
प्रयागराज(Uttar Pradesh ). प्रयागराज में संगम की रेती पर माघ मेला चल रहा है। पूरे देश से लोग इस माघमेले में गंगा स्नान के लिए आकर पुण्य कमाने के लिए पहुंच रहे हैं। माघ मेले में ही कई साधु ऐसे हैं जो अपनी कठिन साधना कर रहे हैं। ऐसे ही एक साधु महर्षि दयाशंकर दास तपस्वी भी हैं। दयाशंकर दास तपस्वी से ASIANET NEWS HINDI ने बात किया। उन्होंने इस दौरान अपनी कठिन साधना और ऐसा करने का कारण बताया।
महर्षि दयाशंकर दास तपस्वी मूलतः मध्यप्रदेश के रीवा जनपद के पहाड़ी गांव के रहने वाले हैं। वह वाराणसी के पिखनी में अपना आश्रम बनाकर रहते हैं। दोनों पैरों से विकलांग होने के बावजूद भी वह कठिन साधना में लीन हैं। वह संगम की रेती में खाक चौक पर इन दिनों कल्पवास कर रहे हैं।
तीन साल की अवस्था में भयंकर बीमारी की चपेट में आने से हुए थे विकलांग
महर्षि दयाशंकरदास तपस्वी ने बताया "मेरी अवस्था सिर्फ तीन साल की थी उस समय मुझे पोलियों की बीमारी लग गई। मेरे घर वालों ने मेरा काफी इलाज करवाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। तब से मेरे दोनों पैर कमर के नीचे विकलांग हैं। मै चल-फिर नहीं सकता और न ही मै खड़ा हो सकता हूं।
ट्राई साइकिल से तय की हजारों किमी की दूरी
महर्षि दयाशंकर ने बताया "विकलांग होने के बावजूद मैंने 10 वीं क्लास तक पढ़ाई की। मै शुरू में RSS में जुड़ा था। जिससे वहां कुछ धार्मिक पुस्तकें पढ़ने को मिल जाती थीं। वहीं से मन अध्यात्म की ओर मुड़ गया। जिसके बाद मई अपनी ट्राईसाइकिल से शान्ति की खोज में अनजानी मंजिल पर निकल पड़ा। मैं रीवां से ट्राईसाइकिल से वाराणसी आया और वहां पेखनी गांव में एकांत स्थान पर तपस्या करने लगा। मै 12 सालों से वहीं साधना कर रहा हूँ। मै अपनी साइकिल से ही प्रयागराज,आजमगढ़,बलिया,जौनपुर,मऊ तमाम जनपदों में जाता हूं। माघ मेले में कल्पवास पर आया हूं।
12 वर्षों से कर दिया है अन्न का त्याग
महर्षि ने बताया "12 साल पहले जब मै अपने जन्मस्थान से वाराणसी के आया तो उसी समय से मैंने अन्न का त्याग कर दिया। 12 सालों में मैंने अन्न का एक दाना भी नहीं खाया है। मेरा भोजन रात्रि के 11 बजे होता है जिसका टाइम फिक्स है। देर होने पर मै उस दिन कुछ नहीं खाता हूं। मै खाने में केवल थोड़ी से मूंगफली और गुड़ खाता हूं। 12 वर्षों से मेरा यही के भोजन है। 24 घंटे में केवल एक बार रात्रि के 11 बजे ही खाता हूं।
12 वर्षों से हर मौसम में बिना कपड़ों के कर रहे तपस्या
महर्षि दयाशंकर ने बताया "जब मै वाराणसी पहुंचा और मैंने अपनी साधना शुरू की तब से मैंने वस्त्र का भी त्याग कर दिया। मै हर मौसम में केवल लंगोटी और एक रामनामी गमछे में ही रहता हूं। मै भयंकर धूप में भी अपने उसी फर्श पर खुले आसमान के नीचे लगे बदन तप करता हूं। सुबह 7 बजे से शाम 4 बजे तक मेरा तप करने का टाइम होता है। उसके बाद शाम 5 बजे से 7 बजे तक मैं लोगों से मिलता हूं। लोग अपनी तमाम समस्याएं लेकर आते हैं। उनकी समस्या दूर करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता हूं। बहुत से लोगों को लाभ भी हो जाता है।
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