बॉर्डर से 3 किमी दूर पाकिस्तान में है करतारपुर साहिब, इस वजह से सिखों के लिए खास

यह पाकिस्तान के नारेवल में स्थित है और भारतीय सीमा से मात्र 3 किमी. दूर है। यहां एक कुआं भी है, साथ ही लंगर की व्यवस्था है। गुरुद्वारे को अब भारतीयों के लिए भी खोल दिया गया है। इस साल 550 वें प्रकाश पर्व पर भारत से कई जत्थे जाएंगे।

Asianet News Hindi | Published : Nov 4, 2019 3:42 PM IST / Updated: Nov 05 2019, 07:21 AM IST

नई दिल्ली. पाकिस्तान के नारेवल में स्थित करतारपुर कॉरिडोर सुप्रिसद्ध है। दुनिया भर के सिखों के लिए यह गुरुद्वारा काफी महत्व रखता है। करतारपुर कॉरिडोर को अब भारतीयों के लिए भी खोल दिया गया है। इस साल 550 वें प्रकाश पर्व पर भारत से कई जत्थे जाएंगे।

करतारपुर कॉरिडोर भारतीय सीमा से मात्र 3 किमी. दूर है। यह भारत के पंजाब में डेरा बाबा नानक साहिब को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के नरोवाल से जोड़ेगा।  सिखों के पहले गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 को तलवंडी (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। जिस जगह पर गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था, आज वहां गुरुद्वारा ननकाना साहिब है। यही करतारपुर दरबार साहिब है। यही पर नानक देव ज्योति में समा गए थे। जिसके बाद यहां भव्य गुरूद्वारा बनाया गया। भारत के लोग इसे दूरबीन से देखते हैं। 

सिखों के लिए क्यों है खास - 

दुनिया भर में बसे सिखों के लिए पाक में स्थित करतारपुर दरबार साहिब बहुत महत्व रखता है। सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव की यह जन्मस्थली है। इसके अलावा यही वो ज्योति में समा गए थे जिसके बाद गुरुद्वारा दरबार साहिब बनवाया गया। बाबा नानक देव यहां एक आश्रम में रहा करते थे उन्होंने 16 सालों तक अपना जीवन बिताया था। 

सिखों की मान्यताएं- 

मान्यता है कि जब नानक जी ने अपनी आखिरी सांस ली तो उनका शरीर अपने आप गायब हो गया और उस जगह कुछ फूल रह गए। इन फूलों में से आधे फूल सिखों ने अपने पास रखे और उन्होंने हिंदू रीति रिवाजों से इन्हीं से गुरु नानक जी का अंतिम संस्कार किया और करतारपुर के गुरुद्वारा दरबार साहिब में नानक जी की समाधि बनाई। वहीं, आधे फूलों को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत मुस्लिम भक्त अपने साथ ले गए और उन्होंने गुरुद्वारा दरबार साहिब के बाहर आंगन में मुस्लिम रीति रिवाज के मुताबिक कब्र बनाई। 

गुरु ग्रन्थ साहिब की रचना- 

माना जाता है गुरु नानक जी ने इसी स्थान पर अपनी रचनाओं और उपदेशों को पन्नों पर लिख अगले गुरु यानी अपने शिष्य भाई लहना के हाथों सौंप दिया था। यही शिष्य बाद में गुरु अंगद देव नाम से जाने गए। इन्हीं पन्नों पर सभी गुरुओं की रचनाएं जुड़ती गई और दस गुरुओं के बाद इन्हीं पन्नों को गुरु ग्रन्थ साहिब नाम दिया गया, जिसे सिख धर्म का प्रमुख धर्मग्रंथ माना गया।

Share this article
click me!