केशव प्रसाद मौर्य बीजेपी के लिए मजबूरी या जरूरत, इन वजहों से तय हुआ दोबारा डिप्टी सीएम की कुर्सी तक का सफर

योगी सरकार 2.0 के शपथग्रहण के दौरान केशव प्रसाद मौर्य ने एक बार फिर से डिप्टी सीएम सीएम के पद की शपथ ली। सिराथू से मिली हार के बावजूद केशव का कद बरकरार रखा गया। माना जा रहा है कि केशव के कद को बरकरार रखने के पीछे कई कारण हैं। 

Asianet News Hindi | Published : Mar 26, 2022 5:20 AM IST / Updated: Mar 26 2022, 11:42 AM IST

लखनऊ: सांगठनिक क्षमता और जुझारूपन के साथ ही आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद तक की करीबी ने एक बार फिर केशव प्रसाद मौर्य को उप मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा ही दिया। सिराथू से मिली शिकस्त के बाद केशव को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे थे। हालांकि राजनीतिक जानकर उस दौरान भी यही मान रहे थे कि केशव बीजेपी की जरूरत हैं और उन्हें संतुष्ट रखने का प्रयास जरूर किया जाएगा। वहीं विधानसभा चुनाव 2022 से पहले केशव ने श्री कृष्ण जन्मभूमि को लेकर जो बयान दिया उसने उनकी जरूरत को और भी मजबूत कर दिया। 

चुनाव के दौरान केशव के कई बयान खासा चर्चाओं में रहें। इन बयानों ने ही कई सीटों पर एकाएक बीजेपी के पक्ष में माहौल बना दिया। वहीं परिणाम आने के बाद बीजेपी के पोस्टरों में जिस तरह से केशव को तवज्जो दी गई उससे भी साफ हो गया कि उन्हें सरकार में बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी। पोस्टरों पर गौर किया जाए तो पीएम मोदी, सीएम योगी के साथ पोस्टर में केशव को जगह दी गई थी। 

पिछले चुनाव में दिलाई से 300 से अधिक सीटों पर जीत 
केशव प्रसाद के नेतृत्व पर मुहर तो बीते विधानसभा चुनाव 2017 में ही लग गई थी। उस दौरान प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के दम पर ही उन्होंने बीजेपी की झोली में 300 से ज्यादा सीटें दिलाई थीं। जिसके बाद उन्हें डिप्टी सीएम का पद दिया गया था। यूपी चुनाव 2022 में माना जा रहा था कि जीत के बाद केशव का कद और बढ़ेगा। हालांकि सिराथू से मिली हार ने इन कयासों पर विराम लगा दिया। 

पिछड़ी जाति का बड़ा चेहरा हैं केशव 
केशव प्रसाद मौर्य प्रदेश में पिछड़ी जाति का बड़ा चेहरा हैं। इसी लिहाज से उन्हें दोबारा यह बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। पार्टी नेतृत्व को आज भी केशव पर उतना ही भरोसा है। 

विपक्ष के खेमे में जाकर खिलाया कमल 
केशव प्रसाद को वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष रहे अशोक सिंघल की संस्तुति पर फूलपुर से प्रत्याशी बनाया गया था। केशव ने यहां पहली बार पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू की संसदीय सीट पर कमल खिलाने का काम किया। जिस सिराथू सिट से उन्हें 2022 के चुनाव में हार मिली है वहां भी उन्होंने 2012 में कमल खिलाने का काम किया था। 

केशव पर हैं विपक्ष की निगाहें 
भाजपा में पिछड़ी जाति का चेहरा केशव प्रसाद पर विपक्ष की निगाहें भी लगातार लगी हुई हैं। कई बार विपक्ष केशव को अपनी पार्टी में आने के लिए आमंत्रण सार्वजनिक मंचों से दे चुका है। जिसके बाद कयास तो यह भी लगाए जा रहे थे कि 2022 में यदि उन्हें कोई तरजीह नहीं मिलती है तो वह स्वामी प्रसाद मौर्य की तरह ही विपक्ष के खेमे में जा सकते हैं। हालांकि बीजेपी ने केशव का कद बरकरार रखकर विपक्ष को यहां पर भी मात दे दी है। 

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