ज्ञानवापी परिसर में स्थित शृंगार गौरी के नियमित दर्शन व अन्य विग्रहों के संरक्षण की याचिका पर जिला जज की अदालत में बुधवार को हिंदू पक्ष की बहस पूरी हो गई। इसके बाद कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख गुरुवार की तय की है।
वाराणसी: उत्तर प्रदेश में बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में ज्ञानवापी मस्जिद मामले को लेकर बुधवार 13 जुलाई को जिला अदालत के जज एके विश्वेश की कोर्ट में सुनवाई की गई। बुधवार को कोर्ट में हिंदू पक्ष ने अपनी दलीलें रखीं। अदालत में हिंदू पक्ष के वकील हरिशंकर जैन ने कोर्ट में कहा कि 1991 का वरशिप एक्ट किसी भी तरीके से इस मामले में लागू नहीं होता है। जिस जमीन पर मुस्लिम पक्ष दावा कर रहा है वो जमीन आदि विश्वेश्वर महादेव की है। उस पर जबरजस्ती नमाज पढ़ी जा रही है। हालांकि कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए गुरुवार की तारीख रखी है। बुधवार को हुई इस मामले में करीब ढाई घंटे तक कोर्ट की बहस हुई।
दलीलों को पेश करने के दौरान इन बातों का किया जिक्र
हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने सुप्रीम कोर्ट में राइट टू वॉरशिप ऐक्ट पर पुराने केस का हवाला दिया। 16वीं शताब्दी का इतिहास बताया, 8 मंडपों का जिक्र किया। साथ ही काशी का इतिहास, वैभव काशी का हवाला दिया गया। हरिशंकर ने सर्वे के दौरान शंख, गदा, चक्र, त्रिशूल, कमल, सूर्य के प्रमाण को लेकर कहा कि यह साबित करते हैं कि यह मंदिर ही है। आगे कहते है कि पश्चिम में ध्वंस आराध्य स्थल में हिंदू प्रतीकों की बहुल्यता यह साबित करती है कि यही आदि विश्वेश्वर हैं। इस दौरान कोर्ट में वकील कमिश्नर रह चुके विशाल सिंह भी उपस्थित रहे।
हिंदू पक्ष के वकील को हटाने के लिए दाखिल हुई याचिका
बता दें कि इससे पहले मंगलवार को मुस्लिम पक्ष ने अपनी दलीलों को पूरा कर लिया था। इसके बाद हिंदू पक्ष ने दलीलें रखी थी। लेकिन सुनवाई से पहले मुस्लिम पक्ष ने नई याचिका दाखिल की है। जिसमें हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन को हटाने की मांग की गई है। साथ ही कहा गया है कि विष्णु जैन वादी और प्रतिवादी दोनों पक्षों से केस लड़ रहे हैं। तो वहीं दूसरी ओर मुस्लिम पक्ष की तरफ से लगाई गई याचिका पर हिंदू पक्ष के वकील जैन ने कहा कि तकनीकी के आधार पर की याचिका खारिज हो जाएगी। उन्होंने आगे कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार को रिप्रेजेंट करते हैं। लेकिन यहां हिंदू पक्ष की तरफ से बहस कर रहे हैं। इतना ही नहीं उन्होंने यह भी दावा किया है कि यूपी सरकार की तरफ से उन्होंने वकालतनामा दाखिल नहीं किया है। आगे कहते है कि ऐसे में इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार सिर्फ एक फॉर्मल पार्टी ही है।