जन्माष्टमी के अगले दिन 'नन्दोत्सव' मनाता है यह मुस्लिम परिवार, ऑफिस में लगा रखी है कृष्ण की मूर्ति

मथुरा में जन्माष्टमी के दूसरे दिन एक मुस्लिम परिवार नन्दोत्सव मनाता है। उनकी सात पीढ़ियां यहां बधाई गीत गाती आ रहीं हैं। उन्होंने कार्यालय में भगवान कृष्ण की मूर्ति रखी है। वो मूर्ति के सामने अगरबत्ती भी लगाते हैं।

Asianet News Hindi | Published : Aug 23, 2019 11:50 AM IST / Updated: Aug 23 2019, 06:24 PM IST

मथुरा। आज व कल देशभर में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाएगा। उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में बाल गोपाल आज जन्म लेंगे तो जन्म स्थान पर शनिवार को कृष्ण का प्राकट्योत्सव मनाया जाएगा। 25 अगस्त को गोकुल में नन्दोत्सव मनाया जाएगा। इस नन्दोत्सव में बधाई गीत गाए जाते हैं, शहनाईयां बजायी जाती है। बाल गोपाल के पोशाक को हिंदू-मुस्लिम कारीगर मिलकर बनाते हैं, यह सभी जानते हैं। लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि सात पीढ़ियों से यह बधाई गीत एक मुस्लिम परिवार के लोग गाते हैं। इसी परिवार के अकील कहते हैं कि हम धन्य हैं जो कृष्णा की धरती पर पैदा हुए और उनकी आशीर्वाद से हमारे परिवार को रोटी खाने को मिल रही है।  

यूं मिली बधाई गीत गाने की जिम्मेदारी
मथुरा के यमुनापारा के रामनगर के रहने वाले अकील खुदाबक्श-बाबूलाल नाम से बैंड चलाते हैं। अकील बताते हैं कि अपने पिता जी से मैंने सुना है कि परदादा शहनाई और बधाई गीत गाया करते थे। हमारे पुरखे गोकुल के मंदिरों में ढोल-नगाड़ा और शहनाई बजाया करते थे। एक बार गोकुल में इन्हें नन्दोत्सव में शहनाई बजाने के लिए बुलाया गया वहां पर उन्होंने बधाई गीत भी गाया। उनका गाना सभी को पसंद आया तबसे हमें ही हर बार गोकुल में बधाई गीत गाने का न्योता दिया जाता है। अकील कहते हैं कि यह किस्सा बहुत पुराना है। सात पीढियां हमारी गुजर गयी।  

16 लोग हैं टीम में, 11 मुस्लिम हैं 
अकील बताते हैं कि बैंड ग्रुप में 16 लोग हैं। जिनमें से 11 लोग हमारे परिवार के हैं। जबकि 5 लोग हिन्दू हैं। अकील बताते हैं कि 11 लोगों में ज्यादातर भाई-भतीजे हैं, जो इस काम में लगे हुए हैं। उन्होंने बताया कि पहले अब्बू बधाई गीत गाया करते थे उनकी मौत 3 साल पहले हो गयी उसके बाद से हम गाते हैं।

ऑफिस में कृष्ण की मूर्ति, बधाई गीत का पैसा नहीं लेते  
अकील का कार्यालय रामनगर में है। उनके कार्यालय में भगवान कृष्ण की मूर्ति रखी है। सुबह शाम मूर्ति के समक्ष अगरबत्ती भी जलाता हूं। कहा कि, भले हमारा मजहब अलग है लेकिन हमारे परिवार की रोजी रोटी तो कृष्णा ही चला रहे हैं। वे कहते हैं कि, मजहब एकता का नाम है। किसी को बांटने का नहीं। अकील ने बताया कि, जन्माष्टमी में जब हम नन्दोत्सव में बधाई गीत या शहनाई बजाते हैं तो कोई पैसा नहीं लेते हैं। वहां जो भी सेवा भाव से दे देता है वही लेते हैं। उन्होंने बताया जो प्रसाद मिलता है उसे भी घर लाकर सभी खाते हैं। 

Share this article
click me!