जिनपिंग के लिए मुसीबत बन रहा 'हॉन्ग कॉन्ग'; जानिए क्यों हो रहे प्रदर्शन, क्या है प्रदर्शनकारियों की मांग?

 लद्दाख हिंसा के बाद भारत और चीन के बीच सीमा विवाद चरम पर है। माना जा रहा है कि कोरोना वायरस फैलाने को लेकर वैश्विक स्तर पर घिरने, हॉन्ग कॉन्ग में लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शन, ताइवान पर कमजोर होती पकड़ को लेकर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की लोकप्रियता लगातार घट रही है।

Asianet News Hindi | Published : Jun 20, 2020 9:16 AM IST / Updated: Jun 29 2020, 07:59 PM IST

नई दिल्ली. लद्दाख हिंसा के बाद भारत और चीन के बीच सीमा विवाद चरम पर है। माना जा रहा है कि कोरोना वायरस फैलाने को लेकर वैश्विक स्तर पर घिरने, हॉन्ग कॉन्ग में लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शन, ताइवान पर कमजोर होती पकड़ को लेकर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की लोकप्रियता लगातार घट रही है। जानकारों का मानना है कि देश में लोकप्रियता घटने को लेकर चीन की सत्ताधारी पार्टी और जिनपिंग चिंतित हैं। अपनी लोकप्रियता को बरकरार रखने के लिए जिनपिंग की जानकारी में भारत के खिलाफ चीन ने चालबाजी की। आईए जाते हैं कि हॉन्ग कॉन्ग में इतने लंबे वक्त से प्रदर्शन क्यों हो रहे है और चीन और हॉन्ग कॉन्ग के बीच क्या विवाद है?

क्या हॉन्गकॉन्ग एक स्वतंत्र राष्ट्र है?

हॉन्गकॉन्ग अर्ध-स्वायत्त है। लेकिन उसके पास खुद की मुद्रा, पासपोर्ट, अप्रवासन माध्यम और कानून प्रणाली है। लेकिन यह पूर्ण रूप से स्वतंत्र भी नहीं है। वास्तव में, हांगकांग कभी भी एक स्वतंत्र देश नहीं रहा। ब्रिटेन ने इस क्षेत्र पर 1997 तक शासन किया, जब तक 99 साल की लीज खत्म नहीं हुई।

चीन 'वन चाइना टू सिस्टम' (एक देश, दो प्रणाली) के सिद्धांत के तहत हांगकांग पर शासन करने के लिए सहमत हो गया। ब्रिटेन का नियंत्रण खत्म होने के बाद, हॉन्गकॉन्ग चीन के साथ एक समझौते में फंस गया। हालांकि, हाल के सालों में हॉन्गकॉन्ग के लोगों को चीन के नियंत्रण से डर लगने लगा है। 2014 में चीन की सरकार ने एक रिपोर्ट जारी की, इसमें कहा गया कि हॉन्गकॉन्ग की न्यायपालिका को सरकार के अधीनस्थ होना चाहिए, ना कि स्वतंत्र।




हॉन्ग कॉन्ग और चीन में क्या अंतर है?

हॉन्ग कॉन्ग की अपनी कानूनी प्रणाली, मुद्रा और संसदीय प्रणाली है। चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा में राजनीतिक और कानूनी मतभेदों का जिक्र किया गया है, ये हॉन्ग कॉन्ग के अर्ध-संवैधानिक मूल कानून में निहित है। 

हॉन्गकॉन्ग के नागरिकों को मिली स्वतंत्रताओं को वे चीन में आनंद नहीं ले पाते। खास कर विरोध की स्वतंत्रता, प्रेस की स्वतंत्रता, बोलने की स्वतंत्रता और स्वतंत्र न्यापालिका की स्वतंत्रता। ओलंपिक में हॉन्ग कॉन्ग की अलग टीम है, झंडा है। फिर भी हॉन्गकॉन्ग को अलग देश के तौर पर मान्यता नहीं मिली है।

यहां चीफ एग्जीक्यूटिव लीडर को भी चीन से चुना जाता है। सांस्कृतिक तौर पर हॉन्गकॉन्ग ज्यादा अंतरराष्ट्रीय शहर है,  यहां ब्रिटिश कॉलोनी के तौर पर कई मूल्य हैं। वहीं, चीन पारंपरिक मूल्यों को धारण किए हुए है। ब्रिटिशों से स्वतंत्रता के बाद से हॉन्गकॉन्ग चीन के अधीन है। 

क्या हॉन्गकॉन्ग को शामिल करना चाहता है चीन ?

चीन और ब्रिटेन की सहमति के आधार पर, हॉन्गकॉन्ग के मूल कानून के मुताबिक, क्षेत्र 50 साल तक अर्ध-स्वायत्त प्रणाली में रहेगा। हॉन्गकॉन्ग को स्वायत्त बनाने की चर्चा भी काफी हुई। हॉन्गकॉन्ग में नेतृत्व कर रही एंडी चैन की हॉन्गकॉन्ग नेशनल पार्टी क्षेत्र को उसी तरह चीन के अधीन मानती, जैसे वे ब्रिटिश शासन में थे। 




कैसे चीन के अधीन आया हॉन्गकॉन्ग ?

1842 में हुए पहले अफीम युद्ध के बाद हॉन्ग कॉन्ग ब्रिटेन के अधीन आ गया। ब्रिटेन ने यह युद्ध ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा चीन में अफीम बेचने के अधिकार की रक्षा करने के लिए लड़ा था। इसके तहत यहां के सभी पोर्ट भी ब्रिटेन के अधीन आ गए, जिनसे व्यापारी सामान भेजा करते थे। ब्रिटेन ने 1898 में 99 साल की लीज पर हॉन्ग कॉन्ग पर शासन किया। यह लीज 1997 में खत्म हो गई। इसके बाद हॉन्ग कॉन्ग अर्ध स्वायत्त क्षेत्र बन गया, इसका व्यापार, टैक्स और इमिग्रेशन पॉलिसी पर खुद का अधिकार है। 1997 में हस्तांतरण के मुताबिक, 2047 तक हॉन्ग कॉन्ग अर्ध स्वायत्त क्षेत्र रहेगा। 
लेकिन इसके बाद क्या होगा? यह अभी तक निर्धारित नहीं है। लेकिन चीन विरोधियों को शक है कि चीन इसे अपने अधिकार में लेने की कोशिश करेगा।

1 जुलाई 1997 को हॉन्ग कॉन्ग चीन का हिस्सा बना था। समझौता हुआ था कि हॉन्ग कॉन्ग एक देश दो सिस्टम की तरह चलेगा, साथ ही स्वायत्तता के एक स्तर की गारंटी भी मिलेगी। हर साल 1 जुलाई को हॉन्ग कॉन्ग में लोकतंत्र के समर्थन में कई कार्यक्रम भी होते हैं।

लोग क्यों प्रदर्शन करते हैं, और एक्सट्राडीशन लॉ क्या है?

हॉन्ग कॉन्ग की सरकार एक्सट्राडीशन कानून लाने के प्रयास में है। इससे कानून के मुताबिक, चीन और ताइवान में अपराध कर हॉन्ग कॉन्ग आने वाले दोषी लोगों के प्रत्यर्पण का रास्ता साफ हो जाएगी। हॉन्ग कॉन्ग के नेता कैरी लैम ने कहा, इस कानून की जरूरत है, क्योंकि इसके बिना हॉन्ग कॉन्ग चीन और ताइवान से आने वाले भगोड़ों के लिए शरणस्थली बन जाएगा। 

चीन को पहले से ही उसकी न्यायिक स्वतंत्रता और मानवाधिकार रिकॉर्ड पर चिंताओं के कारण प्रत्यर्पण समझौतों से बाहर रखा गया है। ऐसे में इस कानून का वकील, पत्रकार, कार्यकर्ताओं और व्यावसायिक हस्तियों समेत व्यापक तौर पर विरोध हो रहा है।

भले ही चीन 1997 से हॉन्ग कॉन्ग पर शासन कर रहा है। लेकिन ब्रिटेन के साथ हुए समझौते में 'एक देश, दो सिस्टम' के तहत हॉन्ग कॉन्ग को अहम स्वतंत्रताएं, जैसे बोलने की आजादी और स्वतंत्र न्यायपालिका बनाए रखने की आजादी मिली है। 



उग्र क्यों हो रहे प्रदर्शन?

प्रदर्शनकारियों को डर था कि बिल को फिर से पेश किया जा सकता है, इसलिए प्रदर्शन जारी रहे। बिल को पूरी तरह से वापस लेने की मांग की गई। उस दौरान तक पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें भी लगातार हो रही थीं। सितंबर 2019 में, बिल को अंततः वापस ले लिया गया था। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। 1 अक्टूबर को, जब चीन कम्युनिस्ट पार्टी के शासन के 70 साल का जश्न मना रहा था, हॉन्ग कॉन्ग ने अपने सबसे "हिंसक और अराजक दिनों" का अनुभव किया।

पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर डंडे, पेट्रोल बम और अन्य प्रोजेक्टाइल से हमला किया, 18 साल के एक लड़के को सीने में गोली मार दी गई। सरकार ने प्रदर्शनकारियों के फेस मास्क पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया। नवंबर की शुरुआत में खुद को प्रदर्शनकारी बताने वाले शख्स ने चीन समर्थित सांसद पर चाकू से हमला कर दिया। इसके एक हफ्ते बाद पुलिसकर्मियों ने एक एक्टीविस्ट की गोली मारकर हत्या कर दी। कुछ दिनों बाद सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों द्वारा एक और आदमी को आग लगा दी गई थी।

 नवंबर में,  हॉन्ग कॉन्ग की पॉलीटेक्निक यूनिवर्सिटी के परिसर में पुलिस और छात्रों के बीच हुई झड़प एक और निर्णायक क्षण बन गया। उस महीने के बाद में, इस क्षेत्र में स्थानीय परिषद के चुनाव हुए। यहां 18 काउंसिलों में से 17 में 17 पर लोकतंत्र समर्थक उम्मीदवारों की जीत हुई। 




क्या चाहते हैं प्रदर्शनकारी?

कुछ प्रदर्शनकारियों ने आदर्श वाक्य को अपनाया है कि "पांच 5 मांगे, एक भी कम नहीं!''

- प्रदर्शनों को दंगा नहीं माना जाएगा। 
- गिरफ्तार प्रदर्शनकारियों को छोड़ दिया जाए।
- पुलिस के अत्याचारों की निष्पक्ष एजेंसी जांच करे।
- पूर्ण सार्वभौमिक मताधिकार का कार्यान्वयन
- बिल वापस लिया जाए (यह हो चुका है)


दुनिया में मिल रहा समर्थन
हॉन्ग कॉन्ग आंदोलन का समर्थन पूरी दुनिया में हो रहा है। ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में भी समर्थन में रैलियां निकाली जा रही रही हैं। कई मामलों में, प्रदर्शनकारियों का समर्थन करने वाले लोगों को बीजिंग समर्थक रैलियों का भी सामना करना पड़ रहा है।

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अलगाववाद के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा है कि चीन को विभाजित करने का कोई भी प्रयास कुचल दिया जाएगा। 

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