रूस-यूक्रेन विवाद: भारत के रुख से क्यों प्रसन्न हुआ रूस, अमेरिका को किस बात का लग रहा डर, पढ़िए पूरी खबर

यूक्रेन-रूस विवाद (Russia-Ukraine Conflict) के चलते दुनिया में तीसरे विश्व युद्ध (World war) की आशंका बढ़ती जा रही है। तमाम देश दोनों देशों के बीच मध्यस्थता कराने में जुटे हैं। इसी बीच भारत ने भी अपना रुख स्पष्ट किया है। इसकी रूस से सराहना की है। भारत और रूस के बीच वर्षों पुराने रिश्ते हैं। हालांकि भारत इस संकट का समाधान बातचीत से सुलझाने पर जोर दे रहा है।

Asianet News Hindi | Published : Feb 19, 2022 2:51 AM IST / Updated: Feb 19 2022, 08:28 AM IST

वर्ल्ड न्यूज डेस्क.यूक्रेन-रूस विवाद (Russia-Ukraine Conflict) के चलते दुनिया में तीसरे विश्व युद्ध (World war) की आशंका बढ़ती जा रही है। तमाम देश दोनों देशों के बीच मध्यस्थता कराने में जुटे हैं। इसी बीच भारत ने भी अपना रुख स्पष्ट किया है। इसकी रूस से सराहना की है। भारत और रूस के बीच वर्षों पुराने रिश्ते हैं। हालांकि भारत इस संकट का समाधान बातचीत से सुलझाने पर जोर दे रहा है। बता दें कि  गुरुवार को यूक्रेन के डोनबास क्षेत्र में एक स्कूल पर बमबारी की गई। यूक्रेन ने रूस समर्थक विद्रोहियों पर यह इल्जाम लगाया था। वहीं, रूसी मीडिया ने अलगाववादियों के नेता लियोनिद पासेचनिक के हवाले से कहा कि यह यूक्रेनी आर्म्ड फोर्सेस ने लुहान्सक क्षेत्र में हमला किया। इन हमलों के बाद तनाव और बढ़ गया है। शुक्रवार को भी पूर्वी यूक्रेन में विद्रोहियों के कब्जे वाले एक प्रमुख शहर से गुजरने वाली एक अंतरराष्ट्रीय तेल पाइपलाइन में शुक्रवार को विस्फोट हो गया। इसका इल्जाम भी रूस पर लगा है।

अब जानिए भारत का रुख
रूस ने यूक्रेन संकट पर भारत के संतुलित और स्वतंत्र रुख की शुक्रवार को सराहना की है। नाटो के सदस्य देशों और रूस के बीच तनाव बढ़ने के मद्देनजर भारत के रुख पर रूस का यह बयान आया है। बता दें कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद(United Nations Security Council) की बैठक में ‘शांत एवं रचनात्मक कूटनीति' पर जोर दिया था। भारत का कहना है कि तनाव बढ़ाने वाले कदम उठाने से बचना चाहिए। यूक्रेन संकट पर गुरुवार को हुई इस बैठक में संयुक्त राष्ट्र के लिए भारत के स्थायी प्रतिनधि टीएस तिरुमूर्ति ने तनाव घटाने की अपील की थी। इधर, दिल्ली में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि भारत कूटनीतिक वार्ता से संकट का समाधान निकालने का समर्थक रहा है।

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कभी भी हमला कर सकता है रूस
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन(USA President Joe Biden) ने चेतावनी दी है कि रूस कभी भी यूक्रेन पर हमला कर सकता है। नाटो सहयोगी देशों ने रूस के इस दावे को खारिज किया है, जिसमें उसने कहा है कि वो यूक्रेन की सीमा से सैनिकों को हटा रहा है। रूस ने यूक्रेन से लगती सीमा पर करीब 1,50,000 सैनिक जुटा रखे हैं। अनुमान है कि रूस के कुल जमीनी सैनिकों के 60 प्रतिशत सैनिक यूक्रेन सीमा पर आ चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के एक निष्कर्ष की जानकारी दी। 

60 बार सीजफायर का उल्लंघन
रूस ने यूक्रेन के पास से और अधिक टैंक और हार्डवेयर को हटाने की घोषणा की है। लेकिन इससे नहीं लगता कि वो फिलहाल युद्ध टालने की दिशा में बढ़ रहा है। जॉइंट फॉर्सेज ऑपरेशंस के मुताबिक, 60 बार संघर्ष विराम उल्लंघन हुआ है। नोवोज्वानिव्का को 152mm आर्टिलरी से निशाना बनाया गया है। वहीं, ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय ने एक मैप जारी करते हुए आशंका जताई कि रूस किस तरह से बिना कोई चेतावनी के यूक्रेन पर हमला कर सकता है। इस बीच बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर से मिलने मॉस्को पहुंचे। दोनों देश अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त कार्रवाई जैसे कई मुद्दों पर चर्चा करेंगे।

यह है विवाद की मुख्य वजह
रूस यूक्रेन की नाटो की सदस्यता का विरोध कर रहा है। लेकिन यूक्रेन की समस्या है कि उसे या तो अमेरिका के साथ होना पड़ेगा या फिर सोवियत संघ जैसे पुराने दौर में लौटना होगा। दोनों सेनाओं के बीच 20-45 किमी की दूरी है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन पहले ही रूस को चेता चुके हैं कि अगर उसने यूक्रेन पर हमला किया, तो नतीजे गंभीर होंगे। दूसरी तरफ यूक्रेन भी झुकने को तैयार नहीं था। उसके सैनिकों को नाटो की सेनाएं ट्रेनिंग दे रही हैं। अमेरिका को डर है कि अगर रूस से यूक्रेन पर कब्जा कर लिया, तो वो उत्तरी यूरोप की महाशक्ति बनकर उभर आएगा। इससे चीन को शह मिलेगी। यानी वो ताइवान पर कब्जा कर लेगा।

नाटो क्या है
नॉर्थ अटलांटिक ट्रिटी ऑर्गेनाइजेशन(नाटो) की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को 12 संस्थापक सदस्यों द्वारा अमेरिका के वॉशिंगटन में किया गया था। यह एक अंतर- सरकारी सैन्य संगठन है। इसका मुख्यालय बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में अवस्थित है। वर्तमान में इसके सदस्य देशों की संख्या 30 है। इसकी स्थापना का मुख्य   उद्देश्य पश्चिम यूरोप में सोवियत संघ की साम्यवादी विचारधारा को रोकना था। इसमें फ्रांस।  बेल्जियम।  लक्जमर्ग,  ब्रिटेन,  नीदरलैंड,  कनाडा,  डेनमार्क,  आइसलैण्ड, इटली, नार्वे,  पुर्तगाल,  अमेरिका,  पूर्व यूनान, टर्की,  पश्चिम जर्मनी और स्पेन शामिल हैं।

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