भारत जैसे देशों के जरिये यूक्रेन में अपने हथियारों के लिए पश्चिमी देशों में बने पुरजे ला सकता है रूस : रिपोर्ट

Published : May 04, 2022, 12:57 PM IST
भारत जैसे देशों के जरिये यूक्रेन में अपने हथियारों के लिए पश्चिमी देशों में बने पुरजे ला सकता है रूस : रिपोर्ट

सार

यूक्रेन पर हमले के बाद से रूस पर अमेरिका और ्ब्रिटेन ने प्रतिबंध लगा रखे हैं। 24 फरवरी 2022 से जारी युद्ध के बीच रूस ने यूक्रेन पर कब्जे के लिए बड़ी मात्रा में हथियारों का इस्तेमाल किया है। अब उसे इनमें इस्तेमाल होने वाले उपकरणों की जरूरत है। यह पुरजे पश्चिमी देशों या फिर यूनाइटेड किंगडम से आते हैं। ऐसे में वह इन उपकरणों के लिए अन्य देशों को जरिया बना रहा है। 

लंदन। ब्रिटिश डिफेंस एंड सिक्योरिटी थिंक टैंक, रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूट (RUSI) की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारतीय कंपनियां यूक्रेन में तैनात रूसी हथियारों के लिए पश्चिमी देशों में बने हथियारों के पुरजों को वहां ले जाने में मदद कर सकती हैं। RUSI में लैंड वारफेयर के सीनियर रिसर्च फेलो जैक वाटलिंग और आरयूएसआई के रिसर्च एनालिस्ट निक रेनॉल्ड्स की जेड: द डेथ थ्रोज ऑफ एन इंपीरियल डेल्यूजन शीर्षक वाली रिपोर्ट में बताया गया है कि रूसी सेना की विभिन्न टुकड़ियां यूक्रेन में युद्ध के मैदान में हथियारों के उपकरणों पर पश्चिमी प्रतिबंध के चलते इन्हें नहीं प्राप्त कर पा रही है। 

रूस के ज्यादातर हथियारों में यूएस, यूके के उपकरण 
युद्ध के मैदान से बरामद सभी प्रमुख रूसी हथियार प्रणालियों में एक सुसंगत पैटर्न है। 9M949 गाइडेड 300 मिमी रॉकेट अपने नेविगेशन के लिए यूएस-निर्मित फाइबर-ऑप्टिक जाइरोस्कोप का उपयोग करता है। रूसी टीओआर-एम2 एयर डिफेंस सिस्टम प्लेटफॉर्म के रडार को नियंत्रित करने वाले कंप्यूटर में ब्रिटिश-डिजाइन किए गए ऑस्कीलेटर पर निर्भर करती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस्कंदर-एम, कलिब्र क्रूज मिसाइल, केएच -101 एयर-लॉन्च क्रूज मिसाइल और कई अन्य में यह पैटर्न है। रूस का आधुनिक सैन्य हार्डवेयर यूएस, यूके, जर्मनी, नीदरलैंड, जापान, इजराइल, चीन और अन्य क्षेत्रों से आयातित जटिल इलेक्ट्रॉनिक्स पर निर्भर है।

कई पुरजे ऐसे, जिनपर रोक लगाना संभव नहीं
हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि इन पुर्जों को बनाने वाली पश्चिमी कंपनियां जानती थीं कि रूसी सेना अंतिम उपयोगकर्ता थी। इनमें से कई उपकरण ऐसे हैं, जिनका उपयोग सैन्य उपकरणों के अलावा अन्य जगह भी होता है। इसी के सहारे रूस ने ऐसे उपकरणों के लिए अन्य देशों के जरिये एक सिस्टम डेवलप किया है। चूंकि, कई उपकरण ऐसे हैं, जिनका उपयोग नागरिक उद्देश्य के लिए किया जाता है, उनके निर्यात पर रोक लगाना संभवन नहीं है। इसलिए भारत जैसे देशों के जरिये रूस इन उपकरणों की आपूर्ति कर सकता है। ब्रिटेन सरकार के सूत्र भी मानते हैं कि ये उपकरण ऐसे हैं, जिन्हें रूस अन्य देशों के जरिये प्राप्त कर सकता है। ये कॉमर्शियल और इंडस्ट्रियल उपकरण हैं, जो निर्यात नियंत्रण के अधीन नहीं हैं, और दुनिया भर के आपूर्तिकर्ताओं से उपलब्ध हैं। यूके का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विभाग अब रूस के खिलाफ और अधिक प्रतिबंध विकसित करने के लिए भागीदारों के साथ काम करने की दृष्टि से रूसी प्रोक्योरमेंट नेटवर्क को समझने के लिए आंतरिक रूप से काम कर रहा है, जो इस प्रोक्योरमेंट को और अधिक कठिन बना देगा। 

भारत के साथ रक्षा तकनीक साझा कर रहा ब्रिटेन
पिछले महीने ब्रिटेन के पीएम बोरिस जॉनसन भारत आए थे। उन्होंने रक्षा क्षेत्र में भारत केसाथ कई नई तकनीक साझा करने वाले समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। रिपोर्ट के लेखकों के अनुसार, मार्च के मध्य में रूसी राष्ट्रपति प्रशासन ने रूसी रक्षा उपकरणों का सर्वेक्षण करने के लिए एक अंतर-विभागीय समिति बनाई थी, जिसे घरेलू रूप से उत्पादित किया जा सकता है। रूस इन चैनलों को खुला रखने के लिए ब्लैकमेल करने के लिए तैयार है। उदाहरण के लिए, रूसी क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलों में कई कंप्यूटर घटक रूस के अंतरिक्ष कार्यक्रम में नागरिक उपयोग के लिए खरीदे जाते हैं। इसके अलावा, चेक गणराज्य, सर्बिया, आर्मेनिया, कजाकिस्तान, तुर्की, भारत और चीन सहित दुनिया भर में असंख्य कंपनियां हैं, जो रूस को उपकरणों की आपूर्ति करने का जोखिम उठा सकती हैं। 

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