिश्रा को भी नजरअंदाज किया जा रहा है। सतीश चंद्र मिश्रा के करीबी रहे पूर्व मंत्री नकुल दुबे को तो पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया गया। जिसके बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। 

प्रचारकों की लिस्ट में भी नहीं सतीश मिश्रा का नाम
ब्राह्मणों से बसपा की नाराजगी का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि यूपी की दो लोकसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए पार्टी ने 40 स्टार प्रचारकों की लिस्ट मई में जारी की थी। हालांकि इसमें सतीश चंद्र मिश्रा को जगह ही नहीं दी गई। उन्हें दिल्ली एमसीडी और गुजरात चुनाव से भी दूर रखा गया। इसके बाद काफी हद तक साफ हो चुका है कि मायावती किस रणनीति पर काम कर रही है। 

सतीश चंद्र मिश्रा ने नहीं छोड़ा मायावती का साथ
ज्ञात हो कि सतीश चंद्र मिश्रा मायावती के पुराने सहयोगी है और उन्होंने मुश्किलों के दौर में भी मायावती का साथ नहीं छोड़ा। पहली बार 2002 में भाजपा के सहयोग से बनी बसपा सरकार में वह एडवोकेट जनरल बने। इसके बाद जब 2003 में सरकार गिरी फिर भी सतीश मिश्रा ने मायावती का साथ दिया। उनके तमाम मुकदमों में सलाह देने के साथ वह पार्टी के रणनीतिकार भी बन गए। जब 2007 में बसपा को जीत मिली तो सतीश चंद्र मिश्रा का कद बढ़ा और जीत का श्रेय उनकी सोशल इंजीनियरिंग को ही मिला। इसके बाद 2012 चुनाव में जब बसपा की हार हुई तो भी वह मायावती के सलाहकार बने रहे। 2022 के चुनाव से पहले भी सतीश चंद्र मिश्रा ने पुराने फॉर्मूले के तहत ब्राह्मण सम्मेलन आदि चीजों को भी शुरू किया लेकिन उसका फायदा चुनाव में नहीं मिल सका। इसके बाद अब माना जा रहा है कि मायावती का ब्राह्मणों से मोह भंग हो गया है। इसी के चलते नए फॉर्मूले पर विचार किया जा रहा है। 

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