प बंगाल विधानसभा चुनाव के रुझानों में पोरिबोर्तन पर खेला होबे भारी नजर आ रहा है। यानी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तीसरी बार आसानी से सत्ता में आती नजर आ रही हैं। बंगाल में भाजपा 2016 से बेहतर प्रदर्शन करने में तो सफल रही, लेकिन यह इतना भी अच्छा नहीं कि विनर बन सके। भाजपा ने यह चुनाव बिना मुख्यमंत्री के चेहरे यानी एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर लड़ा था। वहीं, टीएमसी का चेहरा ममता बनर्जी थीं।
नई दिल्ली. प बंगाल विधानसभा चुनाव नतीजों में पोरिबोर्तन पर खेला होबे भारी पड़ा। यानी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तीसरी बार आसानी से सत्ता में आ गईं। बंगाल में भाजपा 2016 से बेहतर प्रदर्शन करने में तो सफल रही, लेकिन यह इतना भी अच्छा नहीं कि विनर बन सके। भाजपा ने यह चुनाव बिना मुख्यमंत्री के चेहरे यानी एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर लड़ा था। वहीं, टीएमसी का चेहरा ममता बनर्जी थीं। ऐसे में ममता-मोदी की इस टक्कर में दीदी भारी नजर आई हैं। ऐसे में सवाल उठने लगा है कि क्या 2024 के लिए ममता विपक्ष का चेहरा बन सकती हैं, आईए जानते हैं कि ममता की जीत के क्या मायने हैं?
1- क्या दिल्ली तक होगी ममता की धमक
ममता लगातार केंद्र सरकार यानी मोदी और शाह का विरोध करती रही हैं। उन्होंने कई बार अपने मंच पर विपक्ष को एक साथ लाने की कोशिश की है। 2019 के लोकसभा चुनाव में धराशायी हुए विपक्ष को साधने वाली छड़ी तक बताया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि 2019 के बाद बंगाल पहला राज्य है, जहां भाजपा को हार मिली। इससे पहले भाजपा दिल्ली, झारखंड में भी हार चुकी है। लेकिन बंगाल एक बड़ा राज्य है, यहां 42 लोकसभा की सीटें हैं। खास बात ये है कि ममता उन नेताओं में से हैं जो सीधे तौर पर मोदी-शाह के खिलाफ मोर्चा खोलती रही हैं, ऐसे में टीएमसी के नेता ममता को राष्ट्रीय नेता तक कहने लगे हैं।
2- बंगाल में भाजपा के चक्रव्यूह को तोड़ने में कामयाब रहीं ममता
भाजपा ममता सरकार पर मुस्लिम तुष्टिकरण, घुसपैठ, भ्रष्टाचार, तोलेबाजी जैसे आरोप लगाकर हमलावर थी। लेकिन जनता ने ममता बनर्जी को प्रचंड बहुमत के साथ चुनकर भाजपा के आरोपों का खंडन कर दिया। बंगाल ऐसा राज्य था, जहां भाजपा ने पूरा दमखम लगा दिया था। लेकिन इसके बावजूद ममता अपना गढ़ बचाने में सफल रहीं। ममता लगातार चुनाव में कह रही थीं कि बंगाल को बंगाल के लोग चलाएंगे। यानी ममता जनता तक अपनी बात पहुंचाने में सफल रहीं।
3- कांग्रेस की स्थिति और कमजोर होगी
बंगाल में ममता की जीत के दो कारण हैं, पहला भाजपा की हार और दूसरा कांग्रेस का चुनाव में पहले ही हार मान लेना। यानी कांग्रेस ने अन्य राज्यों की तरह बंगाल में दिलचस्पी नहीं दिखाई। दरअसल, कांग्रेस को पता था कि वह अगर चुनाव में जोर लगाएगी, तो निश्चित तौर पर टीएमसी का वोट कटेगा और फायदा भाजपा का होगा। यही वजह रही कि राहुल गांधी बंगाल में सिर्फ एक दिन प्रचार कर लौट गए। कांग्रेस दिल्ली की तरह यहां भी भाजपा को फायदा नहीं पहुंचाना चाहती थी। यानी आने वाले चुनावों में ऐसी और स्थिति बनेगी, जब कांग्रेस भाजपा को हराने के लिए खुद की कुर्बानी देगी।
4- बंगाल में एंटी इनकम्बेंसी नहीं थी
ममता की जीत से यह साफ हो गया कि 10 साल की सरकार के बावजूद टीएमसी के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी नहीं थी। 2021 के इस चुनाव में टीएमसी को 48% वोट मिलता दिख रहा है। इससे यह साफ होता है कि ममता को हर वर्ग का जमकर साथ मिला है। ममता बनर्जी के पास बंगाल में जो लोकप्रियता है, वो किसी के पास नहीं है। हालांकि, बंगाल में अन्य राज्यों की तरह पीएम मोदी लोकप्रिय हैं। लेकिन उनका जादू सिर्फ लोकसभा में देखने को मिलता है।
5- मोदी सरकार की बढ़ेगी आलोचना
कोरोना के बढ़ते हुए मामलों के बीच बंगाल में चुनाव कराने को लेकर मोदी सरकार की लगातार आलोचना हो रही है। वहीं, ममता बनर्जी समेत कई राज्य सरकारें वैक्सीनेशन को लेकर केंद्र पर निशाना साध चुकी हैं। वहीं, वैक्सीन की कमी के चलते 18 साल से ज्यादा उम्र के लोगों का वैक्सीनेशन शुरू नहीं हो पाया है। ऐसे में कोरोना के बढ़ते मामले और बिगड़ती स्थिति को लेकर केंद्र पर अब और दबाव बढ़ेगा।