Video: शिव की निंदा पर नाखून से काटा ब्रह्मा जी का पांचवा मुख, राजस्थान में दुर्लभ है इस देवता के दर्शन

पौराणिक कथा के अनुसार रुद्र अवतार के रूप में भैरुंजी का अवतरण मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। ऐसे मे इस दिन उनकी पूजा से भैरूंजी ज्यादा प्रसन्न होते हैं। राजस्थान के सीकर के रींगस में लगता है मेला 

वीडियो डेस्क।  राजस्थान के सीकर जिले के रींगस में भैरुंजी के वार्षिक लक्खी मेले में दिनभर से श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। देशभर से श्रद्धालु यहां भैरुंजी महाराज के शीश नवाने पहुंच रहे हैं। जात- जडूले भी उतारे जा रहे हैं। भीड़ का आलम ये है कि करीब छह से सात घंटे कतार में लगने के बाद श्रद्धालु मंदिर तक पहुंच पा रहे हैं।  इधर, श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए स्थानीय प्रशासन व पुलिस  ने बेरीकेडिंग्स सहित छाया- पानी के माकूल इंतजाम मेले में कर रखे हैं। 

रींगस से शुरू हुई थी भैरूंजी की पृथ्वी परिक्रमा
रींगस के भैरुंजी की देशभर में विशेष मान्यता है। पौराणिक कथाओं के अुनसार ब्रह्मा जी के पांचवे मुख ने जब भगवान शिव की निंदा की तो भैरुंजी ने महादेव के पांचवे रूद्र के रूप में अवतार लेकर ब्रम्हाजी के पांचवे मुख को अपने नाखून से धड़ से अलग कर दिया था। जिसके बाद ब्रम्हा हत्या का पाप लगने पर उन्हें तीनों लोकों की यात्रा का उपाय बताया गया। मान्यता है कि जब भैरुंजी इसी यात्रा के लिए पृथ्वी पर आए तो उन्होंने रींगस से ही अपनी यात्रा की शुरुआत की थी। जिसकी वजह से उनका पहला मंदिर रींगस में ही निर्मित हुआ।

गुर्जर जाति के पुजारी करते हैं पूजा
मंदिर में पूजा का काम गुर्जर जाति के पुजारी करते हैं। पुजारी के अनुसार उनके पूर्वज मंडोर जाति के थे जो गाय चराते समय भैरुंजी की मूर्ति को साथ में रखते। करीब 200 साल पहले जब वे रींगस आए तो यहां मूर्ति रखने के बाद वह फिर नहीं हिली। इसी दौरान आकाशवाणी हुई,  जिसमें ब्रम्हा हत्या के पाप की वजह से भैरुंजी ने पृथ्वी की यात्रा  रींगस से शुरू करने की बात कहते हुए मूर्ति की यहीं स्थापना की बात कही। जिसके बाद से ही मूर्ति यहां स्थापित है। शुरु में छोटे रूप में बने मंदिर को अब काफी विस्तार दिया जा चुका है। 

पुआ-पकौड़ी का लगता है भोग

पौराणिक कथा के अनुसार रुद्र अवतार के रूप में भैरुंजी का अवतरण मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। ऐसे मे इस दिन उनकी पूजा से भैरूंजी ज्यादा प्रसन्न होते हैं। हालांकि भैरुंजी का मेला चैत्र नवरात्रि, वैशाख शुक्ल पक्ष में, भाद्रपद शुक्ल पक्ष में आश्विन नवरात्रि में, माघ शुक्ल पक्ष में भरते हैं। जिसमें भैरुंजी को पुआ-पापड़ी, बाटी-बाकले और लौंग पतासे चढ़ाये जाते हैं।

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