पालघर लिंचिंग; जान गंवाने वाले संन्यासी ने 12 साल की उम्र में छोड़ा था घर, हत्या की खबर से सन्न है परिवार

संत सुशील गिरी के दो भाई मुंबई में ही रहते हैं, लेकिन लॉकडाउन के चलते वे अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो सके। सुशील की मौत से उनके परिवार व गांव में हर कोई गमगीन है। सभी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से दोषियों पर कठोर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। 

Ankur Shukla | Published : Apr 21, 2020 12:16 PM IST

सुल्तानपुर (Uttar Pradesh) । महाराष्ट्र के पालघर में मॉब लिंचिंग की घटना को लेकर संत समाज में आक्रोश है। संत सुशील गिरि (35) के हत्या की जानकारी उनके परिवार के लोगों को सोशल मीडिया से हुई। बता दें कि वो सुल्तानपुर जिले के रहने वाले थे। महज 12 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया था। आखिरी बार वो नवंबर-दिसंबर 2019 में गांव में आयोजित एक विवाह समारोह में शामिल होने आए थे। उसके बाद रात में ही वापस चले गए थे।

हत्या के पहले भाई से हुई थी ये बात
16 अप्रैल को महाराष्ट्र के पालघर के गड़चिनचले गांव में दो साधुओं समेत तीन की पीट-पीटकर हत्‍या कर दी गई थी। यह पूरी घटना वहां मौजूद कुछ पुलिसकर्मियों के सामने हुई। आरोपियों ने साधुओं के साथ पुलिसकर्मियों पर भी हमला किया। इसके बाद साधुओं को अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। वैन चालक दोनों साधुओं को लेकर कांदिवली से सूरत जा रहा था। वहां एक अंतिम संस्कार में शामिल होना था। जिस दिन ये घटना हुई, उस दिन बड़े भाई से बात हुई थी तो उन्होंने बताया कि सुशील सूरत जा रहे हैं, गुरुजी का देहांत हुआ है।

इस तरह रिंकू से बने संत सुशील गिरी
सुल्तानपुर जिला मुख्यालय से करीब 38 किमी दूर चांदा कस्बा है। जूना अखाड़े के संत सुशील गिरि यहीं के रहने वाले थे। 35 वर्षीय सुशील गिरि महराज ने साल 1997 में 12 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था। सन्यास से पहले लोग संत सुशील गिरी को प्यार से रिंकू दुबे कहते थे। हालांकि, परिवार ने शिवनारायण दुबे नाम रखा था। छह भाई-बहनों में सुशील गिरि सबसे छोटे थे। परिवार के लोगों के मुताबिक तब वे कक्षा छह में पढ़ते थे। पिता की डांट से क्षुब्ध होने के बाद घर से निकलकर वो अपने ननिहाल पट्टी प्रतापगढ़ चले गए। वहां से बिना किसी को बताए एक ट्रेन से मुंबई पहुंच गए। यहां उनकी भेंट जूना अखाड़े के कुछ संतों से हो गई, जिसके बाद उन्होंने सन्यास ले लिया। वहां उन्होंने रामगिरि महाराज से दीक्षा लेकर पूजा-पाठ में रम गए।

बचपन के मित्र ने समझाया पर नहीं लौटे घर
सुशील गिरि के भाई शेष नारायण दुबे के मुताबिक साल 2005 में वह कानपुर एक सत्संग में आया था। वहां उनके बचपन के मित्र ज्वाला दूबे से उनकी भेंट हुई, उसने बहुत समझाया बुझाया तो वह घर आया। लेकिन, कुछ दिन रहकर चला गया। इसके बाद से बराबर उसका आना-जाना था। आखिरी बार नवंबर-दिसंबर 2019 में वो यहां पास के एक गांव में आयोजित एक विवाह समारोह में शामिल होने आए थे। उसके बाद रात में ही वापस चले गए थे।

अंतिम संस्कार भी नहीं कर पाए परिवार के लोग
संत सुशील गिरी के दो भाई मुंबई में ही रहते हैं, लेकिन लॉकडाउन के चलते वे अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो सके। सुशील की मौत से उनके परिवार व गांव में हर कोई गमगीन है। सभी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से दोषियों पर कठोर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। 

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