कोरोना संक्रमित मरीज के इलाज के लिए हाईड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दवा कारगर साबित हो सकती है, इसका पता सबसे पहले फ्रांस ने लगाया। एक छोटे से अध्ययन में पता चला कि यह दवा कोरोना के संक्रमण को रोकने में कुछ हद से कारगर हो सकती है।
नई दिल्ली. कोरोना वायरस के संक्रमण को कम करने के लिए मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विव की मांग अचानक बढ़ गई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत में यह दवा 75% बनती है। इसलिए दुनिया के तमाम देश भारत से इस दवा को मांग रहे हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर पता कैसे चला कि इस दवा से कोरोना संक्रमण को कम किया जा सकता है?
- कोरोना संक्रमित मरीज के इलाज के लिए हाईड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दवा कारगर साबित हो सकती है, इसका पता सबसे पहले फ्रांस ने लगाया। एक छोटे से अध्ययन में पता चला कि यह दवा कोरोना के संक्रमण को रोकने में कुछ हद से कारगर हो सकती है। इसके बाद से भी हाईडॉक्सीक्लोरोक्विन को कोरोना के संभावित इलाज की दवा के रूप में देखा जाने लगा।
हाईडॉक्सीक्लोरोक्विन के इस्तेमाल की एफडीए ने भी दी मंजूरी
पिछले दिनों हाईडॉक्सीक्लोरोक्विन के इस्तेमाल के लिए फूड एंड एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने भी इसके इस्तेमाल की मंजूरी दे दी। लेकिन एफडीए ने एक शर्त भी रखी। उन्होंने कहा कि इस दवा का इस्तेमाल आपातकाल में ही करें।
हाईड्रॉक्सीक्लोरोक्विन का फ्रांस में सकारात्मक परिणाम आए
फ्रांस में 40 कोरोनो वायरस रोगियों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दिया गया था। उनमें से आधे से अधिक तीन से छह दिनों में अच्छा फील करने लगे। अध्ययन ने सुझाव दिया कि मलेरिया रोधी दवा Sars-CoV-2 से संक्रमण को धीमा कर सकती है। यह वायरस को शरीर में प्रवेश करने से रोकता है। Severe acute respiratory syndrome coronavirus 2 (SARS-CoV-2) को कोरोनो वायरस के रूप में जाना जाता है।
फ्रांस में अच्छा तो चीन में बुरा परिणाम सामने आया
चीन में दवा के बुरे परिणाम भी आए हैं। गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन में एक मरीज को यह दवा दी गई, जिससे उसकी तबीयत और खराब हो गई। वहीं चार रोगियों में दस्त होने की शिकायत मिली। यूरोपीय दवा एजेंसी के अनुसार, कोरोना वायरस के रोगियों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन नहीं दिया जाना चाहिए, जब तक कि कोई इमरजेंसी न हो।
86 साल पुरानी है हाइडॉक्सिक्लोरोक्विन दवा
1934 में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दवा बनी। इसका उपयोग दशकों से दुनिया में मलेरिया के इलाज के लिए किया जाता है। 1955 में संयुक्त राज्य अमेरिका में चिकित्सीय उपयोग के लिए हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन को मंजूरी दी गई थी। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की आवश्यक दवाओं की सूची में है। हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन का इस्तेमाल मलेरिया के इलाज में किया जाता है। इस दवा की खोज सेकंड वर्ल्ड वॉर के वक्त की गई थी। उस वक्त सैनिकों के सामने मलेरिया एक बड़ी समस्या थी।
भारत में भी सिर्फ हेल्थ वर्कर्स को दी जा रही है हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन
भारत में यह दवा सिर्फ हेल्थ वर्कर्स को ही दी जा रही है। हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन नाम की यह दवा प्लाक्वेनिल ब्रांड के तहत बेची जाती है और यह जेनेरिक के रूप में उपलब्ध है। हेल्थ मिनिस्ट्री के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दवा पर कहा, इस दवा के कोरोना पर असर को लेकर कोई पुख्ता सबूत नहीं है। जो हेल्थ वर्कर कोविड-19 मरीजों के बीच काम कर रहे हैं उन्हें ही यह दवा दी जा रही है।