सार

वर्ल्ड पोस्टल वर्कर डे 1 जुलाई को हम ऐसे शख्स से रू-ब-रू करा रहे हैं, जिन्हें 'पोस्टल मैन' कहा जाए तो गलत नहीं होगा। इनका शौक सबसे हटकर है। वे डाक टिकट संग्रह करते हैं। इंगलिश में इसे फिलाटैली कहते हैं। इनके पास देश और दुनिया के नायाब 20 लाख से अधिक पोस्टल टिकट मौजूद हैं।

बिजनेस डेस्कः फिलाटैली के शौकीनों की संख्या हमारे देश में विश्व के अन्य देशों के मुकाबले कम हैं। फिर भी यहां के शौकीनों ने इस क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बना ली है। 1991 में बिहार रत्न से सम्मानित पटना के प्रदीप जैन ऐसे ही कुछ खास लोगों में से एक हैं। इन्होंने ना केवल डाक टिकट संग्रह के क्षेत्र में अपनी पहचान बनायी है, बल्कि समाज सेवा के क्षेत्र में भी इन्होंने कई सराहनीय कार्य किए हैं। प्रदीप जैन को राज्य के एकमात्र पेशेवर डाक टिकट संग्रह के क्षेत्र में देश और विदेशों में दर्जनों पुरस्कार मिल चुके हैं। वे बिहार में पटना के बोरिंग रोड नागेश्वर कॉलोनी में रहते हैं। बचपन से ही इन्हें डाक टिकट संग्रह करने का शोक था। 

- यह तस्वीर पहले एरिअल पोस्ट की है। इसे 18 परवरी 1911 में इलाहाबाद में जारी किया गया था। इसे एक प्रारूप मानकर कई पोस्टल स्टांप तैयार किए गए थे। 

पॉकेटमनी से खरीदते थे डाक टिकट
प्रदीप जैन ने 1969 से पॉकेटमनी को बचा कर टिकट खरीदना शुरू किया था। उन्हें इसका इतना शौक हुआ कि अब तक 20 लाख से भी ज्यादा डाक टिकट का कलेक्शन इनके पास है। इन कलेक्शनों में विश्व का पहला डाक टिकट भी है और महात्मा गांधी के सत्याग्रह पर जारी किया गया डाक टिकट भी है। अब वे डाक टिकट का आयात और निर्यात भी करते हैं। प्रदीप जैन लगातार 40 सालों से लगातार डाक टिकट संग्रह करते आ रहे हैं। 

लाइब्रेरी की तरह रखा है सारा कलेक्शन
प्रदीप जैन बताते हैं कि जितने भी डाक टिक्ट को कल्केट किया है, उन सभी को बेहतर तरीके से एक फाइल में रका गया है। टिकटों की अब डिजिटलाइजेशन के माध्यम से सॉफ्ट कॉपी तैयार की गई है। उन्होंने बताया कि फिलाटैली (डाक टिक्ट कलेक्ट करने का शौक) का सफर 1967 से शुरू हुआ था। पहली बार मैंने अमेरिकी राष्ट्रपति पर जारी टिकट को खरीदा था। इसे पटना जीपीओ के फिलाटैली ब्यूरो में प्रदर्शनी में भी लगाया था।

मुझे फिलाटैली में पहला कांस्य पदक 1976 में बिहार डाक टिकट संग्रह प्रदर्शनी में मिला। अब मेरे पास अलग-अलग देशों के लाखों टिकट और पोस्टल कार्ड जमा हो चुके हैं। इसे देखने विदेशों से लोग पहुंचते रहते हैं। यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि किसी भी देश में फिलाटैली एग्जीबिशन का आयोजन होता है तो मुझे बुलावा आता है। 

महात्मा गांधी पर जारी टिकट का भी कलेक्शन
वे बताते हैं, महात्मा गांधी के भारत वापसी के 100 वर्ष पूरे होने के मौके पर हमने 30 जनवरी 2015 को भारतीय नृत्य कला मंदिर पटना के बहुद्देशीय परिसर में छह दिनों का एक एग्जीबिशन लगाया था। इस मौके पर गांधी जी के प्रपौत्र तुषार गांधी भी पहुंचे थे। देश के कई जानेमाने लोग भी इसमें पहुंचे थे। मेरे पास गांधी जी पर जारी हुई कई टिकटें हैं। 1948 में महात्मा गांधी की प्रथम पुण्यतिथि पर जारी 100 टिकट में से एक संग्रहित है। 

गांधी जी के 100 वें जन्मदिन पर 60 देशों ने जारी किया था टिकट
इसके साथ ही छपाई में की गलतियों वाले 1500 टिकट भी संग्रह में शामिल हैं। गांधी जी के 100वें जन्मदिन पर 1969 में मैंने पहला डाक टिकट बेचा था। इसे मैंने पटना जीपीओ के बाहर घंटों लाइन लगा कर खरीदा था। इस मौके पर गांधी जी पर विदेशों में भी टिकट जारी किया गया था। माल्टा, जर्मनी, यूएस, ब्राजील, पनामा जैसे 60 बड़े देशों ने इसे जारी किया था। दो से तीन सालों में ही मैं गांधी जी के स्टांप कलेक्टर के रूप में पहचाना जाने लगा था। 

- बायीं तस्वीर में 1774 के कॉपर टिकट का कागजी प्रारूप, दायीं तस्वीर में 1840 में ब्रिटेन से जारी हुआ स्टांप ब्लैक पेनी (एक पेनी पोस्टेज)

एग्जीबिशन में प्रजेंटेशन का अहम रोल
जानकारी दें कि इंटरनेशनल एग्जीबिशन में कलेक्ट किए गए डाक टिकटों का केवल प्रदर्शन ही मायने नहीं रखता है। बल्कि इन पर किए गए शोध और प्रस्तुतिकरण का भी गजब महत्व है। निर्णायक मंडल डाक टिकट संग्रह की विष्य-वस्तु, उद्देश्य और प्रजेंटेशन से संबंधित जानकारियों के लिए पुरस्कृत करते हैं। विदेशों में हुए कई एग्जीबिशन में मुझे ऐसे प्राइज मिल चुके हैं। 

कई देशों में लगा चुके हैं एग्जीबिशन
प्रदीप जैन ने 1986 में अमेरिका, 1987 में चीन और जापान, 1989 में भारत (वर्ल्ड लेवल), 1990 में लंदन, न्यूजीलैंड और इंग्लैंड, 1993 में बैंकॉक, 1995 में सिंगापुर, 1996 में कनाडा और अन्य जगहों पर एग्जीबिशन लगा चुके हैं। 2015 में वे मोंटिकारलो मोनाको भी गए थे। प्रदीप जैन डाक टिकट के माध्यम से पूरे विश्व में भ्रमण कर चुके हैं। कई जगहों पर लेक्चर दिया। अब तो ऐसा हो गया है कि किसी भी देश में फिलाटैली एग्जीबिशन लगती है तो इन्हें जरूर बुलावा आता है। 

रॉयल फिलाटैली सोसाइटी लंदन ने फेलोशिप भी दिया
2015 में इन्हें रॉयल फिलाटैली सोसाइटी लंदन से फेलोशिप मिला है। वे कहते हैं कि मैं पटना का पहला व्यक्ति हूं, जिसे यह फेलोशिप मिला है। पूरे भारत में काफी कम लोगों को ही यह सम्मान मिला है। वे कहते हैं, पटना में आयोजित प्रकाशोत्सव के दौरान मेरे काम को काफी सराहा गया था। मैं खास मौके पर एक हैंडआउट बनाता हूं। उसे प्रिंटिंग के जरिये अपने मित्रों और जाननेवालों को भेजता हूं। मैंने प्रकाशोत्सव के मौके पर एक हैंडआउट निकाला था। उसमें 1935 से लेकर अब तक सिखिज्म पर निकाली गयी टिकटों का जिक्र था। 

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