कारगिल युद्ध दिवस के दिन याद आए अमर सपूत कैप्टन मनोज पांडेय, पाकिस्तानी घुसपैठियों को ऐसे सिखाया था सबक

पाकिस्तानी घुसपैठियों ने चोरी छुपे जिस जगह पर घुसपैठ किया था, उस जगह को भारत के वीर सपूत कैप्टन मनोज पांडे ने अपनी जान की परवाह ना कर घुसपैठियों के कब्जे से मुक्त कराया। अमर सपूत कैप्टन मनोज पांडेय ने अपना बलिदान देकर ना सिर्फ मातृभूमि की रक्षा की, बल्कि करोड़ों देशवासियों के लिए नजीर भी कायम की।

लखनऊ: अमर सपूत कैप्टन मनोज पांडेय भारत के इतिहास में दर्ज एक ऐसा नाम है जिसको कभी भुलाया नहीं जा सकता। पाकिस्तानी घुसपैठियों को धूल चटाने वाले कैप्टन मनोज पांडेय का आज पूरा देश कारगिल युद्ध दिवस के अवसर पर याद कर रहा है। साल 1999 में हुए कारगिल युद्ध के दौरान बहुत से भारतीय जांबाजो ने अपनी कुर्बानी दी। यह जवानों का बलिदान ही था कि जो हिस्सा भारत के नियंत्रण से बाहर जा रहा था, उस पर दोबारा से नियंत्रण किया जा सका।

उत्तर प्रदेश के वीर बलिदानी अमर शहीद कैप्टन मनोज पांडेय की वीरगाथा ही अलग है। परमवीर चक्र विजेता ( मरणोपरांत) अमर शहीद मनोज पांडेय को आज पूरा भारत याद कर रहा है और उनकी बात कर रहा है। जानकारी के मुताबिक पाकिस्तानी घुसपैठियों ने चोरी छुपे जिस जगह पर घुसपैठ किया था, उस जगह को भारत के वीर सपूत कैप्टन मनोज पांडे ने अपनी जान की परवाह ना कर घुसपैठियों के कब्जे से मुक्त कराया। अमर सपूत कैप्टन मनोज पांडेय ने अपना बलिदान देकर ना सिर्फ मातृभूमि की रक्षा की, बल्कि करोड़ों देशवासियों के लिए नजीर भी कायम की।

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सैनिक स्कूल में एडमिशन के बाद सेना में जाने का बनाया मन
अमर सपूत कैप्टन मनोज पांडेय कारगिल युद्ध के उन नायकों में से एक थे,जिनके जीवन के बलिदान से युद्ध की विजय गाथा लिखी गई। अमर शहीद कैप्टन मनोज पांडे के पिता का नाम गोपीचंद पांडेय है। बताया जाता है कि कैप्टन मनोज पांडे ने अपनी स्कूली शिक्षा राजधानी के सर्वोदय नगर स्थित रानी लक्ष्मी बाई स्कूल से प्राप्त की थी। लेकिन सेना में उनका जाने का मन तब हुआ जब उनका एडमिशन सैनिक स्कूल में हुआ। वहीं से उनको शिक्षण के दौरान मातृभूमि की सेवा करने की प्रेरणा मिली। यहीं से उन्होंने देश रक्षा के लिए पहला कदम बढ़ाया था।

परमवीर चक्र जीतना था उनका सपना
बताया जाता है कि सेना में भर्ती होने के लिए 67 युवकों का साक्षात्कार हुआ था, लेकिन उनमें मनोज पांडेय ही ऐसे प्रतिभागी थे । जिन्होंने साक्षात्कार पास किया था। साथ ही अपने साक्षात्कार के दौरान ही मनोज पांडे ने कहा था कि उनका उद्देश्य परमवीर चक्र पाना है।

साल 1999 में 5 मई के दिन कैप्टन मनोज पांडेय कारगिल युद्ध में हिस्सा लेने पहुंचे, करीब 2 महीने तक लगातार युद्ध चलते रहने के बाद उन्हें खालूबार चोटी को फतेह करने का टारगेट मिला। उस 7 किलोमीटर लंबी चोटी पर करीब 45 पाकिस्तानी घुसपैठिए कब्जा जमाए बैठे हुए थे, जो भी सैनिक उस चोटी की तरफ रुख करता। चोटी पर बैठे पाकिस्तानी घुसपैठिए उस पर हमला बोल देते हैं। इस चोटी को घुसपैठियों के चंगुल से छुड़ाने के लिए कई जवानों ने अपनी शहादत दी थी। करीब 18000 फुट की ऊंचाई पर उन पाकिस्तानी घुसपैठियों से टक्कर लेना आसान नहीं बताया जा रहा था। इस कठिन काम को करने का जिम्मा कैप्टन मनोज पांडेय ने उठाया। जो काम औरों के लिए मुश्किल था,उस काम को कैप्टन मनोज पांडेय ने अपने दम पर चार बंकर तबाह करते हुए कर दिखाया।

गोली लगने के बाद भी पाकिस्तानी घुसपैठियों से लोहा लेते रहे कैप्टन
कैप्टन मनोज पांडे ने युद्ध के दौरान जब तीसरे बंकर को नष्ट किया, उसी दौरान चौथे बनकर से उन पर हमला हुआ था। छुपकर पाकिस्तानी घुसपैठियों ने उन पर गोली चलाई थी, वह गोली सीधे उनके सिर में लगी थी। उसके बावजूद दुश्मनों को ललकारते हुए उन्होंने पाकिस्तानियों को जमींदोज कर दिया और कारगिल पर जीत दर्ज की।

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