सार

गांधी जयंती के अवसर पर 'कौन बनेगा करोड़पति' के कर्मवीर एपिसोड में सुलभ शौचालय अभियान के जनक डॉक्टर बिंदेश्वर पाठक अमिताभ बच्चन के सामने हॉट सीट पर बैठेंगे। इस एपिसोड से जुड़ा एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें अमिताभ बच्चन बिंदेश्वर पाठक के सामने अपनी लाइफ से जुड़े कई रोचक किस्से सुना रहे हैं।

मुंबई। 2 अक्टूबर यानी गांधी जयंती के अवसर पर 'कौन बनेगा करोड़पति' के कर्मवीर एपिसोड में सुलभ शौचालय अभियान के जनक डॉक्टर बिंदेश्वर पाठक अमिताभ बच्चन के सामने हॉट सीट पर बैठेंगे। इस एपिसोड से जुड़ा एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें अमिताभ बच्चन बिंदेश्वर पाठक के सामने अपनी लाइफ से जुड़े कई रोचक किस्से सुना रहे हैं। इसी दौरान अमिताभ ने अपने सरनेम यानी बच्चन से जुड़ा किस्सा भी शेयर किया। 

अमिताभ आखिर कैसे बन गए बच्चन : 
शो में अमिताभ ने बिंदेश्वर पाठक से बात करते हुए कहा- आप तो जानते हैं कि हमारा जो नाम है बच्चन, वो किसी जाति के साथ मिला हुआ नहीं है, क्योंकि बाबूजी उसके खिलाफ थे। वैसे वो श्रीवास्तव (कायस्थ) हैं, लेकिन उन्होंने कभी माना नहीं। कई लोग पूछते हैं मुझसे और कई बार मैं कह भी चुका हूं। चूंकि बाबूजी इस बात को नहीं मानते थे, इसलिए उन्होंने कभी अपनी जाति का नाम दिया ही नहीं। और मुझे इस बात पर बहुत गर्व है कि मैं 'बच्चन' नाम का प्रथम प्राणी हूं। अमिताभ ने आगे कहा- जब मेरा दाखिला होना था किंडर गार्टन स्कूल में, तो स्कूलवालों ने पूछा कि इनका नाम क्या है। इस पर बाबूजी ने कहा- अमिताभ। स्कूलवालों ने कहा कि सरनेम बताइए। इस पर मां और बाबूजी ने वहीं तय किया कि इसका सरनेम होगा बच्चन। तब से हमारे सरनेम की स्थापना हुई। 

जनगणना वालों को ये जवाब देते हैं बिग बी : 
अमिताभ बच्चन ने बताया कि कई बार जनगणना वाले आते हैं पूछने के लिए कि आपकी जाति क्या है, तो मैं उनसे यही कहता हूं कि मैं भारतीय हूं। मेरी कोई जाति नहीं, मुझे मालूम नहीं। 

कौन हैं बिंदेश्वर पाठक : 
सिर पर मैला ढोने की प्रथा से छुटकारा दिलाने वाले प्रख्यात समाज सुधारक और सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक 2 अप्रैल, 1943 को बिहार के रामपुर में हुआ। उन्होंने 1970 में सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की। यह मुख्य रूप से मानव अधिकार, पर्यावरण स्वच्छता और ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्त्रोतों के क्षेत्र में काम करने वाली अग्रणी संस्था है। भारत सरकार ने पाठक को 1991 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा उन्हें पब्लिक हेल्थ चैम्पियन अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है।