मुंबई. अयोध्या में राम मंदिर के पक्ष में आए फैसले के बीच डाक्यू-फिक्शन फिल्म 'मेरा राम खो गया' चर्चा का विषय बन गई है। इसमें एक गरीब कुम्हार अपने गधे को 'राम कहानी' सुनाता है। दरअसल, यह कहानी नहीं, उसके जीवन की पीड़ा है। इस फिल्म में अपने-अपने भगवान के लिए सामाजिक कुप्रथाओं और ऊंच-नीच के भेदभाव का दंश झेल रहे गरीब और पिछड़े वर्ग की पीड़ा को मार्मिक अंदाज में उठाया गया है। कैसे लोगों को जात-पात, अमीरी-गरीबी और सवर्ण-दलित के आधार पर भगवान से दूर रखा जाता है। उन्हें मंदिर में आने की मनाही होती है। मंदिरों में छप्पन भोग चढ़ाए जाते हैं, लेकिन भूखों को खाने को रोटी तक नसीब नहीं होती। सारी जिंदगी फटेहाल गुजर जाती है। इस फिल्म में ऐसे ही विषय पर गहरा कटाक्ष किया गया है। इस फिल्म को निर्देशित किया है प्रभाष चंद्रा ने। प्रभाष ने asianetnews हिंदी से शेयर की फिल्म से जुड़ीं खास बातें...