अफगानिस्तान में सत्ता काबिज होने के बाद तालिबान ने सोचा था कि चीन उनकी खूब मदद करेगा, लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है। दरअसल, चीन ने अफगानिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ाने और बहुमूल्य खनिजों की तलाश में यहां मौके तलाशने शुरू कर दिए थे, लेकिन एक साल बीतने के बाद भी इस दिशा में कोई खास काम नहीं हुआ है।
नई दिल्ली। अफगानिस्तान में सत्ता काबिज होने के बाद तालिबान ने सोचा था कि चीन उनकी खूब मदद करेगा, लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है। दरअसल, चीन ने अफगानिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ाने और बहुमूल्य खनिजों की तलाश में यहां मौके तलाशने शुरू कर दिए थे, लेकिन एक साल बीतने के बाद भी इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई है। चीन ने तालबान से जो वादा किया था, उस पर वो खरा नहीं उतर रहा है, जिससे अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था टूटने की कगार पर पहुंच गई है। चीन तालिबान में जो इन्वेस्टमेंट करने वाला था, वो भी अभी तक नहीं आया है। ऐसे में करीब 2 करोड़ लोग वहां भुखमरी से जूझ रहे हैं।
चीन ने किया निराश :
अफगानिस्तान के चैंबर ऑफ कॉमर्स के उपाध्यक्ष खान जान अलोकोजे के मुताबिक, चीन की ओर से इन्वेस्टमेंट के लिए अब तक कोई पैसा नहीं मिला है। चीन की कई कंपनियां यहां आईं और रिसर्च के बाद वापस नहीं लौटीं। चीन का ये रवैया बहुत निराशाजनक है। वहीं, इस मामले पर चीन का कहना है कि तालिबान की तरफ ने उन आतंकी संगठनों पर जरूरी कार्रवाई नहीं की गई है, जो पश्चिमी शिनजियांग में मौजूद अलगाववादियों के साथ संपर्क में हैं।
आखिर क्या चाहता है चीन?
चीनी सरकार के सूत्रों के मुताबिक, तालिबान, चीन के साथ अफगानिस्तान में मौजूद संसाधनों से जुड़े प्रोजेक्ट्स को लेकर एक बार फिर बातचीत करना चाहता है। तालिबान की तरफ से कहा गया था कि वो अफगानिस्तान की जमीन से किसी भी आतंकी संगठन को काम करने की मंजूरी नहीं देगा। लेकिन चीन का कहना है कि तालिबान पहले ईस्ट तुर्कीस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) पर एक्शन ले। चीन इसे इस्लामी अलगाववादी संगठन मानता है, जो शिनजियांग में इस्लामिक स्टेट स्थापित करने की तैयारी में है। बता दें कि शिनजियांग क्षेत्र की 76 किलोमीटर लंबी सीमा अफगानिस्तान और चीन को छूती है।
तालिबान ने कही ये बात पर हकीकत कुछ और :
वहीं, तालिबान का कहना है कि ईस्ट तुर्कीस्तान इस्लामिक मूवमेंट अफगानिस्तान से नहीं चल रहा है। अफगानिस्तान की धरती से किसी भी देश के खिलाफ आतंकी साजिशों को अंजाम नहीं देने देंगे। हालांकि, इस साल मई में UN की एक रिपोर्ट में कई देशों के हवाले से कहा गया कि ईस्ट तुर्कीस्तान इस्लामिक मूवमेंट अफगानिस्तान में ही मौजूद है।
अफगानिस्तान में नए प्रोजेक्ट्स अटके :
अफगानिस्तान में मौजूद खनिज हजारों साल पुराने हैं। अमेरिका के वहां से जाने के बाद चीन ने साफ कहा था कि वो इन संसाधनों को हासिल करके रहेगा। हालांकि, फिलहाल नए प्रोजेक्ट्स अटक गए हैं। अफगानिस्तान में तालिबान के चलते दुनियाभर के देशों ने वहां मदद रोक दी, लेकिन चीन अकेला देश है, जिसने तालिबानी शासन को आर्थिक मदद का भरोसा दिलाया था। हालांकि, अब चीन से मिला भरोसा टूटता देख तालिबान खार खाए बैठा है।
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