सार
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार (India Foreign Reserves) रूस को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार बन गया है। इससे भारत की अर्थव्यवस्था में आ रही मजबूती का संकेत मिलता है। ब्लूमबर्ग (Bloomberg) की रिपोर्ट में इस तथ्य का खुलासा किया गया है।
बिजनेस डेस्क। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार (India Foreign Reserves) रूस को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार बन गया है। इससे भारत की अर्थव्यवस्था में आ रही मजबूती का संकेत मिलता है। ब्लूमबर्ग (Bloomberg) की रिपोर्ट में इस तथ्य का खुलासा किया गया है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) अर्थव्यवस्था को किसी अचानक आए संकट से बचाने के लिए डॉलर जमा कर रहा है। बता दें कि रूस और भारत के विदेशी मुद्रा भंडार इस साल महीनों तक तेज बढ़ोत्तरी के बाद अब स्थिर हो गए हैं। भारत इस मामले में आगे बढ़ गया है, क्योंकि रूसी होल्डिंग्स में हाल के हफ्तों के दौरान तेजी से गिरावट आई है।
चीन के पास सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा भंडार
भारत की विदेशी मुद्रा होल्डिंग्स 5 मार्च को 4.3 अरब डॉलर की गिरावट के साथ 580.3 अरब डॉलर पर पहुंच गईं। भारतीय रिजर्व बैंक ने यह जानकारी शुक्रवार को दी। इससे रूस का 580.1 अरब डॉलर का भंडार पीछे रह गया। बता दें कि चीन के पास सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा भंडार है। इसके बाद जापान और स्विट्जरलैंड का स्थान आता है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 18 महीनों के आयात के लिए पर्याप्त बताया गया है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार करंट अकाउंट सरप्लस, क्षेत्रीय शेयर बाजार में बढ़ते इनफ्लो और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की वजह से बढ़ा है।
क्या कहना है विशेषज्ञों का
अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञों का कहना है कि मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार से विदेशी निवेशकों और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों का यह भरोसा मजबूत होता है कि सरकार घटते फिजकल आउटलुक और अर्थव्यवस्था के 4 दशकों में पहले 1 साल के घाटा बढ़ने के बावजूद अपने कर्ज को लेकर वादे पूरे कर सकती है। आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि बेहतर विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को आने वाले समय में किसी भी आउटफ्लो से निपटने का भरोसा मिलता है। वहीं, रिजर्व बैंक के आंकड़ों से जाहिर है कि पिछले साल केंद्रीय बैंक ने स्पॉट फॉरैक्स मार्केट में 88 अरब डॉलर खरीदे थे। इससे रुपया एशिया की बड़ी मुद्राओं में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला बन गया था। बहरहाल, अब ऐसी स्थिति नहीं रह गई है।