सार

जॉब करने वालों के हक में सरकार की तरफ से कुछ कानून बनाए गए हैं। इनकी मदद से वे अपने हक की आवाज उठा सकते हैं। ऐसे में अगर कोई कंपनी किसी कर्मचारी को गलत तरीके से नौकरी से निकाल दें तो उन्हें इन नियमों की मदद लेनी चाहिए।

करियर डेस्क : 7 साल पहले 2015 में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (Tata Consultancy Services) ने एक कर्मचारी को बाहर का रास्ता दिखा दिया था। चेन्नई (Chennai) की अदालत के आदेश पर न सिर्फ उस कर्मचारी को वापस नौकरी पर रखना पड़ा, बल्कि उसे 7 साल की सैलरी और भत्ते भी मिले हैं। कंपनी और एमप्लॉइज के बीच टकराव का यह कोी पहला मामला नहीं है। इससे पहले पिछले साल ही आईटी कंपनी इंफोसिस (Infosys) को सेंट्रल लेबर कमिश्नर और कर्नाटक लेबर डिपार्टमेंट की तरफ से एम्प्लॉइमेंट एग्रीमेंट पूरा न करने पर समन जारी किया गया था। अगर आप कहीं जॉब कर रहे हैं और सैलरीड हैं तो आपको अपने अधिकार के 5 इंपॉर्टेंट नियम मालूम होने चाहिए..

नियम नंबर-1

एक्सपर्ट के मुताबकि, किसी भी जॉब में छंटनी की जो प्रक्रिया होती है, वह भारतीय श्रम कानून (Indian labor law) में सैलरीड एम्प्लॉइज के लिए कुछ ज्यादा स्पष्ट नहीं है। हालांकि 1947 के इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट की धारा 25 कुछ शर्तों के साथ कर्मचारियों को छंटनी से बचाता है। इस नियम के अनुसार अगर 12 महीनों में किसी कर्मचारी से 100 दिन या उससे ज्यादा काम लिया गया है तो उसे नौकरी से बाहर निकालने से पहले गवर्नमेंट अथॉरिटी से अप्रूवल लेना पड़ता है। इतना ही नहीं, कंपनी को उस कर्मचारी को नोटिस और छंटनी वाले कर्मचारियों को नोटिस और कंपनसेशन यानी मुआवजा देना पड़ता है। इसलिए किसी कंपनी को जॉइन करते वक्त जॉब कॉन्ट्रैक्ट और डॉक्यूमेंट्स पर साइन करने से पहले उसे सावधानी से पढ़ना चाहिए। अगर कंपनी अपने दस्तावेजों के हिसाब से नियम और शर्तों को पूरा नहीं करती है तो कर्मचारी कोर्ट का रूख कर सकता है।

नियम नंबर-2

सेक्सुअल हैरसमेंट यानी यौन उत्पीड़न एक्ट महिलाओं को ऑफिस या कंपनी में सेक्सुअल हैरसमेंट से बचाता है। कानून के मुताबिक, फिजिकल शारीरिक कॉन्टैक्ट, इसके लिए दबाव डालना या सेक्सुअल हैरसमेंट करना, किसी भी तरह का अश्लील कमेंट करना, अश्लील फिल्म या फोटो दिखाना जैसी चीजें इस अपराध में शामिल हैं। ऐसी किसी भी स्थिति में कानून कहता है कि कंपनी एक इंटरनल कमेटी बनाकर इसकी जांच करें। महिला कर्मचारियों को भी अपने अधिकारों की जानकारी होनी चाहिए। वहीं, पुरुष कर्मचारी भी इस तरह की हरकत करने से बचें। ऐसी स्थिति में सेक्सुअल हैरसमेंट करने वालों को कंपनी से निकाला जा सकता है या उस पर एक्शन लिया जा सकता है।

नियम नंबर-3

ग्रेच्युटी पेमेंट एक्ट 1972 के नियमों के अनुसार, ग्रेच्युटी की राशि पाने के लिए कर्मचारी को एक ही कंपनी में कम से कम 5 साल तक नौकरी करना होता है। अगर इससे पहले अचानक कर्मचारी की मौत या दुर्घटना हो जाए, तब भी यह नियम नहीं लागू होता है। हालांकि 5 साल पूरा करने के बाद अगर ऐसा होता है तो उसके नॉमिनी को यह रकम दी जानी चाहिए। कानून कहता है कि अगर कंपनी भुगतान से बचने के लिए किसी तरह का गलत कदम उठाती है तो उस पर एक्शन लिया जा सकता है। जेल तक की सजा का प्रावधान है। नियम में यह भी कहा गया है कि अगर कर्मचारी द्वारा कंपनी को जानबूझकर नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई हो तो ग्रेच्युटी को जब्त किया जा सकता है।

नियम नंबर-4

किसी भी कंपनी में काम कर रहीं महिला कर्मचारियों को गर्भावस्था के दौरान मह‍िलाएं मातृत्व अवकाश यानी मैटरन‍िटी लीव (Maternity Leave) की सुविधा मिलती है। मातृत्व अवकाश संशोधन अधिनियम 2017 के मुताबिक, इसका लाभ उन महिला कर्मचारियों को मिलता है, जिसने मौजूदा कंपनी में एक साल में 80 दिन तक काम किया है। अवकाश दैनिक मजदूरी (Daily Wages) पर आधारित होता है। गर्भवती महिलाओं को 26 सप्ताह का मातृत्व अवकाश मिलता है। यह अनुमानित तारीख से 8 हफ्ते पहले शुरू हो सकता है। हालांकि इसमें कुछ शर्तें भी हैं। मह‍िलाएं पहले दो बार प्रेगनेंसी में इस अवकाश का लाभ उठा सकती हैं। तीसरा बच्चा होने पर अवकाश सिर्फ 12 हफ्तों का होता है।

नियम नंबर-5

बीमा और वित्तीय सहायता 1948 एक्ट के तरह कर्मचारी राज्य बीमा निगम (Employee's State Insurance Corporation) कर्मचारियों को इमरेंजेंसी की सिचुएशन के लिए इंश्योरेंस देता है। इसमें एक्सीडेंटस, बीमारी, मैटरनिटी लीव जैसी स्थिति में वित्तीय मदद की जाती है। कर्मचारियों के साथ-साथ उनकी फैमिली भी इस इंश्योरेंस नियम में कवर होती हैं। अगर नौकरी के दौरान किसी कर्मचारी की मौत हो जाती है, तब उसके फैमिली मेंबर्स को वित्तीय लाभ दिया जाता है।

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