What is One China Policy: आखिर क्या है चीन की 'वन चाइना पॉलिसी', इस मामले में कैसा है भारत का रुख

अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे के बाद से ही चीन बुरी तरह भड़का हुआ है। चीन दावा करता है कि ताइवान उसका ही हिस्सा है और दुनिया के देशों को 'वन-चाइना पॉलिसी' का पालन करते हुए ताइवान को स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता नहीं देना चाहिए। आखिर क्या है वन चाइना पॉलिसी? जानते हैं। 

Asianet News Hindi | Published : Aug 6, 2022 9:25 AM IST

One China Policy: चीन और ताइवान में तकरार के बीच अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे से चीन बुरी तरह भड़का हुआ है। चीन ने ताइवान को चारों तरफ से घेरने के साथ ही मिलिट्री अभ्यास भी शुरू कर दिया है। इसके साथ ही चीन ताइवान और अमेरिका को भी धमका रहा है। चीन शुरू से ही ताइवान में किसी भी विदेशी नेता की यात्रा का विरोध करता आया है। उसका मानना है कि ताइवान चीन का हिस्सा है और दुनिया के देशों को 'वन-चाइना पॉलिसी' का पालन करते हुए ताइवान को स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता देने से बचना चाहिए। आखिर क्या है चीन की 'वन-चाइना पॉलिसी' और इसको लेकर क्या है भारत का रुख। 

क्या चीन की वन चाइना पॉलिसी?
चीन की वन चाइना पॉलिसी का मतलब एक चाइना से है। इस पॉलिसी के तहत चीन हांगकांग और तिब्बत के साथ ही ताइवान को भी अपना हिस्सा मानता है। इनमें से किसी भी देश ने खुद को आजाद देश घोषित करने का प्रयास किया तो वह उन पर अटैक करेगा। इसके साथ ही अगर दुनिया के किसी देश को चीन के साथ कूटनीतिक संबंध रखने हैं तो फिर उसे ताइवान से अपने संबंध सीमित या खत्म करने होंगे। 

कब और कैसे हुई वन चाइना पॉलिसी की शुरुआत?
1949 में चीन में चल रहा गृह युद्ध खत्म हुआ। ऐसे में माओत्से तुंग के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी ने रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी कुओमिन्तांग (केएमटी) के नेतृत्व वाली सरकार को बलपूर्वक हटा दिया। हार के बाद कुओमिंतांग अपनी सेना के साथ ताइवान चले गए। इसके बाद से चीन और ताइवान में अलग-अलग सरकारे हैं। हालांकि, दोनों की भाषा, संस्कृति और खान-पान सबकुछ एक जैसा है। ऐसे में ताइवान में भले ही दूसरी सरकार है लेकिन चीन उसे अपना ही हिस्सा मानता है।   

ताइवान को दोबारा खुद में मिलाना चाहता है चीन : 
पिछले 73 साल से चीन ताइवान को अपना ही एक प्रांत समझता है। इतना ही नहीं वो दोबारा ताइवान को चीन में मिलाना चाहता है। हालांकि, ताइवान एक आजाद देश के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहता है। चीन वन चाइना पॉलिसी को मानता है और इसी के तहत ताइवान को अपना हिस्सा बताने का दावा करता है। बता दें कि ताइवान को दुनिया के 193 देशों में से सिर्फ 15 ने ही स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता दी है।  

ताइवान पर क्या है अमेरिकी की पॉलिसी : 
पहले अमेरिका का दूतावास ताइवान की राजधानी ताइपे में था। लेकिन 1979 में अमेरिका ने अपना दूतावास ताइवान से हटाकर चीन में ट्रांसफर कर दिया। इसका मतलब है कि वो भी चीन की वन चाइना पॉलिसी को सपोर्ट तो करता है। लेकिन इसके साथ ही अमेरिकी कांग्रेस ने ताइवान और उसके हितों की रक्षा के लिए 1979 में ताइवान रिलेशन एक्ट पास किया। इस एक्ट के तहत अमेरिका पूरी तरह से ताइवान की रक्षा की गारंटी लेता है। इसके अलावा वो ताइवान को हथियार भी बेचता है। कुल मिलाकर अमेरिका पिछले 4 दशक से वन चाइना पॉलिसी का समर्थन तो करता है, लेकिन ताइवान के मुद्दे पर उसकी नीति अस्पष्ट है।

चीन की 'वन चाइना पॉलिसी' को लेकर कैसा है भारत का रुख : 
भारत भी 1949 से ही चीन की वन चाइना पॉलिसी का समर्थन करता है और बीजिंग की सरकार के अलावा किसी और को मान्‍यता नहीं देता है। हालांकि, बावजूद इसके ताइवान के साथ भारत के व्‍यापारिक और सांस्‍कृतिक संबंध है। लेकिन 2008 में जबसे चीन अरुणाचल प्रदेश को अपना इलाका बताने लगा, तब से भारत ने भी आधिकारिक बयानों में चीन की वन चाइना पॉलिसी का जिक्र करना बंद कर दिया। 

ये भी देखें : 

China vs Taiwan: किसमें कितना है दम, युद्ध हुआ तो चीन के सामने कितनी देर टिक पाएगा ताइवान

आखिर क्यों ताइवान के होटल-अस्पतालों में नहीं होती चौथी मंजिल, जानें चीन के पड़ोसी देश से जुड़े 10 रोचक फैक्ट्स

Share this article
click me!