पाकिस्तान ने पिछले 10 सालों में नहीं देखा बाढ़ का ऐसा खौफनाक मंजर, मिनिस्टर ने मानसून को 'Monster' बताया

पाकिस्तान में आई विनाशकारी बाढ़ से मरने वालों की संख्या 1,136 पहुंच गई। बाढ़ से 33 मिलियन या देश की आबादी का सातवां हिस्सा प्रभावित हुआ है। वित्त मंत्री मिफ्ता इस्माइल ने कहा कि बाढ़ ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को 10 बिलियन अमरीकी डालर तक प्रभावित किया है।

वर्ल्ड न्यूज. बाढ़ ने आधे पाकिस्तान को तहस-नहस कर दिया है। इसे सरकारों की नाकामी का नतीजा बताया जा रहा है। लोगों का कहना है कि विनाशकारी बाढ़(devastating floods) के बाद NDMA द्वारा 2010 की सिफारिशों के बावजूद सरकारों ने कोई सबक नहीं सीखा है। एक मजबूत सिस्टम विकसित करने में विफलता के कारण देश अब एक और बड़ी आपदा का सामना कर रहा है। बाढ़ से 5,773,063 लोग प्रभावित हैं। लगभग 1,051,570 घर पूरी तरह या आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गए। लगभग 7,19,558 पशुधन भी मर चुके हैं।

आबादी का सातवां हिस्सा प्रभावित
पाकिस्तान में आई विनाशकारी बाढ़ से मरने वालों की संख्या सोमवार को 1,136 पहुंच गई। इस बीच आर्थिक संकट से जूझ रही प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ(Prime Minister Shehbaz Sharif) के नेतृत्व वाली सरकार की मदद की अपील के बाद अंतरराष्ट्रीय सहायता मिलने लगी है। बाढ़ से 33 मिलियन या देश की आबादी का सातवां हिस्सा प्रभावित हुआ है। पिछले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि उसने पाकिस्तान में राहत उपायों के लिए 2.6 मिलियन पाउंड निर्धारित किए हैं। पाकिस्तान के जलवायु परिवर्तन मंत्री शेरी रहमान(Pakistan's Climate Change Minister Sherry Rehman) ने इसे दशक का राक्षस मानसून(monster monsoon of the decade) कहा है। जबकि वित्त मंत्री मिफ्ता इस्माइल ने कहा कि बाढ़ ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को 10 बिलियन अमरीकी डालर तक प्रभावित किया है।

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जलवायु परिवर्तन एक बड़ी वजह
पाकिस्तान में जलवायु परिवर्तन(climate change) ने मानसूनी सिस्टम पर इफेक्ट डाला है, जिससे भयंकर बाढ़ आ गई। दक्षिण पश्चिम या एशियाई ग्रीष्मकालीन मानसून(The Southwest or the Asian Summer Monsoon) अनिवार्य रूप से एक विशाल समुद्री हवा है, जो हर साल जून और सितंबर के बीच दक्षिण एशिया को अपनी वार्षिक वर्षा का 70-80% हिस्सा लाती है।  जब गर्म हवा ऊपर उठती है और ठंडी हिंद महासागर की हवाओं से टकराती है, तब भारी मात्रा में बारिश पैदा करती है।

तमाम स्टडी और रिसर्च के बावजूद मानसून को अपेक्षाकृत कम ही समझा सकता है। यानी बारिश कब और कहां होगी, इसका पूर्वानुमान लगाना 100 प्रतिशत मुश्किल है। उदाहरण के तौर पर इस साल पाकिस्तान में एक जलप्रलय( deluge) देखा गया है, जबकि पूर्वी और उत्तरपूर्वी भारत में 122 वर्षों में जुलाई में सबसे कम बारिश हुई है।

पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च (PIK) द्वारा पिछले साल 20वीं सदी के मध्य से मानसून की शिफ्टिंग पर नज़र रखने वाली एक स्टडी के बाद कहा कि मानसून अधिक मजबूत, लेकिन अस्थिर होता जा रहा है। यानी कब और कहां कितनी बारिश होगी, आकलन करना मुश्किल है।

2020 में जारी भारत सरकार के पहले जलवायु परिवर्तन आकलन में कहा गया है कि 1951 से 2015 तक कुल मानसून वर्षा लगभग 6% गिर गई। उदाहरण के तौर पर भारत में 2021 के मानसून में जून की बारिश सामान्य से ऊपर थी, जुलाई में यह गिर गई, अगस्त लगभग सूखा था और सितंबर में भारी बारिश हुई।

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