पाकिस्तान में भाई तारू सिंह गुरुद्वारा सील, इंसाफ न मिलने से नाराज सिख समुदाय, जानिए क्या है विवाद?

लाहौर स्थित गुरुद्वारा भाई तारू सिंह को लेकर लंबे समय से विवाद के बीच पाकिस्तान सरकार ने गुरुद्वारे को सील कर दिया है।

Danish Musheer | Published : Apr 28, 2023 5:25 AM IST

इस्लामाबाद: पाकिस्तान के लाहौर स्थित गुरुद्वारा भाई तारू सिंह ( Gurdwara Bhai Taru Singh ) को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। जमीनी विवाद की आड़ में पाकिस्तान सरकार ने पिछले साल गुरुद्वारे को सील कर दिया था। खालसा वोक्स ने बताया कि भाई तारू सिंह विभाजन पूर्व पंजाब के कसूर जिले में स्थित पुहला गांव में रहने वाले एक सिख थे।बता दें कि 1947 में भारत के विभाजन के बाद गांव पाकिस्तान में चला गया।

उन्होंने कहा कि 18वीं शताब्दी के तीसरे दशक से सिख संगठनों ने मुगल शासकों के साथ-साथ विदेशी आक्रमणकारियों से खुद की हिफाजत की और गुरैला रणनीति ( Guerilla Tactics) अपनाकर उन्हे चुनौती दी थी। खालसा वोक्स ने बताया कि तेजी से ढहते मुगल साम्राज्य को देखते हुए बंदा बहादुर (Banda Bahadur) के नेतृत्व मे सिखों ने अपना शासन स्थापित करने की गहरी इच्छा जताई। इसके चलते उस समय के मुगल शासकों ने उन्हें विद्रोही मानते हुए महिलाओं, और बच्चों सहित सिख समुदाय का उत्पीड़न शुरू कर दिया।

तारू सिंह की हत्या

खालसा वोक्स ने बताया कि इस दौरान 25 साल के तारू सिंह को क्रूरता से प्रताड़ित किया गया था और उन्हें एक कुदाल से काट दिया गया था। उन्होंने बताया कि इसके बाद सिख मिस्लों ने अप्रैल 1765 में लाहौर शहर का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया और तारु सिंह को सिख समुदाय द्वारा शहीद के रूप में मान्यता दी गई। इतना ही नहीं इ दौरान लाहौर में एक चारदीवारी के बाहर एक स्थान पर उनके सर्वोच्च बलिदान को समर्पित स्मारक की स्थापनी भी की गई।

मुगल शासकों ने सिखों को बनाया बंदी

खालसा वोक्स की रिपोर्ट के अनुसार आसपास के क्षेत्र को सिखों द्वारा शहीद गंज (Shaheed Ganj) नाम दिया गया था क्योंकि उनके अधिकांश साथियों को पिछले तीन दशकों में मुगल शासकों (Mughal rulers) द्वारा पंजाब क्षेत्र के आसपास बंदी बना लिया गया था। बाद में इस क्षेत्र को नौलखा बाजार के नाम से जाना जाने लगा। दिलचस्प बात यह है कि स्मारक के काफी करीब अब्दुल्ला खान मस्जिद थी, जो मुगल सम्राट अहमद शाह बहादुर के शासन के दौरान 1735 में बनकर तैयार हुई थी।

1950 में शुरू हुआ गुरुद्वारे को लेकर कानूनी विवाद

इस क्षेत् मेंर मुगल बादशाह औरंगजेब के बड़े भाई दारा शिकोह और लाहौर के तत्कालीन गवर्नर द्वारा बनाया गया एक महल भी था। खालसा वोक्स ने बताया कि मस्जिद के अलावा इस क्षेत्र में पीर शाह काकू के नाम पर एक दरगाह भी है। उन्होंने बताया कि 1950 में शहीद गंज क्षेत्र के स्वामित्व को लेकर उस समय एक कानूनी विवाद शुरू हो गया जब मुसलमानों ने उस भूमि पर सिख स्मारक की उपस्थिति को चुनौती दी।उन्होंने (मुसलमानों) दावा किया कि यह पूरी तरह से मस्जिद का है। हालांकि, संबंधित अदालत द्वारा जारी किया गया फैसला सिखों के पक्ष में आया,लेकिन कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का फैसला किया और स्मारक को सिखों द्वारा गुरुद्वारे में बदल दिया गया था।

20वीं शताब्दी में सिखों ने तलाया गुरुद्वारा सुधार आंदोलन

हालांकि, मुसलमानों की शिकायत खत्म नहीं हुई, जिसके मद्देनजर सरकार ने किसी सहमती पर पहुंचने के अपने प्रयासों को जारी रखा। लेकिन 20वीं शताब्दी में सिखों ने गुरुद्वारा सुधार आंदोलन की सफलता से उत्साहित होकर एकतरफा रूप से 7-8 जुलाई 1935 को मस्जिद गिरा दी, जिससे मुसलमानों के बीच बड़े पैमाने पर आक्रोश भड़क गया और सांप्रदायिक दंगों शुरू हो गए। फिर भी स्थिति नियंत्रण में थी और देश के विभाजन के बाद भी साइट पर गुरुद्वारा मौजूद रहा, लेकिन देश बंटवारे के बाद यह पाकिस्तान में चला गया।

भाई तारू सिंह गुरुद्वारे के कपाट बंद गलत

खालसा वोक्स ने कहा कि 1935 में सिखों द्वारा एकतरफा तरीके से मस्जिद का विध्वंस बस अपमानजनक और कानून के खिलाफ था। इससे मुसलमान मस्जिद के स्थल को पुनः प्राप्त कर सकते थे और 1947 के बाद इसके पुनर्निर्माण की मांग कर सकते थे। ठीक इसी तरह दिसंबर 2022 में भाई तारू सिंह गुरुद्वारे के कपाट बंद करना इस मामले में भी एकतरफा और इसे मस्जिद होने का दावा करना भी उतना ही अपमानजनक था। इससे सीमा पार भी सिख समुदाय के सदस्यों में व्यापक नाराजगी है। खालसा वोक्स ने बताया पाकिस्तान के इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ETPB) ने कुछ कट्टरपंथियों की मिलीभगत से यह स्थिति पैदा की है।

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