राष्ट्रपति जो बिडेन ने गुरुवार को कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले से दृढ़ता से असहमत हैं।
वाशिंगटन: सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अमेरिका में बवाल मचा हुआ है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने दृढ़ता के साथ कोर्ट के फैसले पर असहमति जताई है। पूर्व राष्ट्रपति ओबामा भी कोर्ट के फैसल से असहमत हैं। जबकि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताया है। एक तरफ जहां रिपब्लिकन खुश होकर इस फैसले के समर्थन में हैं तो डेमोक्रेट्स ने इसे असमानता को और बढ़ाने वाला फैसला बताया।
सु्प्रीम कोर्ट के फैसले पर क्या कहा राष्ट्रपति बिडेन ने?
राष्ट्रपति जो बिडेन ने गुरुवार को कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले से दृढ़ता से असहमत हैं। इससे अमरीकी अफ्रीकी, अल्पसंख्यकों को अवसर कम मिलेगा। उनकी प्रतिभा के प्रदर्शन को मौका इससे नहीं मिल सकेगा। यह फैसला असमानता को बढ़ावा देने वाला है। बिडेन ने कहा कि अमेरिका में भेदभाव अभी भी मौजूद है। कोर्ट का निर्णय, भेदभाव और अन्याय को बढ़ावा देने वाला साबित होगा।
पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा बोले-जबतक मौका नहीं मिलेगा कोई साबित कैसे करेगा?
पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने यूनिवर्सिटी में एडमिशन में नस्ल और जातीयता के उपयोग पर प्रतिबंध को सही नहीं ठहराया है। उन्होंने कहा कि वर्षों पहले उनको और उनकी पत्नी मिशेल ओबामा को मौका नहीं मिला रहता तो वह खुद को कैसे साबित कर पाते? मौका मिला तो ही खुद को साबित किया जा सकता है। यह पॉलिसी दशकों पहले असमानता को दूर करने के लिए ही लागू किया गया था।
डोनाल्ड ट्रंप सहित रिपब्लिकन ने किया समर्थन
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले की पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सहित अन्य रिपब्लिकन ने सराहना की है। डोनाल्ड ट्रम्प ने दावा किया कि नीति को रद्द करने का निर्णय अमेरिका को बाकी दुनिया के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम करेगा। ट्रंप ने अपने ट्रुथ सोशल प्लेटफॉर्म पर लिखा कि यह वह फैसला है जिसका हर कोई इंतजार कर रहा था और उम्मीद कर रहा था और परिणाम आश्चर्यजनक था। यह हमें बाकी दुनिया के साथ प्रतिस्पर्धी भी बनाए रखेगा। हमारे ग्रेटेस्ट माइंड्स को अवश्य की संजोया जाना चाहिए। हम अपनी योग्यताओं के बल पर वापसी कर रहे हें, ऐसा ही होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का वह फैसला जिससे अमेरिका में मचा बवाल...
चीफ जस्टिस जॉन रॉबर्ट्स ने कहा कि बेहतर इरादा और अच्छे काम के लिए यह सकारात्मक कार्रवाई रही जो 1960 के दशक में लागू की गई थी लेकिन यह हमेशा के लिए नहीं रह सकती। यह दूसरों के लिए असंवैधानिक भेदभाव है। इस निर्णय से स्कूल एडमिशन्स, बिजनेस और सरकारी नियुक्तियों में विविधता आएगी। पढ़िए पूरी खबर...