सार

 सरकार ने  RCEP में शामिल न होने का फैसला लिया है। सरकार ने यह फैसला घरेलू उद्योगों को ध्यान में रखते हुए लिया है। इस फैसले का देश के किसान सहित व्यापारिक संगठन भी विरोध कर रहे थे। एक हां से देश में चीन के सामानों की बाढ़ आ जाती।
 

नई दिल्ली. घरेलु उद्योगों को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। जिसके तहत भारत अब रीजनल कंप्रेहेंसिव इकनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) में शामिल नही होगा। न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक सरकार इस बात पर मजबूती से अड़ी है कि वो अपने घरेलू उद्योगों के हित से किसी भी प्रकार का समझौता नही करेगा।

 

RCEP समिट में बोलते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि, ''आज, जब हम आरसीईपी वार्ता के बीते 7 वर्षों को दौरान देखते हैं, तो वैश्विक आर्थिक और व्यापारिक परिदृश्य सहित कई चीजें बदल गई हैं। हम इन परिवर्तनों को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। वर्तमान में आरसीईपी का यह व्यापक समझौता पूरी तरह से आरसीईपी की मूल भावना को नही दिखाता है।''

 

 प्रधानमंत्री मोदी ने इस फैसले को किसानों और देश के तमाम कारोबारियों का फैसला बताया, जो देश की इकोनॉमी को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान निभाते हैं।

देश के किसानों का विरोध

 किसानों का कहना है कि इस समझौते से देश के बाजार पर विदेशी बाजारों का कब्जा हो जाता और भारत के किसानों को उनके उत्पाद का जो मूल्य मिलता है , उसमें भारी गिरावट आ जाएगी। इस फैसले पर अगर भारत ने हामी भरी होती तो देश के कृषि क्षेत्र पर बहुत बुरा असर पड़ता, जिससे भारत का डेयरी उद्योग पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगा। क्योंकि छोटे किसानों की आमदनी का एकमात्र साधन दूध उत्पादन ही बचा हुआ है। दूध उद्योग के अलावा कई ऐसे आमदनी के रास्ते बंद पड़ जाते जिससे किसानों की आमदनी चल रही है।

चीन के सामान की आवक बढ़ने की चिंता

छोटे मझोले कारोबारीयों का कहना है कि आरसीईपी समझौता होने से भारतीय बाजार में चीनी सामान की आवक और बढ़ जाती। क्योंकि चीन को अमेरिका के साथ चल रहे ट्रेड वार से काफी नुकसान हो रहा है। ऐसे में चीन भारत जैसे देशों में उसके सामान की आवक बढ़ने लगती। देखा जाए तो चीन इस फैसले को लेकर काफी उतावला भी दिखाइ दे रहा था। फिलहाल इस पर भारत ने ना बोलकर सारे मंसूबों पर पानी फेर दिया है।

बता दें, RCEP एक व्यापारिक समझौता है जिसके तहत सदस्य राष्ट्रों का एक दूसरे के साथ टैक्स में कटौती की सहूलियत देते हैं। इसमें आसियान के अलावा 6 देश शामिल हैं, जिनकी कुल संख्या 16 होती है।