बड़ा नाम होना और उससे मिलता जुलता नाम होना कई बार परेशानी का सबब बन जाता है। कुछ ऐसा ही सपा संरक्षक मुलायम सिंह के साथ भी कई बार हुआ। यूपी की राजनीति में कई बार उन्हें अपनी नामऱाशि वाले उम्मीदवारों से चुनौती का सामना करना पड़ा। ऐसा ही वाकया 1989 में भी उनके साथ हुआ जब मुलायम सिंह को नाम बदलकर चुनाव लड़ना पड़ा।
वाकया साल 1989 का है। यह वही विधानसभा चुनाव है जिसके बाद से कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन तलाश रही है। इस चुनाव ने कांग्रेस को अर्श से फर्श तक पहुंचा दिया। इससे पहले 1980 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 425 सीटों में से 309 सीटों पर शानदार जीत मिली थी। इसके बाद 1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 269 सीटें मिली और पार्टी को 40 सीटों का नुकसान हुआ।
वर्ष 1989 के इसी चुनाव में एक वक्त ऐसा भी आया जब मुलायम सिंह यादव अपने नाम की वजह से परेशान हो गए। तब मुलायम सिंह जसवंत नगर विधानसभा सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे। इसी सीट से एक और मुलायम सिंह यादव मैदान में थे। एक ही नाम के दो प्रत्याशियों को लेकर जनता ऊहापोह की स्थिति में थी।
उस समय मुलायम सिंह यादव को पूरे प्रदेश में जाना-पहचाना लगा था, लेकिन निर्दलीय प्रत्याशी ने उनके सामने नाम को लेकर चुनौती तो खड़ी कर ही दी थी। प्रिटिंग में गए बैनर, पोस्टर को रुकवाया गया। मतदाताओं के बीच खुद को प्रचारित करने के लिए उन्हें अपने नाम में पिता का नाम सुघड़ सिंह जोड़ना पड़ा और बैलेट पेपर पर उनका नाम छपा- मुलायम सुघड़ सिंह यादव।
हालांकि मुलायम को मुलायम से चुनौती दिलाने की विपक्ष की वह तरकीब काम नहीं आयी और निर्दलीय मुलायम महज 1032 वोट हासिल कर पाये और असली वाले मुलायम सिंह यादव ने 64.5 हजार वोटों से बड़ी जीत हासिल की।
हालांकि मुलायम को मुलायम से चुनौती दिलाने की विपक्ष की वह तरकीब काम नहीं आयी और निर्दलीय मुलायम महज 1032 वोट हासिल कर पाये और असली वाले मुलायम सिंह यादव ने 64.5 हजार वोटों से बड़ी जीत हासिल की।
यूपी चुनाव में मुलायम सिंह यादव बनाम मुलायम सिंह यादव वाला सीन कई बार साने आया। हालांकि सपा संरक्षक को इसकी वजह से ज्यादा नुकसान नहीं हुआ।