
वाशिंगटन। मूल रूल से केरल के निवासी 51 साल के सुरेंद्रन के पटेल का जीवन हौसले से भरी कहानी की तरह है। सुरेंद्रन को बचपन से ही पढ़ने का बहुत शौक था, लेकिन गरीबी के चलते उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। पेट पालने के लिए उन्होंने बीड़ी फैक्ट्री में काम किया। तामाम परेशानी के बाद भी उन्होंने हिस्मत नहीं हारी। उन्होंने अमेरिका में जज बनकर कामयाबी की नई मिसाल कायम की है।
सुरेंद्रन का जन्म केरल के कासरगोड में हुआ था। शुरुआत में उन्होंने अमेरिका में घरेलू नौकर का काम किया था। सुरेंद्रन ने बताया है कि क्लास 10 के बाद उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा था। परिवार के पास उनकी पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे। स्कूल छूटने के बाद उन्होंने बीड़ी फैक्ट्री में मजदूरी की और बीड़ी बनाया।
मजदूरी के साथ जारी रखी थी पढ़ाई
मजदूरी के साथ ही सुरेंद्रन ने पढ़ाई जारी रखी। गांव के दोस्तों ने भी उनकी मदद की। वह किसी तरह कानून की डिग्री लेने में सफल रहे। पढ़ाई के दौरान पैसे कमाने के लिए उन्होंने एक स्थानीय होटल में हाउसकीपिंग की नौकरी भी की। एलएलबी करने के बाद सुरेंद्रन अमेरिका चले गए।
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पटेल एक मीडिया संस्थान से बातचीत में कहा, "भारत में मैंने जो सीखा उससे मुझे अमेरिका में जीवित रहने में मदद मिली। अमेरिका में उनकी कामयाबी की यात्रा में कई बाधाएं आईं। जब मैं टेक्सास में इस पद के लिए खड़ा हुआ तो मेरे लहजे पर टिप्पणियां की गईं। मेरे खिलाफ नकारात्मक अभियान चलाए गए। जब मैं डेमोक्रेटिक प्राइमरी के लिए खड़ा हुआ तो मेरी अपनी पार्टी ने नहीं सोचा था कि मैं जीत सकता हूं।" सुरेंद्रन ने कहा, "किसी को विश्वास नहीं था कि मैं इसे हासिल कर सकता हूं, लेकिन मैं यहां हूं। मेरे पास सभी के लिए एक ही संदेश है। किसी को अपना भविष्य तय न करने दें। इसे तय करने वाला आपको ही होना चाहिए।"
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