डॉ अंबेडकर की लाइफ के किस्सेः छूना न पड़े इसलिए फाइल फेंक कर देता था चपरासी

डॉ अम्बेडकर ने ही सर्वप्रथम महिलाओं व मजदूरों  अधिकारों की वकालत की थी। हांलाकि इसके कारण उन्हें देश के कई बड़े नेताओं का तीखा विरोध भी झेलना पड़ा था। Asianet News Hindi ने प्रसिद्ध इतिहासकार व डॉ भीमराव अम्बेडकर के जीवन पर लंबा शोध करने वाले डॉ पीयूष कान्त शर्मा से बात की। उन्होंने डॉ अम्बेडकर के जीवन से जुड़े हुए कई अनसुने पहलू शेयर किए। 

Ujjwal Singh | Published : Apr 14, 2020 6:10 AM IST / Updated: Apr 14 2020, 11:50 AM IST

लखनऊ(Uttar Pradesh). आज संविधान के निर्माता डॉ भीम राम अम्बेडकर का  जन्मदिवस है। आजाद भारत के पहले कानून मंत्री रहे डॉ भीमराव अम्बेडकर एक अर्थशास्त्री, राजनेता और समाज सुधारक थें, जिन्होंने दलित समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी, जिन्हें अछूत माना जाता था। डॉ अम्बेडकर ने ही सर्वप्रथम महिलाओं व मजदूरों  अधिकारों की वकालत की थी। हांलाकि इसके कारण उन्हें देश के कई बड़े नेताओं का तीखा विरोध भी झेलना पड़ा था। Asianet News Hindi ने प्रसिद्ध इतिहासकार व डॉ भीमराव अम्बेडकर के जीवन पर लंबा शोध करने वाले डॉ पीयूष कान्त शर्मा से बात की। उन्होंने डॉ अम्बेडकर के जीवन से जुड़े हुए कई अनसुने पहलू शेयर किए। 

डॉ भीम राव अम्बेडकर का जन्म मध्य प्रदेश के महू में 14 अप्रैल 1891 को हुआ था। उनका जन्म दलित समुदाय के अंतर्गत आने वाले महार जाति में हुआ था। उस समय देश छुआछूत और जातियों का वर्गीकरण चरम पर था। डॉ अम्बेडकर को बचपन से ही इन सब चीजों से दो-चार होना पड़ा था। हांलाकि उनके पिता मां व उनकी बहन उन्हें इन सब चीजों से दूर रखने के पूरा प्रयास करते थे। डॉ अम्बेडकर बचपन से ही कुछ अलग करने में विश्वास रखते थे। बताया जाता है कि वह शुरू से ही घर में सबसे कहते थे कि उन्हें बैरिस्टर बनना है। बैरिस्टर बनना मानो उनका सपना ही थी। 

महज 15 साल की आयु में हो गई थी शादी 
डॉ अम्बेडकर की विवाह साल 1906 में रमाबाई से  कर दिया गया। उस उनकी उम्र मात्र 15 साल की थी। देश में उन दिनों बालविवाह का प्रचलन चल रहा था। 1907 में उन्होंने मैट्रिक पास की और फिर 1908 में उन्होंने एलफिंस्टन कॉलेज में प्रवेश लिया। इस कॉलेज में प्रवेश लेने वाले वे पहले दलित छात्र थे। 1912 में उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स व पॉलिटिकल साइंस से डिग्री ली। 

बड़ौदा नरेश की फेलोशिप पर पढ़ने के लिए गए विदेश 
डॉ पीयूषकांत शर्मा ने बताया कि डॉ अम्बेडकर पढ़ने में बहुत तेज थे इनकी प्रतिभा को देखते हुए बड़ौदा नरेश सहयाजी राव गायकवाड़ ने इन्हे फेलोशिप दी। उन्ही के कहने पर ये आगे की पढ़ाई के लिए साल 1915 में अमेरिका चले गए। न्यूयार्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी से इन्होने एमए किया। उसी यूनिवर्सिटी से डॉ भीमराव अम्बेडकर ने पीएचडी भी किया। ये बड़ी ख़ास बात है कि डॉ अम्बेडकर को डॉक्टरेट की चार उपाधियां मिली हैं। लंदन यूनिवर्सिटी ऑफ इकोनॉमिक्स  एन्ड पोलिटिकल साइंस, उस्मानिया यूनिवर्सिटी ने इन्हे डॉक्टरेट की उपाधि दी। बाद में कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने इन्हे फिर से एक डॉक्टरेट की उपाधि दी। 

शर्त के अनुसार बड़ौदा नरेश के यहां की नौकरी 
डॉ शर्मा ने बताया विदेश से पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉ अम्बेडकर वापस बड़ौदा आए और बड़ौदा नरेश के यहां नौकरी की। बड़ौदा नरेश के दरबार में इन्हे वित्तीय सलाहकार व सैन्य अधिकारी की नौकरी की। लेकिन डॉ अम्बेडकर ज्ञान पिपासु थे इसलिए पढ़ाई के प्रति उनका लगाव बना रहा। 

छूना न पड़े इसलिए फाइल फेंक कर देता था चपरासी 
डॉ शर्मा बताते हैं कि कई जगह इसका उल्लेख मिलता है कि जब डॉ अम्बेडकर बड़ौदा नरेश के यहां वित्तीय सलाहकार थे तो उनका चपरासी भी उनसे छुआछूत का व्यवहार करता था। डॉ अम्बेडकर जब चपरासी से कोई फाइल मंगाते थे तो वह फाइल लाने के बाद वह डॉ अम्बेडकर के पास फाइल फेंक देता था। उसका आशय ये था कि यदि फाइल देते समय अगर गलती से डॉ अम्बेडकर ने उसे छू लिया तो वह भी अछूत हो जाएगा। क्योकि डॉ अम्बेडकर दलित थे और उस समय दलितों को छूना पाप माना जाता था। 

कालेज में की प्रोफेसर की नौकरी लेकिन वहां भी छुआछूत 
डॉ शर्मा के मुताबिक डॉ भीमराव अम्बेडकर की जहां पिपासा शांत नहीं हुई थी। इसलिए उन्होंने बड़ौदा नरेश की नौकरी छोड़ दी और लंदन चले गए। वहां इन्होने लंदन के लॉ के सबसे बड़े सेंटर ग्रेजिया से बैरिस्टर की डिग्री ली। चूंकि ये इनका बचपन का सपना भी था। वहां से डॉ अम्बेडकर वापस मुम्बई आए और यहां सिडनेम कालेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी शुरू की। लेकिन इस भेदभाव ने वहां भी इनका पीछा नहीं छोड़ा। ये बहुत विद्वान थे इसलिए इनके कई सहकर्मी इनका बहुत सम्मान करते थे जबकि कुछ दलित होने के नाते इन्हे अच्छी दृष्टि से नहीं देखते थे। यहां तक कि उन लोगों ने कालेज में पानी पीने के लिए डॉ अम्बेडकर की गिलास तक अलग करने की सिफारिश कर दी। 

परेशान होकर कर दी धर्म परिवर्तन की घोषणा 
डॉ पीयूषकांत शर्मा बताते हैं कि भीमराव अम्बेडकर समाज में फैली कुरीतियों से परेशान होकर धर्म परिवर्तन की घोषणा कर दी। ये सूचना जैसी ही हैदराबाद के निजाम और ईसाई मिशनरियों को हुई तो वह इनके पीछे पड़ गए। ये डॉ अंबडेकर को अपने धर्म में लाना चाहते थे इसके लिए इन्हे प्रलोभन भी दिया गया। लेकिन वह तैयार नहीं हुए और नागपुर में 5000 दलितों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। 

आजाद भारत के पहले कानून मंत्री थे डॉ अम्बेडकर 
डॉ अम्बेडकर देश आजाद होने के बाद पहले कानून मंत्री बनाए गए। 1951 में इन्होंने हिन्दू संहिता विधेयक नाम का एक बिल पेश किया। इस बिल में महिला सशक्तिकरण को लेकर महिलाओं को तमाम अधिकार देने संबंधी कानून थे। लेकिन उस समय देश के कई बड़े नेताओं ने इसका विरोध किया जिसके बाद इन्होने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दिया। 29 अगस्त 1947 को वे संविधान ड्राफ्टिंग कमेटी के चैयरमेन नियुक्त किए गए थे। 16 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपनाया। 6 दिसंबर 1956 को डॉ भीमराव अम्बेडकर का निधन हो गया।

Share this article
click me!