Kissa UP Ka: छात्र राजनीति से लेकर बलिया से प्रत्याशी बनाए जाने तक...कुछ ऐसा था BJP के दयाशंकर सिंह का सफर

दयाशंकर सिंह मूलरूप से बिहार के बक्सर के रहने वाले हैं, जो बलिया से सटा हुआ है। दयाशंकर की पढ़ाई और शुरुआती राजनीति की शुरुआत भी बलिया से ही होती है।  1972 में जन्मे दयाशंकर सिंह ने अपने पॉलिटिकल करियर की शुरुआत छात्र राजनीति से की थी। वह लखनऊ विश्वविद्यालय में कॉलेज के दिनों में एबीवीपी के सदस्य थे। 1997 से लेकर 1998 तक दयाशंकर लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के महासचिव रहें। इसके बाद 1998 से 1999 तक वह अध्यक्ष भी रहे। 

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों की तैयारियां जारी हैं। चुनाव के दौरान कुछ नाम खूब चर्चा में रहें। इन्हीं में से एक नाम मंत्री स्वाति सिंह का भी हैं। जिनका टिकट काटकर सरोजिनीगर से नए चेहरे को प्रत्याशी बनाया गया। इस सीट से एक और दावेदार भी थे जो खूब चर्चाओं में रहते हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं स्वाति सिंह के पति दयाशंकर सिंह की। जिन्हें भाजपा ने बलिया से टिकट दिया है। आज हम आपको दयाशंकर सिंह के जीवन से जुड़ा किस्सा ही बताने जा रहे हैं। 

दयाशंकर सिंह मूलरूप से बिहार के बक्सर के रहने वाले हैं, जो बलिया से सटा हुआ है। दयाशंकर की पढ़ाई और शुरुआती राजनीति की शुरुआत भी बलिया से ही होती है।  1972 में जन्मे दयाशंकर सिंह ने अपने पॉलिटिकल करियर की शुरुआत छात्र राजनीति से की थी। वह लखनऊ विश्वविद्यालय में कॉलेज के दिनों में एबीवीपी के सदस्य थे। 1997 से लेकर 1998 तक दयाशंकर लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के महासचिव रहें। इसके बाद 1998 से 1999 तक वह अध्यक्ष भी रहे। 

यह किस्सा 1999 से जुड़ा है। उस समय प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार थी। इसी के साथ उस समय विश्वविद्यालय में स्टूडेंट यूनियन के चुनाव भी थे। ABVP की ओर से कैंडिडेट और कोई नहीं बल्कि दयाशंकर सिंह थे। कैंपस में दयाशंकर सिंह की दबंग छवि बनी हुई थी। कहा जाता है उस समय विश्वविद्यालय में छात्रों के दो गैंग चलते थे। इसमें से सामने वाले गैंग के एक लड़के का कत्ल 1998 में हुआ था। उसी मामले को लेकर दयाशंकर सिंह के खिलाफ भी रिपोर्ट हुई थी। लेकिन पुलिस उन पर हाथ नहीं डाल पाई थी। इसका कारण और कुछ नहीं बल्कि यह था कि दयाशंकर सीएम कल्याण सिंह के खास थे। कथिततौर पर उन्हें बचाने के लिए ही जांच क्राइम ब्रांच को ट्रांसफर की गई थी। 

साल 2000 में दयाशंकर सिंह को भाजपा युवा मोर्चा का उत्तर प्रदेश सचिव बनाया गया। इसके बाद वह कई पदों पर रहे और 2007 में भाजयुमो प्रदेश अध्य़क्ष बन गए। दयाशंकर सिंह ने पहली बार 2007 में बलिया नगर सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें करारी हार मिली। दयाशंकर सिंह को 7 हजार वोट मिले और उनकी जमानत जब्त हो गई। हालांकि इसके बाद वह फिर से कार्यसमिति में वापस आ गए। यहां 2010 औऱ 2012 में वह दो बार उत्तर प्रदेश बीजेपी के प्रदेश मंत्री बनाए गए। इसके बाद 2015 में उन्हें यूपी बीजेपी का उपाध्यक्ष बनाया गया। मार्च 2016 में फिर से यूपी विधान परिषद का चुनाव हुआ जिसमें उन्हें टिकट मिला। हालांकि 2007 की तरह ही इस बार भी चुनाव में दयाशंकर सिंह को हार मिली। 

2022 के चुनाव में भी जब सरोजिनीनगर सीट से दयाशंकर सिंह और स्वाति सिंह यानी की पति पत्नी दोनों ही दावेदारी पेश की तो विवाद देखा गया। हालांकि बाद में दोनों को ही सरोजिनीनगर से टिकट नहीं मिला। भाजपा ने सरोजिनीगर से ED के पूर्व अधिकारी राजेश्वर सिंह को टिकट दिया तो दयाशंकर सिंह को बलिया नगर से प्रत्याशी बनाया। हालांकि स्वाति सिंह को इस चुनाव में कहीं से भी प्रत्याशी नहीं बनाया गया।

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