सार

भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDA) ने अप्रैल, 2017 में मेंटल हेल्थकेयर एक्ट पारित किया। मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के प्रावधानों के मुताबिक, सभी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों (हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसीज) के लिए मानसिक बीमारियों (मेंटल हेल्थ) को कवर करना अनिवार्य किया है।

Mental Health Coverage: मेंटल हेल्थ (मानसिक स्वास्थ्य) हमारे शरीद के लिए फिजिकल हेल्थ की तरह ही बेहद जरूरी है। हालांकि, इस पर खुलकर बात नहीं की जाती है। आज भी लोग मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को या तो छुपाते हैं, या फिर दरकिनार करते हैं। हालांकि, कोरोना महामारी के बाद से काफी हद तक लोगों में मेंटल हेल्थ को लेकर जागरूकता बढ़ी है। लेकिन मेंटल इंश्योरेंस को लेकर आम लोगों में अब भी उतनी अवेयरनेस नहीं है। 

क्या कहता है कानून? 
बता दें कि भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDA) ने अप्रैल, 2017 में मेंटल हेल्थकेयर एक्ट पारित किया। मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के प्रावधानों के मुताबिक, सभी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों (हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसीज) के लिए मानसिक बीमारियों (मेंटल हेल्थ) को कवर करना अनिवार्य किया गया है।

अभी क्या हैं हालात : 
वर्तमान की बात करें तो कुछ गिनी-चुनी बीमा कंपनियों ने ही IRDA के दिशानिर्देशों का पालन किया है। यहां तक कि 16 जून 2020 को सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार और इरडा को एक याचिका पर नोटिस जारी करना पड़ा। इसमें कोर्ट से सभी बीमा कंपनियों को निर्देश देने के लिए कहा गया था कि वे मानसिक इलाज को मेडिकल पॉलिसी में शामिल करें। बता दें कि सभी बीमाकर्ताओं को 31 अक्टूबर तक नए नियमों का पालन करने के लिए कहा गया है।

किस तरह की बीमारियां होंगी शामिल : 
IRDA के नए सर्कुलर के मुताबिक, सभी बीमा कंपनियों को हेल्थ इंश्योरेंस में मानसिक बीमारी को कवर करना होगा। मेंटल हेल्त्थकेयर एक्ट 2017 (मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017) यह सुनिश्चित करने के लिए ही बनाया गया है कि कि मानसिक बीमारियों से जूझ रहे हर एक शख्स को सही स्वास्थ्य देखभाल और सेवाएं मिल सकें। हालांकि, अभी तक ये साफ नहीं है कि बीमा कंपनियां हेल्थ पॉलिसी में मेंटल से जुड़ी किस तरह की समस्याओं को शामिल करेंगी। 

इस तरह की प्रॉब्लम नहीं होंगी कवर : 
सवाल ये भी है कि क्या बीमा कंपनियों मौजूदा प्रावधानों से अलग हटकर एक्यूट डिप्रेशन, बाइपोलर डिसऑर्डर, ईटिंग डिसऑर्डर, पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर, सिजोफ्रेनिया और डिमेंशिया आदि के लिए प्रावधान करेंगी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, फिलहाल हेल्थ इंश्योरेंस प्लान में मानसिक या बौद्धिक अक्षमता को कवर नहीं करती हैं। इसके अतिरिक्त, बीमा योजना मौजूदा प्रावधानों के तहत नशीली दवाओं और शराब के दुरुपयोग को भी कवर नहीं करेंगी।  

मेंटल हेल्थ कवरेज के तहत क्या कवर होंगे?
आजकल उपलब्ध अधिकांश कंप्रिहेंसिव हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसियां पॉलिसीधारक को अस्पताल में भर्ती होने की लागत के लिए कवर करती हैं, जो संभावित मानसिक विकार के परिणामस्वरूप हो सकती हैं. इस तरह की पॉलिसियों में मरीज के कमरे का किराया, दवाएं और डायग्नोस्टिक्स, एम्बुलेंस शुल्क और इलाज का खर्च शामिल होता है। मानसिक बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के ओपीडी (आउट-पेशेंट डिपार्टमेंट) के खर्च जैसे डेकेयर ट्रीटमेंट, दवाएं और डॉक्टर की फीस में भी पैसा खर्च होता है। अब कई बीमा कंपनियां ऐसे प्लान ला रही हैं, जिनमें ओपीडी के खर्चे भी कवर होते हैं। इसी तरह की पॉलिसियों को लेना चाहिए।

किसे लेना चाहिए मेंटल हेल्थ कवरेज पॉलिसी?
मेंटल हेल्थ की समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है। यह समस्या युवाओं से लेकर अधिक उम्र वाले लोगों को भी अपना शिकार बना सकती है। आजकल तो स्टूडेंट्स में मेंटल प्रॉब्लम आम बात हो गई है। अगर, किसी की फैमिली हिस्ट्री यानी परिवार में किसी को मेंटल प्रॉब्लम रही है तो ऐसे लोगों को मेंटल हेल्थ इंश्योरेंस जरूर लेना चाहिए। 

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