राकेश टिकैत का मेरठ में हुआ कुछ इस तरह स्वागत, वीडियो देंखे

राकेश टिकैत दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर से अपने गांव मुजफ्फरनगर से सिसौली के लिए रवाना हो रहे हैं. इस दौरान मोदीनगर, मेरठ, खतौली,  मंसूरपुर, सौरम चौपाल में टिकैत का भव्य स्वागत होगा, राकेश टिकैत शाम चार बजे के करीब सिसौली पहुंचेंगे। सिसौली पहुंचकर टिकैत सबसे पहले उस चबूतरे पर जाएंगे जहां इन्होंने कृषि कानून रद्द होने तक घर वापस न लौटने का प्रण लिया था। आपको बता दें कि इसी चबूतरे पर बैठकर कभी किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत सर्वखाप के फैसले लिया करते थे जो राकेश टिकैत के पिता थे। 

मेरठ: कृषि कानूनों (Farmer Bill) के रद्द होने के बाद आज आंदोलनकारी किसान दिल्ली बॉर्डर (Delhi Border) को पूरी तरह खाली कर देंगे। किसानों का आखिरी जत्था आज दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर के मुजफ्फरनगर लौट जाएगा। किसान आंदोलन का सबसे बड़ा चेहरा जिसकी एक आवाज पर देशभर के किसान एकजुट हुए, जिसकी जिद्द के आगे सरकार को भी झुकना पड़ा वो राकेश टिकैत (Rakesh Tikait), 383 दिन बाद आज अपने घर लौट रहे हैं।

राकेश टिकैत दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर से अपने गांव मुजफ्फरनगर से सिसौली के लिए रवाना हो रहे हैं. इस दौरान मोदीनगर, मेरठ, खतौली,  मंसूरपुर, सौरम चौपाल में टिकैत का भव्य स्वागत होगा, राकेश टिकैत शाम चार बजे के करीब सिसौली पहुंचेंगे। सिसौली पहुंचकर टिकैत सबसे पहले उस चबूतरे पर जाएंगे जहां इन्होंने कृषि कानून रद्द होने तक घर वापस न लौटने का प्रण लिया था। आपको बता दें कि इसी चबूतरे पर बैठकर कभी किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत सर्वखाप के फैसले लिया करते थे जो राकेश टिकैत के पिता थे। 

राकेश टिकैत की घर वापसी को लेकर सर्वखाप मुख्यालय सौरम और भारतीय किसान यूनियन के मुख्यालय सिसौली में जोरदार तैयारियां की गई हैं। सिसौली में किसान भवन को खूबसूरत रोशनी से सजाया गया है, 11 क्विंटल लड्डू बनाए जा रहे हैं, तैयारियों की कमान खुद भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत संभाल रहे हैं। 

दोबारा धरने पर लौट सकते हैं किसान

राकेश टिकैत भले ही घर लौट रहे हों लेकिन इनके तेवर अभी भी नरम नहीं पड़े हैं, कल जींद में हरियाणों के टोलों पर धरना खत्म करने का एलान करते हुए टिकैत ने सरकार को चेताया कि अगर 15 जनवरी तक वादे पूरे नहीं हुए तो किसान वापस भी लौट सकते हैं. टिकैत ने कहा कि किसानों से अपील की कि वे आंदोलन की याद को जिंदा रखने के लिए अपने-अपने घरों में आंदोलन के नाम का एक-एक पेड़ अवश्य लगाएं जिससे पर्यावरण भी बढ़ेगा और आंदोलन की याद भी ताजा रहेगी।

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