Sanjay Chaturvedi

मैने देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से M.Com किया है। इसके साथ ही माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय (MCU) से PGDCA का कोर्स किया है। इसके बाद द सूत्र, नेशन मिरर व अग्निबाण न्यूज में मे फ्री लांसर वर्क करने का 1 साल का अनुभव है।
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पानी बचाने के लिए आज भी पालन होता है इस अनूठी परंपरा का, अमावस को मौन रहकर दो गांवों के लोग खोदते हैं 'जोहड़'

May 31 2022, 04:46 PM IST

सीकर. देश में गर्मी के दिनों में पानी कमी होना आम बात है क्योकि जलस्तर नीचे गिर जाता है और जहां बरसात कम होती है वहां पानी की कमी पूरे साल ही बनी रहती है। ऐसे में पानी बचाने के लिए केंद्र व राज्य सरकारें कई योजनाएं व अभियान चलाती है। जिनमें से ज्यादातर प्रोजेक्ट सरकारी ऑफिसों के कागजों व फॉर्मेलिटी में ही दम तोड़ देते है। लेकिन, राजस्थान के सीकर जिले के दो गांव कोलीड़ा व तारपुरा में जल संरक्षण (water conservation) की एक ऐसी परंपरा है जो सरकारी अभियानों से भी ज्यादा कारगर है। ये परंपरा ज्येष्ठ माह की तपती गर्मी में आने वाली अमावस्या को जोहड़ (कच्चा तालाब) खोदने की है। जिसमें हर घर का सदस्य मौन होकर अपना योगदान देता है। बाद में यही जोहड़ जब बरसात के पानी से भर जाता है तो गांव के लिए वरदान साबित हो जाता है।