सार

एनडीए और महागठबंधन में दिख रही राजनीति से ऐसा लग रहा है कि चुनाव की घोषणा तक दोनों मोर्चों में शामिल दलों का स्वरूप बदल सकता है। यह भी हो सकता है कि चुनाव के पहले साथ दिख रहे दल चुनाव बाद अलग हो जाएं। 

पटना। बिहार की राजनीति में किसी भी गठबंधन और मोर्चे में सबकुछ ठीक नहीं कहा जा सकता। एनडीए और महागठबंधन के सहयोगी दलों के रुख से जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं वो तो इसी बात का इशारा करते दिख रहे हैं। एक चीज पर कोई राजी होता दिखता है तो किसी दूसरी चीज पर कोई नाराज हो बैठता है। या ऐसी मांग कर लेता है जैस्पर सहमति बनने की गुंजाइश बेहद कम है। अभी तक यही दिख रहा था कि मांझी के आने के बाद एनडीए में ही सीटों के बंटवारे का पेंच फंस गया है। मगर अब साफ दिख रहा है कि महागठबंधन में भी सीटों को लेकर सहयोगी दलों में नूराकुश्ती कुछ कम नहीं है। 

महागठबंधन में आरजेडी सबसे बड़ा दल है। इसके बाद कांग्रेस, उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी, मुकेश साहनी की वीआईपी और वामपंथी पार्टियों के शामिल होने की चर्चा है। हालांकि अभी तक महागठबंधन के अंतिम स्वरूप की घोषणा नहीं हो पाई है। हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा चीफ जीतनराम मांझी के जाने के बाद उम्मीद थी कि सीटों का बंटवारा कर लिया जाएगा, पर अभी तक सहयोगी दलों के बीच समझौता नहीं हो पाया है। अब वीआईपी और कांग्रेस ने महागठबंधन में वैसा ही माहौल बना दिया है जैसा कि एनडीए में एलजेपी और जेडीयू की वजह से दिख रहा है। 

 

कांग्रेस-आरजेडी का झगड़ा क्या है?
बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हैं। महागठबंधन का अगुआ दल आरजेडी है और इस कोशिश में है कि वो अपने राजनीतिक आधार और बड़े दल की हैसियत से सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़े। चर्चा करीब 150-160 सीटों पर लड़ने की है। मगर कांग्रेस को इस बार ज्यादा सीटें चाहिए। पार्टी का तर्क है कि दूसरा बड़ा दल होने के नाते उसे ज्यादा सीटें मिलनी ही चाहिए। कांग्रेस 80-90 सीटों की मांग कर रही है। उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी कांग्रेस के साथ है।

आरजेडी किस फॉर्मूले पर सीट देना चाहता है 
आरजेडी कांग्रेस को इतनी सीटें देने को राजी नहीं है। अब वामपंथी पार्टियां भी मोर्चे में शामिल हो गई हैं। इस वजह से महागठबंधन में सीटों के बंटवारे का फॉर्मूला ही गड़बड़ हो गया है। इस वक्त कांग्रेस के 26 विधायक हैं और आरजेडी करीब 50 सीटें देने को राजी है। आरजेडी 80 सीट उस स्थिति में देने को राजी है कि कांग्रेस अपने कोटे से ही आरएलएसपी और वामपंथी पार्टियों सीपीआइ, सीपीएम को भी सीटें देगा। उनसे बातचीत करेगा। बाकी 150 से ज्यादा सीटें आरजेडी के खाते में रहेगी और वो इसी में वीआईपी और भाकपा माले को हिस्सा देगी। अभी तक आरजेडी कांग्रेस का ये झगड़ा सुलझ नहीं पाया है। कहा जा रहा है कि अब दिल्ली में बड़े नेता इस पर फैसला लेंगे। वैसे कांग्रेस अकेले ही 85 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। 

 

साहनी को महागठबंधन में चाहिए डिप्टी सीएम का पद  
उधर, वामपंथी पार्टियों और वीआईपी चीफ मुकेश साहनी भी कम मुसीबत खड़े करते नहीं नजर आ रहे हैं। राज्य में 15 प्रतिशत वोट बैंक का दावा कर रहे मुकेश साहनी ने डिप्टी सीएम के पद पर दावा ठोक दिया है। इशारों में उन्होंने एनडीए की ओर से मिल रहे ऑफर का भी जिक्र कर दिया। साहनी राज्य में 25 सीटें मांग रहे हैं जबकि उन्हें 15 सीटें देने की बात सामने आ रही है। एससी/एसटी समाज के लिए नीतीश कुमार की घोषणा की तारीफ करने वाले साहनी ने साफ कहा, "हम जिसके साथ रहेंगे उसकी सरकार बनेगी। हम मजबूत हैं तो हम आखिर दावा क्यों नहीं कर सकते।" वामपंथी पार्टियों ने भी इतनी सीटें मांग ली हैं कि पेंच और उलझ गया है। 

ठीक नहीं हैं संकेत 
एनडीए और महागठबंधन में दिख रही राजनीति के संकेत अच्छे नहीं हैं। ऐसा लग रहा है कि चुनाव की घोषणा तक दोनों मोर्चों में शामिल दलों का स्वरूप बदल सकता है। यह भी हो सकता है कि चुनाव के पहले साथ दिख रहे दल चुनाव के बाद मोलभाव करते हुए अलग हो जाए।