सार
पिछले कुछ सालों में नगद लेनदेन की जगह डिजिटल ट्रांजेक्शन तेजी से बढ़ा है। पिछले 20 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है, जब दिवाली हफ्ते के दौरान नगद मुद्रा के प्रवाह में गिरावट देखी गई। ये इस बात की ओर इशारा करता है कि भारत अब स्मार्टफोन लीड पेमेंट इकोनॉमी बनने की ओर तेजी से बढ़ रहा है।
मुंबई/नई दिल्ली। भारतीय अर्थव्यवस्था संरचनात्मक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। यही वजह है कि पिछले कुछ सालों में नगद लेनदेन की जगह डिजिटल ट्रांजेक्शन तेजी से बढ़ा है। पिछले 20 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है, जब दिवाली हफ्ते के दौरान नगद मुद्रा के प्रवाह में गिरावट देखी गई। हालांकि, इससे पहले 2009 में मार्जिनल गिरावट आई थी, लेकिन माना जाता है कि ऐसा आर्थिक मंदी की वजह से हुआ था।
स्मार्टफोन लीड पेमेंट इकोनॉमी बना भारत :
बता दें कि तकनीक में तेजी से हुए विकास ने भारतीय भुगतान प्रणाली (Indian Payment System) को बदल दिया है। यही वजह है कि एक समय तक नगद लेनदेन में दुनिया में सबसे आगे रही भारतीय अर्थव्यवस्था अब स्मार्टफोन लीड पेमेंट इकोनॉमी (स्मार्टफोन से भुगतान करने वाली अर्थव्यवस्था) में बदलती जा रही है।
मनी ट्रांसफर बेहद आसान और सस्ता :
डिजिटल यात्रा की कामयाबी मुख्य रूप से सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को संवारने और उसे डिजिटल करने के लिए किए गए अथक प्रयासों का नतीजा है। आज के दौर में यूपीआई, वॉलेट और पीपीआई जैसी इंटरऑपरेबल पेमेंट सिस्टम्स ने मनी ट्रांसफर को बेहद आसान और सस्ता बना दिया है। यहां तक कि ये उनके लिए भी आसान है, जिनके पास बैंक अकाउंट नहीं हैं।
तकनीक के विकास ने बढ़ाया डिजिटल ट्रांजेक्शन :
पिछले कुछ सालों में तकनीक ने तेजी से विकास किया और QR कोड, एनएफसी (Near Field Communication) जैसे इनोवेशंस की वजह से कई बड़ी टेक फर्म इस इंडस्ट्री में आगे आईं। अगर हम हालिया रिटेल डिजिटल ट्रांजेक्शन डेटा देखें तो इसमें NEFT ट्रांजेक्शन का हिस्सा करीब 55% है।
अक्टूबर, 2022 तक UPI ट्रांजेक्शन 12 लाख करोड़ :
हालांकि, अगर हम UPI, IMPS और ई-वॉलेट के माध्यम से किए गए ट्रांजेक्शंस को देखें तो इनकी हिस्सेदारी क्रमश: 16%, 12% और 1% है। वहीं स्मॉल रिटेल पेमेंट्स की बात करें तो यूपीआई और ई-वॉलेट्स की हिस्सेदारी करीब 11-12 प्रतिशत है। बता दें कि 'मोबाइल वॉलेट्स' की धीमी गति यूपीआई ट्रांजेक्शन में बढ़ोतरी की वजह हो सकती है। अगस्त, 2016 से अक्टूबर, 2022 तक की बात करें तो यूपीआई ट्रांजेक्शन 12 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया है और इसने बहुत तेजी से बाजार पर अपनी पकड़ बना ली है।
नगद ट्रांजेक्शन में लगातार गिरावट जारी :
कुल भुगतान प्रणाली (Total Payment System) में डिजिटल ट्रांजेक्शंस को IMPS, UPI और PPI में लेनदेन के रूप में परिभाषित किया गया है। वहीं नगद लेनदेन को CIC (Currency in Circulation) के रूप में दिखाया गया है। ट्रेंड्स इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि वित्त वर्ष 2016 में CIC की हिस्सेदारी 88% थी, जो कि 2022 में घटकर केवल 20% रह गई है। वित्त वर्ष 2027 तक इसमें और ज्यादा गिरावट देखने को मिल सकती है और यह 11.15% तक पहुंच सकती है।
लगातार बढ़ रही डिजिटल ट्रांजेक्शन की हिस्सेदारी :
डिजिटल ट्रांजेक्शंस की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। वित्त वर्ष 2016 में यह 11.26% थी, जो कि 2022 में बढ़कर 80.4% हो गई। अनुमान है कि वित्त वर्ष 2027 तक डिजिटल ट्रांजेक्शंस की हिस्सेदारी बढ़कर 88% हो जाएगी।
डिजिटल ट्रांजेक्शंस में हुए इनोवेशंस से बदली पेमेंट हैबिट :
- टेक्नोलॉजी में हुए नए-नए इनोवेंशंस ने इंडियन पेमेंट सिस्टम (भारतीय भुगतान प्रणाली) को काफी हद तक बदल दिया है। पिछले कुछ सालों में भारत की कैश लीड इकोनॉमी अब स्मार्टफोन लीड पेमेंट इकोनॉमी में बदल चुकी है।
- डिजिटल पेमेंट के बढ़ते प्रभाव के चलते देश में नगदी पर निर्भरता भी धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। भारत की डिजिटल पेमेंट यात्रा एक तरह से उसकी व्यापक डिजिटल पहचान, पेमेंट और डेटा मैनेजमेंट सिस्टम पर बेस्ड है। यह ओपन एक्सेस सॉफ्टवेयर बैंकों, फिन-टेक और डिजिटल वॉलेट के बीच स्टैंडर्ड डिजिटल पेमेंट की सुविधा प्रदान करता है।
- ट्रांजेक्शंस में क्रेडिट और डेबिट कार्ड की हिस्सेदारी अब भी फ्लैट है, जबकि UPI ट्रांजेक्शंस 2016 में 0% से बढ़कर 2022 तक 16% हो गया है। वहीं पेपर बेस्ड इंस्ट्रुमेंट्स जैसे चेक आदि वित्त वर्ष 2016 में 46% से गिरकर 2022 में 12.7% तक पहुंच गया है।
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